छोटे खरगोश की बड़ी चतुराई
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छोटे खरगोश की बड़ी चतुराई

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Feb 1, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Feb 2014 13:46:00

एक वन में हाथियों का एक झुंड रहता था। झुंड के सरदार को सभी गजराज कहते थे। वह विशालकाय, लम्बी सूंड तथा लम्बे दांतों वाला था। खंभे के समान उसके मोटे-मोटे पैर थे। उसकी चिंघाड़ से पूरा वन गूंज उठता था।
 गजराज अपने झुंड के हाथियों से बड़ा प्यार करता था। वह स्वयं कष्ट उठा लेता था,  लेकिन झुंड के किसी भी हाथी को कष्ट में नहीं पड़ने देता था, इसके कारण झुंड के सभी हाथी गजराज का बहुत सम्मान करते थे।
एक बार बारिश  न होने के कारण वन में अकाल पड़ गया। सारी, नदियां और सरोवर सूख गए, वृक्ष और लताएं भी सूख गईं। पानी और भोजन के अभाव में पशु-पक्षी वन को छोड़कर जाने लगे। वन में चीख-पुकार होने लगी, हाय-हाय होने लगी। गजराज के झुंड के हाथी भी अकाल के शिकार होने लगे। वे भी भोजन और पानी न मिलने के कारण तड़प-तड़पकर मरने लगे। झुंड के हाथियों का बुरा हाल देखकर गजराज बड़ा दुखी हुआ। वह सोचने लगा, कौन सा उपाय किया जाए, जिससे हाथियों के प्राण बचाएं जा सकें।
  एक दिन गजराज ने आपातकालीन बैठक बुलाकर सारे हाथियों को आदेश दिया कि  इस वन में न तो भोजन है न पानी है, तुम सब भिन्न-भिन्न दिशाओं में जाओ, भोजन और पानी की खोज करो। हाथियों ने गजराज की आज्ञा का पालन किया। हाथी भिन्न-भिन्न दिशाओं में छिटक गए। एक हाथी ने लौटकर गजराज को सूचना दी, यहां से कुछ दूरी पर एक दूसरा वन है। वहां पानी की बहुत बड़ी झील है। वन के वृक्ष फूलों और फलों से लदे हुए हैं। गजराज बहुत प्रसन्न हुए। उसने हाथियों से कहा कि अब हमें देर न करके तुरंत उसी वन में चले जाना चाहिए। गजराज तत्काल अपने साथियों के साथ दूसरे वन में चला गया। वहां भोजन और पर्याप्त पानी पाकर हाथी बड़े प्रसन्न हुए।
उस वन में खरगोशों की एक बस्ती थी। बस्ती में बहुत से खरगोश रहते थे। हाथी खरगोशों की बस्ती से ही होकर झील में पानी पीने के लिए जाया करते थे। हाथी जब खरगोशों की बस्ती से निकलने लगते थे, तो छोटे-छोटे खरगोश उनके पैरों के नीचे आ जाते थे। कुछ खरगोश मर जाते थे, कुछ घायल हो जाते थे।
  रोज-रोज खरगोशों के मरते और घायल होते देखकर खरगोशों की बस्ती में हड़कंप  मच गया। खरगोश सोचने लगे, यदि हाथियों के पैरों से वे इसी तरह कुचले जाते रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब उनका खात्मा हो जाएगा। अपनी रक्षा का उपाय सोचने के लिए खरगोशों ने एक सभा बुलाई। सभा में सारे खरगोश एकत्र हुए। खरगोशों के सरदार ने हाथियों के अत्याचारों का वर्णन करते हुए कहा क्या हममें से कोई ऐसा है, जो अपनी जान पर खेलकर हाथियों का अत्याचार बंद करा सके सरदार की बात सुनकर एक खरगोश बोला कि  यदि मुझे खरगोशों का दूत बनाकर गजराज के पास भेजा जाए तो मैं हाथियों के अत्याचार को बंद करा सकता हूं। 'सरदार ने खरगोश की बात मान ली और खरगोशों का दूत बनाकर गजराज के पास भेज दिया।
खरगोश गजराज के पास जा पहुंचा। वह हाथियों के बीच में खड़ा था। खरगोश ने सोचा, वह गजराज के पास पहुंचे तो किस तरह पहुंचे। अगर वह हाथियों के बीच में घुसता है, तो हो सकता है, हाथी उसे पैरों से कुचल दे। यह सोचकर वह पास ही की एक ऊंची चट्टान पर चढ़ गया। चट्टान पर खड़ा होकर उसने गजराज को पुकारकर कहा, गजराज, मैं चंद्रदेव का दूत हूं। चंद्रदेव के पास से तुम्हारे लिए एक संदेश लाया हूं।
 चंद्रदेव का नाम सुनकर, गजराज खरगोश की ओर आकर्षित हुआ। उसने खरगोश की ओर देखते हुए कहा,  तुम चंद्रदेव के दूत हो? बताओ मेरे लिए क्या संदेश लाए हो? खरगोश बोला, हां गजराज मैं चंद्रदेव का दूत हूं। चंद्रदेव ने तुम्हारे लिए संदेश भेजा है। सुनो, तुमने चंद्र देव की झील का पानी गंदा कर दिया है। तुम्हारे झुंड के हाथी खरगोशों को पैरों से कुचल-कुचलकर मार डालते हैं। चंद्र देव खरगोशों को बहुत प्यार करते हैं, उन्हें अपनी गोद में रखते हैं। वे तुमसे बहुत नाराज हैं। तुम सावधान हो जाओ। नहीं तो चंद्र देव तुम्हारे सारे हाथियों को मार डालेंगे। खरगोश की बात सुनकर गजराज भयभीत हो उठा। उसने खरगोश को सचमुच चंद्रदेव दूत और उसकी बात को सचमुच उनका संदेश समझ लिया उसने डर कर कहा यह तो बड़ा बुरा संदेश है। तुम मुझे तुरंत उनके के पास ले चलो। मैं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करूंगा।
 खरगोश गजराज को चंद्रदेव के पास ले जाने के लिए तैयार हो गया। उसने कहा, ह्यमैं तुम्हें चंद्रदेव के पास ले चल सकता हूं, पर शर्त यह है कि तुम अकेले ही चलोगे।' गजराज ने खरगोश की बात मान ली। पूर्णिमा की रात थी। खरगोश गजराज को लेकर झील के किनारे गया। उसने गजराज से कहा गजराज मिलो चंद्रदेव से ' खरगोश ने झील के पानी की ओर संकेत किया। गजराज ने पानी में पूर्णिमा के चंद्रदेव की परछाई को ही चंद्रदेव मान लिया।
गजराज ने चंद्रमा से क्षमा मांगने के लिए अपनी सूंड पानी में डाल दी। पानी में लहरें पैदा हो उठीं, परछाई अदृश्य हो गई। गजराज ने पूछा दूत चंद्रदेव कहां चले गए ?
खरगोश ने उत्तर दिया, वे तुमसे नाराज हैं। तुमने झील के पानी को अपवित्र कर दिया है  तुमने खरगोशों की जान लेकर पाप किया है इसलिए चंद्रदेव तुमसे मिलना नहीं चाहते।  गजराज ने खरगोश की बात सच मान ली । उसने डर कर कहा क्या ऐसा कोई उपाय है जिससे चंद्रदेव मुझसे प्रसन्न हो सकते हैं?
 खरगोश बोला, लेकिन तुम्हें प्रायश्चित करना होगा। तुम कल सवेरे ही अपने झुंड के हाथियों को लेकर यहां से दूर चले जाओ। चंद्रदेव तुम पर प्रसन्न हो जाएंगे।' गजराज तैयार हो गया। वह दूसरे दिन हाथियों के झुंड सहित वहां से चला गया। इस तरह बुद्धिमान खरगोश की चालाकी ने बलवान गजराज को धोखे में डाल दिया और उसने अपनी बुद्घिमानी के बल से ही खरगोशों को मृत्यु के मुख में जाने से बचा लिया। 
शिक्षा:  यदि बुद्धि का प्रयोग किया जाए तो बड़ी से बड़ी विपत्ति से भी निबटा जा सकता है। पंचतंत्र से साभार

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