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जल, जंगल, जमीन, जीव, गाय, जन, ग्रामोद्योग और वैद्य को बचाना जरूरी
9 अगस्त, 2012 को कन्याकुमारी से भारत जोड़ो अभियान के तहत भारत भ्रमण पदयात्रा पर निकले राष्ट्रीय संत सीताराम पिछले दिनों देहरादून में थे। यहां पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि यह यात्रा जिस दिन शुरू हुई वह 9 अगस्त देश में अगस्त क्रंाति और श्रीकृष्ण के जन्म दिवस की तारीख थी। उन्होंने कहा कि 9 अगस्त,1942 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजो, भारत छोड़ो' का नारा देकर इस आन्दोलन की शुरुआत की थी, जबकि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कारावास में जन्म लिया और उसके बाद गोकुल के गांवों में जाकर खेती-बाड़ी की जिससे यह संदेश गया कि शहर कारावास है और गांव जीवन। अंग्रेज तो भारत छोड़ गए, लेकिन हम आजाद भारत में भी अंग्रेजियत नहीं छोड़ पाए। इसी का परिणाम है कि आज देश में शहरीकरण बढ़ रहा है और गांव के गांव खाली हो रहे हैं। इससे आने वाला समय भारत के लिए खतरनाक हो सकता है। भारत की आत्मा गांवों में बसती है और वहां से पलायन ठीक नहीं है। ग्राम आधारित भारत का जीवन आज शहर-केन्द्रित, अन्न आधारित और धन-केन्द्रित होता जा रहा है। वर्तमान भारत को उसके अतीत से जोड़ना है। गुलाम भारत में हमारा नारा था ह्यअंग्रेजो, भारत छोड़ोह्ण, जबकि अब हमारा नारा है ह्यभारत जोड़ो।ह्ण संत सीताराम ने कहा कि आज भारत की संस्कृति, जीवन शैली, भाषा शैली सब पर अंग्रेजियत और पश्चिमी सभ्यता हावी होती जा रही है। देशवासियों की जीवन शैली, भाषा शैली और संस्कृति सबमें भारत दिखाई दे। जिस दिन ऐसा होगा भारत फिर से अखंड होकर विश्व गुरु के पद पर स्थापित होगा।
उन्होंने कहा कि यह यात्रा ह्यचलो गांव की ओरह्ण का संदेश देने के लिए निकाली गई है। गांव की आठ संपदाओं (जल, जंगल, जमीन, जीव, गाय, जन, लघु ग्रामोद्योग और वैद्य) को बचाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत का अन्नदाता किसान वास्तव में भगवान है। तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने कर्तव्य और दायित्वों को भलीभांति समझता है और उनकी पूरा करता है। दुर्भाग्य से देश का किसान आज बहुत ही कठिन परिस्थितियों में जीवन-यापन कर रहा है, लेकिन फिर भी नैतिकता और भारतीयता के प्रति प्रेम और लगाव भी उसी में सबसे ज्यादा है।
संत सीताराम अब तक केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों का भ्रमण कर चुके हैं। 4 अप्रैल तक 603 दिन में वे 9000 किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। वि.सं.के.,देहरादून
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