सप्ताह का साक्षात्कार - 'हथकंडे न अपनाते तो पश्चिम एशिया में सिमटे रहते इस्लाम और ईसाइयत'
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सप्ताह का साक्षात्कार – 'हथकंडे न अपनाते तो पश्चिम एशिया में सिमटे रहते इस्लाम और ईसाइयत'

by
Dec 27, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Dec 2014 15:10:10

आगरा में हुई कन्वर्जन की घटना के बाद जिस तरह से एक राजनीतिक बवंडर बनाकर इसे प्रस्तुत किया गया वह असल में एक सामूहिक भय है। कहीं यह पूरा बवंडर समाज में बढ़ती कन्वर्जन के प्रति बढ़ती जागरूकता एवं गिरते मिशनरियों के भाव के कारण तो नहीं है? पाञ्चजन्य ने इस अंक में अपनी एक पड़ताल में इस सच का खुलासा कर दिया है कि कैसे मिशनरियां देश में अपने पैर पसार रही हैं। कन्वर्जन के संदर्भ में कठमुल्लों की धमकियों का शिकार एवं निर्वासन का जीवन व्यतीत कर रहीं बंगलादेश की चर्चित लेखिका तसलीमा नसरीन से विशेष बातचीत की अश्वनी कुमार मिश्र ने,प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:-
ल्ल आपने अभी कुछ दिन पहले कहा था कि भारत में जिस प्रकार इस्लाम ने अपने पैर फैलाए हैं वह जबरन कन्वर्जन का ही परिणाम है। आप कहना क्या चाह रही थीं?
वैसे तो मत या संप्रदाय के प्रति आस्था रखना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। लेकिन इस्लाम और ईसाई मतावलंबियों ने अपने-अपने मत-पंथों को फैलाने के लिए हर उस तरीके को अपनाया जिसे सही नहीं कहा जा सकता। लोगों को धमकाया गया,प्रताड़ना दी गई,लालच दिया गया और कू्रर से कू्ररतम व्यवहार किया गया। अगर ये तरीके नहीं अपनाये जाते तो इस्लाम और ईसाइयत पश्चिमी एशिया के दायरे के बाहर नहीं आ पाते।
ल्ल जिस प्रकार कन्वर्जन को लेकर मुसलमानों और ईसाइयों में भय का माहौल बना हुआ है, ऐसा पारसियों एवं यहूदियों में क्यों नहीं, वे भी तो इस देश में अल्पसंख्यक हैं?
मेरा मानना है कि हिन्दू और यहूदी ऐसे धर्म- और संप्रदाय हैं, जो कन्वर्जन के लिए ईसाई और इस्लाम की तरह तरकीबें नहीं भिड़ाते हैं। इनमें कोई भी स्वेच्छा से जो चाहता है वह हिन्दू और यहूदी धर्म और संप्रदाय को अपना सकता है। ये प्रकृति से ही उदारवादी हैं।
ल्ल वर्तमान में जो कन्वर्जन हो रहा है, उसे आप कैसे देखती हैं?
हाल फिलहाल में भारत में बड़े पैमाने पर मुसलमान हिन्दू धर्म के प्रति आकर्षित होकर आ रहे हैं। हमारे विचार में यह कोई समस्या नहीं है। किसी को भी जबरन कन्वर्ट न किया जाए। भय और असुरक्षा पैदा करके कुछ समय पहले ये सभी जबरन हिन्दू से मुसलमान बनाए गए थे। ईसाइयों में कन्वर्जन के लिए अलग से 'फंड' होता है जो पैसे का लालच देकर जबरन कन्वर्जन कराते हैं। आज जब वह अपने जीवन को सुरक्षित देखकर अपने मूल धर्म में स्वेच्छा से जा रहे हैं,तो इसे कन्वर्जन नहीं कहा जाना चाहिए। हिन्दू संगठन इसे घर वापसी कह कर उनको स्वीकार कर रहे हैं,हमें इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता।
ल्ल भारतीय मुसलमानों के बारे में आपकी क्या राय है?
भारत में जितने भी मुसलमान हैं, उनमें से अधिकांश पहले हिन्दू ही थे। भारतीय वर्ण व्यवस्था में फैली कुछ विसंगतियों के चलते कन्वर्ट हुए थे। ईसाई मिशनरियों ने हिन्दू समाज केअभिन्न अंग वंचित समाज,जो हिन्दुओं की जाति प्रथा के चलते कटे हुए थे एवं अशिक्षा का जिनमें अभाव था जैसे लोगों को ही निशाना बनाया । हालांकि बहुत से हिन्दुओं को लालच देकर या फिर उन्हें कत्ल की धमकी देकर भी मुसलमान बनाया गया है। साथ ही यदि हिन्दू और मुसलमान की शादी की बात होती है तो अधिकांश मामलों में हिन्दू को कन्वर्ट होकर इस्लाम स्वीकार करना पड़ता है पर वहीं ठीक इसके विपरीत मुसलमान यदि किसी हिन्दू से शादी करता है तो ऐसा होता ही नहीं है।
ल्ल आस्था और कन्वर्जन की इस खींचतान पर आप क्या कहेंगी?
आज बड़ी मात्रा में लोभ के चलते एक बड़ा वर्ग अपना मत बदलने में कोई हिचकिचाहट नहीं करता। किसी भी मत को मानने का अधिकार सार्वभैमिक है। यदि घर,कार, राजनीतिक दल,पति और पत्नी तक को बदला जा सकता है तो एक व्यक्ति अपना किसी मत के प्रति विश्वास क्यों नहीं बदल सकता? व्यक्ति को स्वाभाविक रूप से अपना मत बदलने का अधिकार होना चाहिए,जब भी वह किसी मत को पसंद करना चाहे। कोई भी व्यक्ति कोई भी मत स्वीकार कर सकता है क्योंकि यह उसका अधिकार है। मैं अपने बचपन से ही किसी भी मजहब को मानने के लिए स्वतंत्र रही हूं। कोई भी बच्चा जब जन्म लेता है तो वह किसी मजहब का नहीं होता और न ही वह किसी मत को लेकर पैदा होता है। यह उसके अभिभावकों के विश्वास पर निर्भर करता है कि वे किस पंथ को मानते हैं। एक तरह से बच्चे पर मजहब को थोपा जाता है। मजहबी संगठन बच्चों को इसका सबसे पहले निशाना बनाते हैं क्योंकि वे आसानी से कहानी और घटनाएं सुनकर प्रभावित हो जाते हैं। इन्हें तरह-तरह के प्रलोभन व भय दिखाकर इनका 'बे्रन वाश' किया जाता है, क्योंकि वयस्क आदमी आसानी से इनके झांसे में नहीं आता।
ल्ल कन्वर्जन रोकने के लिए कन्वर्जन विरोधी कानून की मांग हो रही है, आप इस कानून के बनने से सहमत हैं?
वैसे जो अभी कन्वर्जन विरोधी कानून की बात हो रही है, मेरे विचार से इस कानून के बन जाने से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला। इससे मूल मुद्दे दूर चले जाएंगे। क्योंकि हर व्यक्ति का स्वतंत्र रूप से सोचने का एवं उसके अनुसार रहने का अधिकार है। कानून बनने से वह अधिकार से वंचित हो जायेगा। इससे जिस मत-पंथ के पिजड़े में वह बंधा हुआ है, लाख परेशानी के बावजूद उसी में बंध के रह जायेगा और बाहर नहीं निकल पायेगा। यदि संविधान, मानवाधिकार एवं प्रजातंत्र को स्वीकृति देता है तो यह कानून विधिक रूप से पारित नहीं होगा। मेरा मानना है कि मानवता को जिंदा रहना चाहिए। केवल धर्म के बल पर कोई संस्कृति जीवंत नहीं रह सकती। एक-दूसरे के प्रति प्रेम,मानवता,दया की भावना ही एक-दूसरे मनुष्य को प्राप्त करनी चाहिए। स्वतंत्र विचार,तार्किक सोच,वैज्ञानिक सोच,अंधविश्वास से दूर रहकर समग्र रूप से मानवता को बचाया जा सकता है।
ल्ल क्या आप मानती हैं कि भारत की तरह पाकिस्तान और बंगलादेश सहित अन्य मुस्लिम देशों में भी अल्पसंख्यकों को उतने ही अधिकार प्राप्त हैं ?
पाकिस्तान और बंगलादेश के मुकाबले भारत बहुत ज्यादा उदारवादी है। यहां पर अल्पसंख्यकों को कहीं ज्यादा अधिकार प्राप्त हैं और बोलने की स्वतंत्रता है, जबकि बाकी मुस्लिम बहुल देशों में ऐसा नहीं है।
ल्ल भाजपा को छोड़कर भारत के तमाम राजनीतिक दल कन्वर्जन विरोधी कानून को लाने के पक्ष में नहीं हैं। आपका इस पर क्या
कहना है?
मैं विश्वास करती हूं कि कन्वर्जन व्यक्ति का अधिकार है। हिन्दू कन्वर्ट होकर मुस्लिम मत अपना सकता है और मुस्लिम हिन्दू बन सकता है। यदि कोई कन्वर्ट होना चाहता है तो वह कन्वर्ट क्यों नहीं हो सकता? ल्ल

पूर्वोत्तर राज्यों की कुल आबादी में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत
जनगणना असम अरुणाचल नागालैंड मणिपुर मिजोरम त्रिपुरा मेघालय
वर्ष प्रदेश
1951 24.68 – 0.24 6.44 0.03 21.44 2.30
1961 25.30 0.30 0.24 6.23 0.08 20.14 2.99
1971 24.56 0.18 0.57 6.62 0.57 6.68 2.60
1981 – 0.80 1.52 6.99 0.45 6.75 3.10
1991 28.43 1.38 1.71 7.27 0.66 7.13 3.46
2001 30.09 1.9 1.8 8.8 1.1 8.00 4.3

पूर्वोत्तर राज्यों की कुल आबादी में ईसाई आबादी का प्रतिशत

जनगणना असम अरुणाचल नागालैंड मणिपुर मिजोरम त्रिपुरा मेघालय
वर्ष प्रदेश
1951 2.00 – 46.04 11.84 90.52 0.82 24.66
1961 2.43 0.51 52.98 19.49 86.63 0.88 35.21
1971 2.61 0.79 66.77 26.07 1.01 46.98
1981 – 4.32 80.22 29.68 83.81 1.21 52.61
1991 3.32 10.29 87.47 34.12 85.73 1.69 64.58
2001 3.7 18.7 90 34.00 87.00 3.2 70.3

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