इतिहासपशु और इतिहासपुरुष
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इतिहासपशु और इतिहासपुरुष

by
Mar 3, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Mar 2014 12:33:21

अरुणेन्द्र नाथ वर्मा

समय की किताब के पन्नों पर बने हुए चित्र धीरे-धीरे धुंधले पड़ जाते हैं। किन्तु जिनके चित्रों के रंग कभी धुंधले नहीं पड़ते ऐसे लोगों को कहते हैं 'इतिहासपुरुषह्ण़ ..पुरुष (नारी भी इसमें शामिल है) जहां होता है उसके प्रिय पशु भी तस्वीर में वहां आ खडे़ होते हैं। मानवजाति के इतिहास में इतिहासपुरुष के साथ 'इतिहासपशु' के दर्शन भी हो जाते हैं। स्वर्ग के रास्ते में अपार कष्ट उठा कर भी साथ न छोड़ने वाला युधिष्ठिर का कुत्ता इस सम्मान का पहला अधिकारी था। स्वामिभक्ति के साथ कुत्ते की दूसरी विशेषता है स्वजाति से द्वेष। स्वामी को दुम हिलाना, पर दूसरे कुत्ते को देखकर गुर्राना उसके स्वभाव में है। अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के कुत्ते 'बडी' ने, जो उनके साथ सारी दुनिया के देशों में लगभग राजकीय सम्मान पाता था, जब इतिहासपशु के रूप में समय की किताब में प्रवेश किया होगा तो वहां पहले से आसीन युधिष्ठिर के कुत्ते ने जरूर भौंककर अपनी नाराजगी जताई होगी।

प्रसिद्घ वैज्ञानिक आइजक न्यूटन के बिल्ली प्रेम की कहानियां भी विख्यात हैं। कहते हैं कि उनकी पालतू बिल्ली ने एक बार उनके वषोंर् के परिश्रम से लिखे गए वैज्ञानिक निबंधों के पुलिंदे के ऊ पर उछलकूद करके एक जलती हुई मोमबत्ती गिरा दी ,जिसके फलस्वरूप उनके वे अमूल्य कागज जल कर राख हो गए, पर न्यूटन ने इसके लिए केवल स्वयं को कोसा। यही नहीं, बिल्ली के बाहर से घूमफिर कर कमरे में वापस आने पर बार-बार दरवाजा खोलने के कष्ट से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने दरवाजे में दो छेद बनवाये, एक बड़ा छेद बिल्ली के लिए और एक छोटावाला उसके बच्चे के लिए। न्यूटन हमारे देश के रहे होते तो हम समझते कि जरूर उन्हें सरकार से कोई अनुदान मिला होगा और वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले उसे खर्च करने की जल्दी रही होगी । दरवाजे में छेद करने वाले व्यक्ति के लिए भी किसी महान नेता के नाम से चलाई गयी रोजगार योजना के तहत काम पैदा करने की जरूरत रही होगी तभी एक के बजाये दो छेद बनाए गए।

महात्मा गांधी की बकरी का नाम भी इतिहासपशुओं की सूची में दर्ज है। उसके अहिंसक दूध को पीकर गांधी ने अपनी लकुटिया को सिर्फ हवा में भांज कर अंग्रेजों को भारतभूमि से खदेड़ दिया। राणा प्रताप का घोड़ा चेतक इतिहास के पन्नांे के बीच अपनी बिजली जैसी तेज चाल दिखाता मिलेगा। दनादन दलबदल करने वाले हमारे राजनीतिक नेता ऐसी द्रुत चाल दिखा पाते तो पटना में राष्ट्रीय जनतादल के दलबदलू विधानसभा सदस्यों को सुबह अपनी पार्टी से त्यागपत्र देकर शाम तक वापस लेने में इतने घंटे न लगते। रोमन आख्यानो में रोम के निर्माता रोम्युलस और रेमस को अपना दूध पिला कर पालने वाली मादा भेडि़या अमर है। भारत में अभी इस नस्ल के भेडि़ये नहीं पाए जाते है, बच्चों के मुंह से दूध की बोतल छीन लेने वाले भेडि़ये जरूर मिल जाते हैं। पशुओं का चारा छीन झपट कर खा जाने वाले भी शायद इसी श्रेणी के जंतु माने जायेंगे। भारत का इतिहास जबतक नए ढंग से नहीं लिखा जाएगा तबतक हमें इसी किस्म के पशुओं में से इतिहासपशुओं को तलाशना पड़ेगा।

इतिहासपशु की उपाधि से सम्मानित हस्तियों में गाय का स्थान सर्वोच्च है, जिसकी पूरी जाति ही माता जैसी पूज्य है।ह्यबछिया का ताऊ ह्ण बैल इस सूची से बाहर था, पर मुंशी प्रेमचंद ने हीरा- मोती नाम वाले दो बैलों को भी अमर कर दिया। लेकिन गाय की करीबी रिश्तेदार, बेचारी भैंस हमेशा तिरस्कृत रही। यमराज की सवारी होने के कारण उसके जीवनसाथी से सब आतंकित रहते हैं। अपना पौष्टिक दूध पिला कर गोमाता जितना ही सम्मान पाने की हकदार भैंस को मां क्या ,मौसी भी नहीं माना गया। पर हर कुत्ते के दिन आते हैं तो भैंस के क्यूं नहीं आते। अंत में वह दिन भी आ ही गया जब कुछ भैंसें मलिका विक्टोरिया से भी ज्यादा मशहूर हो गयीं, जिन्हें खोजने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस ने दिन- रात एक कर दिए । पर जब स्वभाव ही दार्शनिकों जैसा तटस्थ हो तो इससे अधिक क्या होगा कि प्रसिद्घि की बीन बजती रहे और भैंस खड़ी पगुराती रहे। उसे इतिहास पशु का दर्जा मिले, न मिले, पर उसे यह सम्मान दिलानेवाला अवश्य इतिहास पुरुष कहलाने काहकदार हो गया है।

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