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भारत जोड़ो अभियान में जुटे संत सीताराम कहते हैं

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Apr 12, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Apr 2014 15:54:29

9 अगस्त, 2012 को कन्याकुमारी से भारत जोड़ो अभियान के तहत भारत भ्रमण पदयात्रा पर निकले राष्ट्रीय संत सीताराम पिछले दिनों देहरादून में थे। यहां पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि यह यात्रा जिस दिन शुरू हुई वह 9 अगस्त देश में अगस्त क्रंाति और श्रीकृष्ण के जन्म दिवस की तारीख थी। उन्होंने कहा कि 9 अगस्त, 1942 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ह्यअंग्रेजो,ं भारत छोड़ोह्ण का नारा देकर इस आन्दोलन की शुरुआत की थी, जबकि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कारावास में जन्म लिया और उसके बाद गोकुल के गांवों में जाकर खेती-बाड़ी की जिससे यह संदेश गया कि शहर कारावास है और गांव जीवन। अंग्रेज तो भारत छोड़ गए, लेकिन हम आजाद भारत में भी अंग्रेजियत नहीं छोड़ पाए। इसी का परिणाम है कि आज देश में शहरीकरण बढ़ रहा है और गांव के गांव खाली हो रहे हैं। इससे आने वाला समय भारत के लिए खतरनाक हो सकता है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है और वहां से पलायन ठीक नहीं है। ग्राम आधारित भारत का जीवन आज शहर-केन्द्रित, अन्न आधारित और धन-केन्द्रित होता जा रहा है। वर्तमान भारत को उसके अतीत से जोड़ना है। गुलाम भारत में हमारा नारा था ह्यअंग्रेजो, भारत छोड़ोह्ण, जबकि अब हमारा नारा है ह्यभारत जोड़ो।ह्ण संत सीताराम ने कहा कि आज भारत की संस्कृति, जीवन शैली, भाषा शैली सब पर अंग्रेजियत और पश्चिमी सभ्यता हावी होती जा रही है। देशवासियों की जीवन शैली, भाषा शैली और संस्कृति सबमें भारत दिखाई दे। जिस दिन ऐसा होगा भारत फिर से अखंड होकर विश्व गुरु के पद पर स्थापित होगा।
उन्होंने कहा कि यह यात्रा ह्यचलो गांव की ओरह्ण का संदेश देने के लिए निकाली गई है। गांव की आठ संपदाओं (जल, जंगल, जमीन, जीव, गाय, जन, लघु ग्रामोद्योग और वैद्य) को बचाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत का अन्नदाता किसान वास्तव में भगवान है। तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने कर्तव्य और दायित्वों को भलीभांति समझता है और उनकी पूरा करता है। दुर्भाग्य से देश का किसान आज बहुत ही कठिन परिस्थितियों में जीवन-यापन कर रहा है, लेकिन फिर भी नैतिकता और भारतीयता के प्रति प्रेम और लगाव भी उसी में सबसे ज्यादा है।
संत सीताराम अब तक केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों का भ्रमण कर चुके हैं। 4 अप्रैल तक 603 दिन में वे 9000 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। ल्ल वि.सं.के.,देहरादून
9 अगस्त, 2012 को कन्याकुमारी से भारत जोड़ो अभियान के तहत भारत भ्रमण पदयात्रा पर निकले राष्ट्रीय संत सीताराम पिछले दिनों देहरादून में थे। यहां पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि यह यात्रा जिस दिन शुरू हुई वह 9 अगस्त देश में अगस्त क्रंाति और श्रीकृष्ण के जन्म दिवस की तारीख थी। उन्होंने कहा कि 9 अगस्त, 1942 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ह्यअंग्रेजो,ं भारत छोड़ोह्ण का नारा देकर इस आन्दोलन की शुरुआत की थी, जबकि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कारावास में जन्म लिया और उसके बाद गोकुल के गांवों में जाकर खेती-बाड़ी की जिससे यह संदेश गया कि शहर कारावास है और गांव जीवन। अंग्रेज तो भारत छोड़ गए, लेकिन हम आजाद भारत में भी अंग्रेजियत नहीं छोड़ पाए। इसी का परिणाम है कि आज देश में शहरीकरण बढ़ रहा है और गांव के गांव खाली हो रहे हैं। इससे आने वाला समय भारत के लिए खतरनाक हो सकता है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है और वहां से पलायन ठीक नहीं है। ग्राम आधारित भारत का जीवन आज शहर-केन्द्रित, अन्न आधारित और धन-केन्द्रित होता जा रहा है। वर्तमान भारत को उसके अतीत से जोड़ना है। गुलाम भारत में हमारा नारा था ह्यअंग्रेजो, भारत छोड़ोह्ण, जबकि अब हमारा नारा है ह्यभारत जोड़ो।ह्ण संत सीताराम ने कहा कि आज भारत की संस्कृति, जीवन शैली, भाषा शैली सब पर अंग्रेजियत और पश्चिमी सभ्यता हावी होती जा रही है। देशवासियों की जीवन शैली, भाषा शैली और संस्कृति सबमें भारत दिखाई दे। जिस दिन ऐसा होगा भारत फिर से अखंड होकर विश्व गुरु के पद पर स्थापित होगा।
उन्होंने कहा कि यह यात्रा ह्यचलो गांव की ओरह्ण का संदेश देने के लिए निकाली गई है। गांव की आठ संपदाओं (जल, जंगल, जमीन, जीव, गाय, जन, लघु ग्रामोद्योग और वैद्य) को बचाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत का अन्नदाता किसान वास्तव में भगवान है। तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने कर्तव्य और दायित्वों को भलीभांति समझता है और उनकी पूरा करता है। दुर्भाग्य से देश का किसान आज बहुत ही कठिन परिस्थितियों में जीवन-यापन कर रहा है, लेकिन फिर भी नैतिकता और भारतीयता के प्रति प्रेम और लगाव भी उसी में सबसे ज्यादा है।
संत सीताराम अब तक केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों का भ्रमण कर चुके हैं। 4 अप्रैल तक 603 दिन में वे 9000 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। ल्ल वि.सं.के.,देहरादून

ह्यसफलता की कुंजी है साधनाह्ण
ह्यसंयम एवं साधना से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। मनुष्य के अंदर सुषुप्त अवस्था में अपार शक्ति छुपी हुई है, उसे श्रम और साधना से जगाने की आवश्यकता है। ये विचार हैं देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या के। डॉ. पण्ड्या पिछले दिनों हरिद्वार में व्यक्तित्व परिष्कार कार्यशाला के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। डॉ. पण्ड्या ने चार संयम के बारे में बताते हुए कहा कि समय संयमों द्वारा जीवन को सुव्यस्थित बनाया जाता है, तो अर्थ संयम से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की जा सकती है। इसी तरह इन्द्रिय संयम से शरीर पुष्ट होता है और व्यक्तित्व परिष्कार में सहायता मिलती है, तो विचार संयम से कल्पना शक्ति एवं विवेक शक्ति का विकास होता है। कार्यशाला में पूरे देश से आए अभियंताओं, उद्योग जगत के अधिकारियों और पत्रकारों ने भाग लिया।
संस्था की अधिष्ठात्री शैल दीदी ने आत्मीयता एवं सहकारिता के विकास पर बल देते हुए कहा कि इससे जहां पारिवारिक व सामाजिक जीवन में खुशहाली आती है, वहीं पारस्परिक सहयोग से जीवन आनन्दपूर्ण बनता है। प्रतिनिधि

संस्कृत भाषा में वाद-विवाद प्रतियोगिता
गत दिनों देव संस्कृ ति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में पहली बार संस्कृत भाषा में वाद-विवाद प्रतियोगिता हुई। प्रतियोगिता की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति ड़ॉ. चिन्मय पण्ड्या ने की। ह्यराष्ट्रिय समस्यानां समाधानं संस्कृतेन भवितुं शक्यते न वाह्ण विषय पर आयोजित इस प्रतियोगिता में हरिद्वार व देहरादून से आए 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता में श्रीभगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय के राहुल पोखरियाल प्रथम रहे, तो वहीं द्रोणस्थली आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की कुमारी दीप्ति आर्या ने दूसरा तथा नंदिनी राठौड़ ने तीसरा स्थान प्राप्त किया। श्रीभगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ़ भोला झा, श्रीजगद देवसिंह संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. कान्ता प्रसाद बड़ोला, द्रोणस्थली आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अन्नपूर्णा आर्य निर्णायक रहे। प्रतिनिधि

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