हिन्दुत्व ही भारत की पहचान
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हिन्दुत्व ही भारत की पहचान

by
Mar 3, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Mar 2014 15:00:29

हिन्दू सबको अपना मानता है। सबको समग्र दृष्टि से देखता है। विविधता को स्वीकार करता है। हिन्दू विचार किसी पर भी संकट नहीं लाना चाहता है। किन्तु हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र का सही रूप सामने न आने के कारण इन सब को लेकर समाज में भ्रम फैलाया जाता है। जब से हम भूले कि हम हिन्दू हैं तब से हमारा पतन शुरू हुआ। राष्ट्र की अवनति का कारण है आत्मविस्मृत्ति।ह्ण

उपरोक्त विचार हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत के। श्री भागवत 24 फरवरी को नई दिल्ली स्थित विवेकानन्द इन्टरनेशनल फाउण्डेशन के सभागार में पूर्व राजनयिक श्री ओ.पी.गुप्ता की पुस्तक ह्यडिफाइनिंग हिन्दुत्वह्ण का लोकार्पण करने के पश्चात् उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि दुनिया हमें हिन्दू के नाते जानती है। जब हम ईरान गए तो सिन्धु नदी के पार से आने के कारण हमें वहां हिन्दू कहा गया और जब ईरान से व्यापारी यहां आए तो वे लोग हमें हिन्दू कह कर सम्बोधित करने लगे। फिर जब कट्टर विचारधारा हमारे यहां आने लगी तो हमने अपने को हिन्दू कहना शुरू किया। इससे पहले तो हमें अपनी पहचान की आवश्यकता ही महसूस नहीं होती थी। जो भी भारत में रहता है वह हिन्दू है और जो हिन्दू नहीं है वह भारतीय नहीं है। हिन्दुत्व का अर्थ पूजा-पद्धति या प्रान्त से सम्बंधित नहीं है,किन्तु हिन्दुत्व को छोटा दिखाने के उद्देश्य से उसकी गलत व्याख्या की गई।

सरसंघचालक ने कहा कि वस्तुत: हिन्दू शब्द अपरिभाष्य है, क्योंकि यह वह जीवन पद्धति है, जो परम सत्य के अन्वेषण के लिए सतत तपशील रहती है। यह विचारधारा राष्ट्र को परमवैभव तक पहुंचाने वाली है। इसकी विशेषता यह है कि यह सबको अपना मानती है। किन्तु दुर्भाग्य से इस विचारधारा को हर तरह से दबाने का प्रयास हो रहा है। हमें जबरन संघर्ष में डाला जा रहा है। इसलिए हम संघर्ष करेंगे। शक्ति के बिना लोग सत्य को नहीं देख पाते हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्र विस्मरण के बाद हिंदू समाज रूढि़ से चलने लगा, उसमें विकृति आ गई, अस्पृश्यता आ गई और हम अपने ही लोगों को अलग कर बैठे। हम शास्त्र की बात तो करते हैं,पर उसके अनुसार आचरण नहीं करते हैं। यही डॉ. अम्बेडकर की भी पीड़ा थी। अतएव अब हिन्दू शब्द के वृहत् अर्थ से समाज को परिचित कराना आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि दुनिया के राष्ट्र समूहों के स्वार्थ के लिए बने हैं,पर हमारा राष्ट्र परोपकार की इच्छा से विश्व का कल्याण चाहने वाले ऋषियों के तप से बना है। इसलिए सत्य की प्रतिष्ठा हमारे स्वभाव में है। हम परोपकार की दृष्टि रखकर सत्य को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का काम करते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे यहां जो भी आया हमने उसको स्वीकार किया। विविधता के बावजूद हमने एकता के सूत्रों को बढ़ाया। यह भी एक वास्तविकता है कि पिछले 40 हजार वर्ष से काबुल से लेकर तिब्बत और चीन से लेकर श्रीलंका तक यानी इंडो-ईरानी परिक्षेत्र के लोगों का डीएनए एक समान है। उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे ऋषियों ने अन्य उपासना पद्धतियों के अनुसार भी सत्य के अनुभूत प्रयोग किए,उन्होंने पाया कि उसमें कोई अंतर नहीं है।

एक मुस्लिम राजनीतिज्ञ से हुई एक चर्चा का दृष्टांत सुनाते हुए उन्होंने कहा कि यदि अन्य उपासना पद्धतियों को मानने वाले लोग ह्यहिन्दूह्ण को अपनी राष्ट्रीय पहचान मान लें, तो सारे विरोध समाप्त हो सकते हैं। वे मुस्लिम राजनीतिज्ञ स्वयं को हिन्दू मानते थे, इसलिए उन्होंने इस आधार पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए बनी सच्चर समिति की सिफारिशों के विरोध पर सवाल उठाया। मैंने उनसे कहा कि यदि सम्पूर्ण मुस्लिम समाज जो आप मानते हैं उसे मान ले तो विरोध की कोई वजह नहीं है।

श्री भागवत ने यह भी कहा कि हिन्दू अहिंसावादी है, किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि उसे दबाया जाए। हिन्दुओं का संगठन करना, मुसलमानों का विरोध नहीं है- यह बात हमें समझनी होगी। समाज, परिवार और राष्ट्र का रक्षण हमारा कर्तव्य है। इस कर्तव्य को जब आप पूरी तरह जान जाएंगे तो आप देखेंगे कि इस देश में कोई अहिन्दू नहीं है। जब हम अपने को जान लेंगे, जब हम अपने हिन्दू होने पर गर्व करेंगे,तब हमें विश्व में भी मान मिलेगा, प्रतिष्ठा मिलेगी। उन्होंने कहा कि हमारा किसी से विरोध नहीं है। अगर कहीं किसी का हित हो रहा हो तो हम उसमें सहयोग ही करेंगे, बाधा नहीं डालेंगे, लेकिन कोई राष्ट्रहित को चोट पहुंचाएगा तो हम उसका विरोध करेंगे। इससे पूर्व पुस्तक के लेखक श्री ओ.पी.गुप्ता ने पुस्तक की विषय-वस्तु की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में हिन्दुत्व को संक्षिप्त रूप में परिभाषित किया गया है,ताकि एक साधारण हिन्दू भी यह समझ सके कि हिन्दुत्व क्या है। पुस्तक में यह भी बताने का प्रयास किया गया है कि सरकारी नीतियों से हिन्दू-बहुल इस देश में हिन्दू दोयम दर्जे का नागरिक बन गया है।

समारोह के प्रारंभ में विवेकानन्द इन्टरनेशनल फाउण्डेशन के निदेशक श्री अजित डोवल ने कहा कि आज हिन्दुत्व के बारे में बड़ी भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। इसलिए आज के परिपे्रक्ष्य में हिन्दुत्व की सही व्याख्या करनी होगी। ह्यसंकल्पह्ण के संयोजक श्री सन्तोष तनेजा ने भी पुस्तक पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर दिल्ली के अनेक बुद्धिजीवी, सांसद और विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता उपस्थित थे। प्रतिनिधि

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