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योगेन्द्र और बृजमोहन का रोजगार छिना, पर जोश में कमी न आई
-राहुल शर्मा-
उत्तराखंड में जून, 2013 में आई त्रासदी के मात्र चित्र या टीवी पर दृश्य देखने से ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कुछ समय के लिए इस भयावह स्थिति के बारे में सोचते ही मस्तिष्क भी काम करना बंद सा कर देता है। लेकिन गुप्तकाशी में रा.स्व.संघ. के दो स्थानीय कार्यकर्ता केदारघाटी में सेना और वायुसेना के कमान संभालने से पहले अपने प्राणों की चिंता किए बगैर संकट में फंसे लोगों की मदद को कूद पडे़ थे। लेकिन तब सैकड़ों लोगों के प्राणों की रक्षा करने वाले सेवाभावी युवक योगेन्द्र और बृजमोहन रोजगार की समस्या से भी जूझ रहे हैं। दोनों जिन ईकाइयों में कार्यरत थे, वहां से उन्हें वेतन मिलना बंद हो गया है।
रुद्रप्रयाग में रहने वाले योगेन्द्र राणा केदारनाथ त्रासदी के समय गिरीदेव ऐविएशन कंपनी में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत थे, लेकिन आज बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। उत्तराखंड से बात करते हुए उन्होंने बताया कि 16 जून को अचानक केदारनाथ और आसपास जल प्रलय आने पर किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था। केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने देश के विभिन्न हिस्सों से गए श्रद्धालु प्रलय की चपेट में फंसे हुए थे। 17 जून आते-आते स्थिति नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी और चारों ओर हाहाकार मच चुका था। वर्षा भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। ऐसे में योगेन्द्र, कै प्टन भूपेन्द्र (गुड़गांव में रा.स्व.सघं. के संपर्क प्रमुख और हरियाणा के प्रांत संघचालक मेजर करतार सिंह के सुपुत्र) कैप्टन अंगद और पिनेकल एयर में ऑपरेशन एवं ब्रिकी विभाग के महाप्रबंधक रहे बृजमोहन बिष्ट ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वे हर हाल में केदारनाथ जाकर स्थिति का जायजा लेंगे और जितना होगा लोगों की मदद करेंगे। लेकिन इस कार्य के लिए उनके संस्थान ने अनुमति देने से मना कर दिया और साथ ही कोई अप्रिय घटना होने की सूरत में किसी प्रकार की जिम्मेवारी लेने से भी हाथ खड़े कर दिए।
दृढ़ निश्चय कर ये सभी अपने प्राणों और परिवार क ी चिंता किए बिना 17 जून की शाम हेलीकॉप्टर लेकर केदारनाथ की ओर रवाना हो गए। मौसम खराब होने की वजह से उन्हें गरुड़ चट्टी से ही वापस लौटना पड़ा पर जो कुछ भी वहां उन्होंने देखा उससे इन सभी के दिल दहल गए। हर तरफ लाशों के ढेर लगे थे। वाहन खिलौनों की तरह पानी में बह रहे थे और हजारों लोग अपने प्राणों की रक्षा के लिए उन्हें हाथ दिखाकर मदद की गुहार कर रहे थे। इन्होंने नीचे पहुंचकर रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक और विमानन विभाग के अपर प्रमुख सचिव को स्थिति स्पष्ट कर दी। इसके बाद 18 जून की सुबह से ही निजी हेलीकॉप्टर की मदद से इन लोगों ने राहत कार्य शुरू कर दिया। यह कार्य सुबह 6 बजे से लेकर शाम के 6 बजे तक जारी रहा था।
इनके लिए सबसे बड़ी चुनौती हेलीपैड बनाने की थी, जो कि बरसात में नष्ट हो चुके थे। योगेन्द्र राणा और बृजमोहन बिष्ट ने बारी-बारी से करीब 7 फुट ऊंचाई से हेलीकॉटर से कूदकर लोगों की मदद से पहले हेलीपैड तैयार किए और फिर मुसीबत में फंसे श्रद्धालुआंे को सुरक्षित स्थान पर पहंुचाने का काम शुरू किया। 19 जून को घोड़ा पड़ाव पर फंसे तीर्थ यात्रियों को सुरक्षित निकाला गया। 20 जून को रामबाड़ा में अभियान चलाया गया। 20 जून से वायुसेना के हेलीकॉप्टर भी राहत कार्य में जुट गए थे। इस दौरान गौरी कुंड और रामबाड़ा के बीच फंसे लोगों को बाहर निकालने का कार्य शुरू किया गया। इस बीच रुद्रप्रयाग के एडीएम से भी इन जांबाजों ने पूछा कि यदि इस कार्य में उन्हें कोई क्षति पहंुची तो उस स्थिति में क्या उनके परिजनों को कुछ मदद मिलेगी? इस पर प्रशासन ने चुप्पी साध ली और कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। इसके बाद वायुसेना के विंग कमांडर निखिल नायडू(अभी गणतंत्र दिवस पर शौर्य चक्र से सम्मानित किए गए) की मदद से आगे का अभियान शुरू किया गया।
21 जून को लोगों को सुरक्षित निकालने के दौरान एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसके बाद कुछ समय के लिए इन लोगों की हिम्मत जवाब दे चुकी थी। इस दौरान आपदा प्रबंधन के सदस्य भी मदद के लिए वहां पहंुच चुके थे। वापस बेस पर पहंुचकर सभी ने योगेन्द्र और बृजमोहन को थकान के कारण आगे अभियान में हिस्सा न लेने की सलाह दी, लेकिन ये लोग नहीं माने क्योंकि पूरे इलाके के चप्पे-चप्पे से बखूबी परिचित थे। यही कारण था कि अभियान में जुटी वायुसेना का दल भी इनका सहयोग लेकर आगे बढ़ रहा था। 22 जून को फिर से रामबाड़ा व गरुड़ चट्टी के बीच फंसे एक दंपति को बचाने के लिए योगेन्द्र हेलीकॉप्टर में वायुसेना कर्मी के साथ सवार हो गए। दंपति जिस जगह पर फंसे थे, वहां उतरना बेहद चुनौतीपूर्ण और खतरनाक था क्योंकि जंगल के कारण हेलीकॉप्टर ज्यादा नीचे नहीं उतारा जा सकता था। रस्सी के सहारे जंगल में उतरकर योगेन्द्र ने दंपति को सावधानीपूवर्क हेलीकॉप्टर में चढ़ाया। उस दंपति से बात की तो पता चला कि एक व्यक्ति ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहंुचाने के नाम पर उनसे एक लाख रुपये लिए थे, लेकिन वह उन्हें बीच रास्ते में ही छोड़कर भाग गया था। वे पति-पत्नी महाराष्ट्र के अकोला के रहने वाले थे जिनके 13 वर्षीय बेटे की प्यास के कारण रास्ते में ही मौत हो गई थी। इसके बाद योगेन्द्र बद्रीनाथ के लिए राहत अभियान में जुट गए। योगेन्द्र का कहना है कि उन्होंने राहत कार्य में जोखिम किसी स्वार्थ से नहीं उठाया था, यह सब उन्हें परिवार से संस्कारों में मिला।
रुद्रप्रयाग के ही रहने वाले बृजमोहन बिष्ट बताते हैं कि 18 जून को जब वे हेलीकॉप्टर से केदारनाथ मंदिर गए थे तो उस समय सब कुछ जलमग्न होने से द्वीप सा बन चुका था। उन्होंने मंदिर के पीछे दो मकानों के बीच में फंसी एक महिला को अपनी जान पर खेलकर सुरक्षित बचा लिया। इसके अलावा हेलीपैड नष्ट होने से उन्हें लोगों की मदद से तैयार करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इन्होंने रामबाड़ा, केदारनाथ मंदिर के पीछे और जंगल चट्टी में हेलीपैड तैयार किए। तभी से लगातार 23 सितम्बर तक प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को राहत सामग्री पहंुचाने के लिए बृजमोहन जुटे रहे। सेना, वायुसेना और आपदा प्रबंधन की टीम के साथ उन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया। राशन, कपड़े और दवाएं बंटवाने में वे आगे रहे। जल प्रलय के कारण मुख्य मार्गों से कटे गांवों को जोड़ने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनका कहना है कि देश में आपदा प्रबंधन विभाग केवल नाम के लिए है। वास्तव में आपदा प्रबंधन के कार्य का किसी को अनुभव नहीं होता है। व्यवस्था में गलत लोगों के बैठे होने के कारण लोगों को सही तरीके से मदद नहीं मिल पाती है। ऊपर से प्रशासन का ढुलमुल रवैया भी काफी कष्ट देता है। बृजमोहन अपने साथी तरुण कुमार राय के साथ मिलकर 2465 किलोमीटर राफ्टिंग का रिकॉर्ड भी बना चुके हैं, जो कि लिमका बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है। इस दौरान भी इन्होंने यमुना से किनारे जुड़े गांवों और कस्बों में रहने वालों को जल प्रदूषण रोकने के सुझाव दिए थे। इसके अलावा सभी जगह से पानी के नमूने लेकर भी जांच के लिए दिए थे। इन्हें रुद्रप्रयाग के पुलिस अधीक्षक ने भी साहसिक कार्य करने के लिए त्रासदी के दौरान समाचार पत्र व संबंधित कागजात लेकर बुलाया था, लेकिन उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई।
दिल्ली में सम्मानित
दिल्ली सम विकास ट्रस्ट द्वारा 1 फरवरी को फिक्की सभागार में उत्तराखंड त्रासदी में सराहनीय योगदान देने वाले दोनों नायक बृजमोहन बिष्ट और योगेन्द्र राणा को सम्मानित किया गया।
किसी संस्था द्वारा पुरस्कृत किया जाना गौरव की बात है। लेकिन अच्छा हो कि योगेन्द्र राणा और बृजमोहन बिष्ट को स्थायी रोजगार देने के लिए सरकार या अन्य संस्थाएं आगे आयें। अगर पाञ्चजन्य के पाठकों में से कोई इनकी इस दृष्टि से मदद कर सकता है तो यह और आनंद की बात होगी। इस हेतु पाञ्चजन्य के माध्यम से उनसे संपर्क किया जा सकता है।
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