हिन्दुत्व विरोधी षड्यंत्र को सेकुलर हवा.
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.हिन्दू समाज में हमेशा हिंदू संतों – महात्माओं के प्रति अगाध श्रद्धा रही है। लोग सहज भाव से संतों के दर्शन करते हैं, उनके प्रवचन सुनते हैं। संतों की अमृतवाणी सुनकर हिंदू समाज एक नई स्फूर्ति का अनुभव करता है। आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और माता अमृतानंदमयी के प्रवचन लाखों हिंदुओं की हिंदू धर्म के प्रति आस्था और विश्वास को और अधिक अडिग बनाने काम कर रहे हैं। दुनियाभर में करोड़ों लोग उनके अनुयायी और शिष्य हैं। जहां भी उनका प्रवचन होता है वहां पर भारी संख्या में भक्तों की भीड़ जुट जाती है। यही बात कुछ कट्टरपंथियों के गले नहीं उतरती।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि कुछ कट्टरपंथी हिंदू धर्म के बारे में कुछ ना कुछ अनाप–शनाप बोलकर अपनी खीझ मिटाने की कोशिश में लगे हैं, क्योंकि हिंदू संतों की बातें, ज्ञान देश–दुनिया तक पहुंच रहा है। इसलिए कट्टरवादी मजहबी तत्व लोगों को भ्रमित कर उन्हें धर्म से भटकाने की पुरजोर कोशिश करते हैं। केरल में माता अमृतामंनदमयी (अम्मा) की लोकप्रियता के कारण उनके प्रवचनों को सुनकर बड़ी संख्या में ईसाई और मुस्लिम मजहब के लोग हिंदू धर्म स्वीकार कर रहे हैं। इन्हीं सब बातों के चलते केरल का शक्तिशाली चर्च और जिहादी मुस्लिम चिढ़े बैठे हैं।
हाल ही में ऐसे ही कुछ सेकुलरों के एक समूह ने माता अमृतानंदमयी के मठ और उनकी शिक्षाओं को लेकर ह्यसोशल साइटोंह्ण पर अनर्गल प्रलाप शुरू कर दिया है। जिसे कुछ चुनिंदा इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया समूहों द्वारा उछाला जा रहा है। दरअसल माता अमृतानंदमयी के मठ में रही आस्ट्रेलिया मूल की गेल गायत्री ट्रेडवेल ने 'होली हेल–ए मेमॉयर ऑफ फेथ, डिवोशन एंड प्योर मैडनेस' नाम से एक किताब लिखी है, जिसमें उसने अम्मा के मठ के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं। ऐसे में कट्टरपंथियों को हिंदू धर्म को लेकर बेवजह टिप्पणियां करने का मौका मिल गया है। माता अमृतानंदमयी ने उनके आश्रम को लेकर की गई टिप्पणियों को निराधार और बेतुकी बताया है। उनका कहना है कि 'मेरा आश्रम एक खुली किताब की तरह है'
इस मुद्दे पर अम्मा ने कहा कि दुर्भावना के चलते उनके मठ के बारे में ऐसे बातें प्रचारित की जा रही हैं। जो लोग ऐसी अफवाहें उड़ा रहे हैं वे हमारी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना चाहते हैं। जहां तक मठ की बात है तो वहां कुछ छिपाया नहीं जाता है। वर्ष भर की वित्तीय जानकारी और मठ को मिलने वाले 'फंड' के बारे में भी संबंधित विभागों को जानकारी दी जाती है।
उल्लेखनीय है कि गेल अम्मा के आश्रम में वर्ष 1981 से 1999 तक रही। वह अपनी किताब में लिखती हं कि मठ का बहुत सा पैसा स्विस बैंकों में जमा है। इसके अलावा भी उसने ऐसी कई बातें लिखी हैं जो सच से कोसों दूर हैं। इसमें संदेह नहीं कि सेकुलर जमात के प्रभाव में आकर उसने मठ पर सवाल खड़े करने का दुष्प्रयास किया है। प्रतिनिधि
धर्म के बारे में फैलाया जा रहा भ्रम
देश में कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर तो कभी सेकुलर होने की दुहाई देकर किसी ना किसी तरह हिंदू धर्म के बारे में गलत बातें प्रचारित करने की कोशिश हो रही है। कुछ लोग खुद को बड़े गर्व से सेकुलर कहलवा कर हिंदू धर्म, हमारे महापुरुषों के बारे में अनर्गल टिप्पणियां करते हैं, किताबें और लेख लिखते हैं। यहां तक कि इतिहास में भी तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर लोगों के सामने पेश किया जाता है। साहित्य के नाम पर समाज को हिंदू धर्म के बारे में भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में दिल्ली के साकेत स्थित एक न्यायालय में 'वेंडी डोनीगर ' द्वारा लिखित किताब ' द हिन्दूज एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' को लेकर दायर याचिका के तहत 'शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति' और इस किताब को प्रकाशित करने वाले पेंगुइन पब्लिकेशन के बीच समझौता हुआ। जिसमें इस किताब की प्रतियां बाजार से हटाने और आगे इस पुस्तक को प्रकाशित नहीं करने की बात तय हुई। इस किताब में भी हिंदू धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। समिति की तरफ से इस मामले की पैरवी करने वाली अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा की पाञ्चजन्य संवाददाता आदित्य भारद्वाज से विशेष बातचीत हुई, जिसके प्रमुख अंश इस प्रकार हैं –
कुछ लोग ऐसे मामलों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध ठहराते हैं, इस बारे में आपका क्या कहना है ?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं, इसे अनावश्यक अतिशय उदारता के तौर पर भी नहीं लिया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हिंदू धर्म, हिंदू संतों व हमारे महापुरुषों के विरुद्ध कुछ भी कहने की आजादी मुहैया कराने वाली ढाल नहीं हो सकती है। सलमान रुश्दी की किताब ह्यद सैटेनिक वर्सेज ह्ण पर सरकार मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली किताब बताकर प्रतिबंध लगा देती है। जब जयपुर में होने वाले वार्षिक साहित्य सम्मेलन में रुश्दी के आने की बात होती है तो सुरक्षा की दुहाई देकर उन्हें वहां आने से रोक दिया जाता है। यहां तक कि उनकी वीडियो कांफ्रेंसिंग पर भी रोक लगा दी जाती है, लेकिन जब हिंदू देवी देवताओं और महापुरुषों को लेकर किताबों में आपत्तिजनक बातें लिखी जाती हैं तो सरकार चुप्पी साध लेती है।
सेकुलर कहलाने वाले लोगों के इस मामले पर शोर मचाने पर आप क्या कहेंगी ?
सेकुलर लेखक और शिक्षाविद भी केवल हिंदू धर्म को लेकर ही टिप्पणी करते या लेख लिखते हैं। यदि अन्य किसी पंथ को लेकर या व्यक्ति विशेष को लेकर कोई लेख या कुछ बातें सामने आती हैं तो सब उसकी तरफदारी करने लगते हैं। यहां तक की तत्काल कार्रवाई भी कर दी जाती है।
क्या आपकी नजर में इस सांस्कृतिक– साहित्यिक हमले का कोई राजनीतिक पक्ष भी है ?
निश्चित ही इस तरह हिंदू धर्म को निशाना बनाकर किए जाने वाले साहित्यिक हमलों का राजनैतिक पक्ष है और इन्हें कुछ खास राजनैतिक पैरोकारों से समर्थन भी मिलता है। स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो द्वारा सोनिया गांधी के बारे में लिखी गई पुस्तक ह्य दा रेड साड़ी ह्ण के संबंध में अभिषेक मनु सिंघवी ने उन्हें कानूनी नोटिस भेजा था। जिसके बाद इस किताब पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया। सेकुलर सरकार सिर्फ हिंदू धर्म को लेकर चुप रहती है। इस पर यदि कोई लेख या टिप्पणी करे तो कुछ नहीं कहा जाता है।
क्या ये मामला सिर्फ साहित्य तक सीमित है ?
नहीं मैं कहना चाहूंगी कि ऐसे प्रयासों का दायरा बड़ा है और साहित्य से लेकर पाठ्य पुस्तकों तक हिंदू धर्म के बारे में गलत बातें हिंदुओं पर मढ़ने की कोशिश चल रही है। उदाहरण के तौर पर कुछ समय पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास ऑनर्स में एके रामानुजन का एक लेख 'तीन सौ रामायण' पढ़ाया जा रहा था। जिसमें माता सीता और भगवान राम के बारे में आपत्तिजनक बातें थीं। इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था। इस लेख पर हंगामा होने के बाद इस लेख को कोर्स से हटाया गया था।
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