आवरण कथा:कठिन डगर, मजबूत कदम
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

आवरण कथा:कठिन डगर, मजबूत कदम

by
Nov 22, 2014, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 22 Nov 2014 16:33:12

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रशांत बाजपेई

ब कहा जाता है कि किसी देवी या देवता की आठ या छह भुजाएं थीं तो संभवत: उसका अर्थ होता है कि उनके पास उनका हाथ बनकर काम करने वाले उतने योग्य लोग थे। भारत मां के पास ऐसी ढाई सौ करोड़ भुजाएं हैं।' ये शब्द हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के। 17 नवम्बर को वे आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स राज्य की राजधानी सिडनी में उत्साह से छलकते भारतवंशियों के बीच बोल रहे थे।
आपसे सवाल पूछा जाए कि एक राष्ट्र के रूप में भारत की कौन सी ऐसी शक्ति है जो सारे विश्व में अपना प्रभाव दर्ज करवाती है तो आपका उत्तर क्या होगा? आर्थिक शक्ति? नाभिकीय शक्ति? या सैन्य शक्ति? एक ऐसी ताकत है जो इन सबसे बढ़कर भारत की मजबूत साख बनाती है। वह है विश्व में बिखरा हुआ भारतीय समाज। यह भारत की ऐसी क्षमता है जिसका कभी भी पूरा लाभ नहीं उठाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आस्ट्रेलिया दौरे,फिजी के प्रवास या अमरीका यात्रा में कूटनीतिक वार्ताएं भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए थीं, परन्तु इन सभी में एक बात समान रही। वह बात है, वहां बसे भारतवंशियों से सीधा संवाद कायम करना और सरोकारों को संस्कृति से जोड़ना।
सिडनी के अल्फॉन्स एरीना में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मोदी ने आस्ट्रेलिया के लिए भारतवासियों के योगदान को याद किया और साथ ही भारतीयों की अपने पोषक समाज की जड़ों और मूल्यों को पुष्ट करने की परंपरा का भी स्मरण दिलाया। फिजी में उन्होंने फिर एक बार भारतीय मूल के लोगों के भाव जगत को स्पर्श करने का सफल प्रयास किया जैसा कि अमरीका में किया था। मोदी और भी बहुत कुछ साधने की कोशिश कर रहे हैं। भारत के सामने चुनौतियां भी बहुत हैं। 26 मई 2014 के बाद भारत की रीति-नीति बदलाव के नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। भारत अंतरराष्ट्रीय राजनीति के छाया युद्घ में या खेल मैदान में ताल ठोंक रहा है। नरेंद्र मोदी की 11 नवम्बर को प्रारम्भ हुई 10 दिन की आसियान, आस्ट्रेलिया और फिजी की यात्रा पूरी होने के साथ ही 26 मई 2014 को प्रारम्भ हुए सफर का एक चरण पूरा हुआ लगता है।
सुरक्षा, स्थिरता और विकास
आस्ट्रेलिया की संसद में मोदी के भाषण के बाद19 नवम्बर को वहां के नामी अखबार सिडनी मॉनिंर्ग हेराल्ड में राजनैतिक पत्रकार व स्तंभकार जूडिथ आयरलैंड ने लिखा-'मोदी के भाषण के बाद सांसद सम्मान में खड़े हुए, लेकिन वे सिर्फ विनम्रता नहीं दिखा रहे थे। यदि संसद अध्यक्षा ने उन्हें अनुमति दी होती तो वे सीटी बजाते, चिल्लाते और दौड़कर (मोदी के पास) मंच पर चढ़ जाते।' वास्तव में आस्ट्रेलिया के सत्ता-प्रतिष्ठान और विपक्ष ने भारत के प्रति नए दृष्टिकोण और दूरगामी नीतियों के संकेत दिए हैं। भारत जब अपने क्षेत्र में दृष्टि डालता है तो कई प्राथमिकताएं उभरकर आती हैं। भारत के सामने अपनी विशाल जनसंख्या को आर्थिक विकास के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए, अपनी युवा आबादी को रोजगार उपलब्ध करवाने की चुनौती है। इसके लिए उसे अपने क्षेत्र में स्थिर तथा सुरक्षित व्यापार मार्ग खोलने की आवश्यकता है। भारत को कई पड़ोसियों से उसकी आतंरिक-बाह्य सुरक्षा और संप्रभुता को चुनौती मिल रही है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र, जिसे अब भारत-प्रशांत धुरी भी कहा जाने लगा है, वहां भारत समेत सभी क्षेत्रीय देश, छोटे हों या बड़े, चीन के बढ़ते हस्तक्षेप और इस कारण व्यापार मागोंर् की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में भारत मित्र और साझेदार तलाशने निकल पड़ा है।
आस्ट्रेलिया के नीति-निर्धारकों के सामने, संसद में बोलते हुए, मोदी ने भारत की आकांक्षाओं को इस प्रकार उद्धृत किया-'युवाओं को शिक्षा और कौशल, हर घर में बिजली, जटिलतम बीमारियों के लिए अतिसहजता से उपलब्ध चिकित्सा, अगली पीढ़ी का आधारभूत ढांचा जो पर्यावरण की बली न चढ़ाए, ऊर्जा उत्पादन, जो हमारे ग्लेशियरों को न पिघलाए, स्वच्छ ईंधन, अक्षय ऊर्जा, रहने लायक 'स्मार्ट सिटी', अवसर उपलब्ध करवाने वाले गांव, अधिक से अधिक प्रदान करने वाली कृषि, बाजार से सीधे जुड़े खेत, पानी की बचत करने वाली आदतें और तकनीक।'
समुद्र और क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को लेकर भारत-आस्ट्रेलिया की आशंकाओं को स्वर देते हुए मोदी ने कहा- 'हम सभी चाहते हैं कि हमारे शहर सुरक्षित रहें। देश सुरक्षित रहें। परन्तु आज जब सभी देशों की अंतरनिर्भरता बढ़ रही है, तब भी क्षेत्र में कई ऐतिहासिक विवाद हैं। समुद्र हमारी जीवनरेखा हैं, लेकिन आज उनकी सुरक्षा तथा आवागमन को लेकर हम चिंतित हैं। हमें इसे हलके में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि शांति और स्थिरता से ही हमारे क्षेत्र में प्रगति हो रही है। भारत और आस्ट्रेलिया अपना सुरक्षा सहयोग बढ़ाकर तथा अपनी अंतरराष्ट्रीय साझेदारी में वृद्घि करके क्षेत्र की शांति में योगदान दे सकते हैं।'
'हमें सम्पूर्ण क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण करना होगा। ऐसी व्यापार पहलों की रोकथाम करनी होगी, जो राजनैतिक प्रतिस्पर्धा का औजार बन रही हैं।' इसके पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एबट ने मोदी को भाषण के लिए आमंत्रित करते हुए प्रथम विश्व युद्घ में भारतीय सैनिकों के योगदान और बलिदान का स्मरण किया। उन्होंने आगे कहा, 'भारत चीन की तरह ही एशिया की उभरती हुई महाशक्ति है। ऐसी महाशक्ति, जो एक लोकतंत्र भी है। आस्ट्रेलिया हिन्द महासागर में भारत के सामर्थ्य का समर्थक है। अगले साल के अंत तक भारत-आस्ट्रेलिया के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाएगा।'
आस्ट्रेलिया के साथ समुद्री सुरक्षा तथा सैनिक सहयोग पर बोलते हुए मोदी ने द्विपक्षीय तथा त्रिपक्षीय संबंधों के बारे में कहा। यह तीसरा पक्ष जापान है, जो दक्षिणी चीन सागर में चीन की थानेदारी से त्रस्त है। अपनी जापान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया था कि भारत और जापान को मिलकर विकासवाद का उदाहरण खड़ा करना चाहिए। जापान चीन की बढ़ती आक्रामकता और चीन द्वारा उसकी संप्रभुता को निरंतर दी जा रही चुनौतियों से चिंतित है। ऐसे में जापान भारत को अपना स्वाभाविक साथी व हितचिंतक मानता है। भारत-जापान संबंध प्रगाढ़ रहे हैं। इस बार रक्षा-व्यापार व सांस्कृतिक संबंधों को नयी ऊंचाई देने का प्रयास किया गया। तकनीक स्थानांतरण पर भी बात बढ़ी। 'काशी-कयोटो' और मोदी के 'डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी एंड डिमांड', बुलेट ट्रेन आदि की तो भारतीय मीडिया में खूब चर्चा हुई, परंतु एक अति महत्वपूर्ण संकेत सुर्खियों से प्राय:अछूता रह गया।
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2012 में कहा था, 'मैं आह्वान करता हूं कि आस्ट्रेलिया, भारत, जापान तथा अमरीका मिलकर हिंद महासागर से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर तक के समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक हीरक (चतुष्क) बनाएं।'
उल्लेखनीय है कि भारत की उसके समुद्री क्षेत्र में नौसैनिक घेराबंदी करने की चीन की रणनीति को 'मोतियों की माला' सिद्घांत (स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स) कहा जाता है। मोदी-आबे संयुक्त प्रेस वार्ता में भी समुद्री सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया। ऐसे में आबे द्वारा 2012 में किया गया आह्वान एक ठोस वास्तविकता बन सकता है। आस्ट्रेलिया और अमरीका भी चीन को लेकर गंभीर रूप से आशंकित हैं। आसियान देश भी इस समुद्री क्षेत्र में बढ़ती चीनी नौसैनिक गतिविधियों से चिंतित हंै। हिंद महासागर से लेकर, मलक्का से होकर जापान तक के इस जलमार्ग से प्रतिदिन 200 के लगभग जहाज गुजरते हैं। ऐसे में 'एशिया-प्रशांत से भारत-प्रशांत' तक का यह परिवर्तन गहरे मायने रखता है।

यह संयोग ही है कि जवाहरलाल नेहरू की 125वीं जयन्ती के अवसर पर भारत में एक ऐसी सरकार सत्तासीन है जो गुटनिरपेक्षता के सिद्घांतवाद में बिना उलझे विश्व की सभी असरदार शक्तियों से बेझिझक हाथ मिला रही है। भारत की नयी विदेश नीति किसी सिद्धांत पर आधारित न होकर आवश्यकताओं पर आधारित है।
मोदी रूस और अमरीका से समान गर्मजोशी से मिल रहे हैं। इस मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सोच भी व्यावहारिक पक्ष पर केंद्रित रहने की ही थी, परन्तु कांग्रेस और गठबंधन के आतंरिक दबावों के आगे वेे विवश नजर आते थे। मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में एक घटना का उल्लेख किया है कि परमाणु समझौते को लेकर जब ईरान के खिलाफ वोट करने की नौबत आई तो किस प्रकार तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने मीडिया में छपवाया कि यह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का निर्णय है (सिंह ने इस पर आपत्ति जताई थी), और किस प्रकार विमान यात्रा के दौरान कांग्रेस के 'थिंक टैंक' कहे जाने वाले मणिशंकर अय्यर ने ईरान के विषय पर अमरीकी रुख के साथ जाने के इस फैसले पर हंगामा मचा दिया था और कहा था कि वे एक कट्टर कम्युनिस्ट हैं और अमरीका विरोधी हैं।
इस सबके विपरीत मोदी ने वीसा मामले की कटुता को भारत-अमरीका संबंधों के बीच नहीं आने दिया और मोदी सरकार से संबंधों की डोर बढ़ाने को आतुर ओबामा प्रशासन की ओर हाथ बढ़ाया। साथ ही वे यह बताने से नहीं चूके कि द्विपक्षीय सम्बन्ध लेन-देन पर आगे बढ़ते हैं।
फलस्वरूप कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण तथा संयुक्त राष्ट्र में हाय-तौबा मचाने के पाकिस्तान के प्रयास औंधे मुंह गिरे ही, साथ ही नियंत्रण रेखा पर तनाव पैदा करके और इस आधार पर अफगानिस्तान में उलझे नाटो देशों को ब्लैकमेल करके तीसरे पक्ष को बीच में लाने के उसके प्रयासों को कोई भाव नहीं मिला। मोदी के साथ अमरीका गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल मोदी के आने के बाद वहीं रुके रहे थे। भारत से जुड़े आतंक सम्बन्धी मामलों पर डोवल की अमरीकी सुरक्षा सलाहकार से बातचीत के बाद आई.एस.आई. मुख्यालय में सरगर्मियां बढ़ गईं। अमरीका भारत में व्यापार की संभावनाओं का लाभ तो उठाना चाहता ही है, लेकिन एशिया-प्रशांत तथा हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थिरता व शान्ति के लिए भारत को मजबूत धुरी के रूप उभरता भी देख रहा है। मोदी-ओबामा वार्ता में पश्चिम एशिया की बदलती परिस्थितियों तथा अफगानिस्तान के भविष्य पर हुई चर्चा भारत की नयी भूमिका का संकेत है।
आसियान में बढ़ता कद
मोदी भारत के सबसे सक्षम आर्थिक-वाणिज्य 'सेल्समैन' बनकर उभरे हैं। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं कि आसियान जाने के पूर्व मोदी के कार्यालय में आसियान देशों के नेताओं की ओर से मिलने का समय लेने की होड़ लगी रही। यह एक अच्छा संकेत है। अपनी सारी खूबियों के बावजूद आसियान देशों की एक ही बात के लिए आलोचना होती आई है और वह है लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए विशेष प्रयास न करने का आरोप। कारण है म्यांमार। आसियान की स्थापना के बाद ही म्यांमार ने अराजकता और खूंरेजी के कई दौर देखे। संयोग था कि बैठक म्यांमार में ही होनी थी। पिछले कुछ दशकों में पश्चिमी देशों ने म्यांमार का बहिष्कार कर रखा था, भारत भी उसके प्रति उदासीन बना रहा। ऐसे में अलग-थलग पड़े म्यांमार को चीन ने लगभग अपने उपनिवेश में ही बदल डाला। आज म्यांमार में हर जगह और हर तरफ चीन ही दिखाई पड़ता है। चीन यहां पर आधारभूत ढांचे से लेकर ऊर्जा उत्पादन, बंदरगाह निर्माण, सैन्य उत्पादन वगैरह सब जगह छाया हुआ है। गौरतलब है कि म्यांमार आसियान समेत सारे दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत का भू-प्रवेश द्वार है।
पड़ोसी साथ तो ताकत दुगुनी
पड़ोसियों के साथ के समीकरणों का देश की शांति, सुरक्षा और प्रगति पर गहरा असर होता है। क्षेत्रीय अथवा वैश्विक शक्ति बनने की भारत की राह भी पास-पड़ोस के छोटे-छोटे गलियारों से होकर जाती है। नेपाल में माओवादी गठजोड़ के उदय के बाद से ही भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जा रही थीं। भूटान भी बहुत उत्साहपूर्ण नहीं था और स्वयं को अलग-थलग महसूस कर रहा था। ये दोनों पड़ोसी देश भारत की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से अहम हैं। नेपाल के माओवादियों के भारतीय नक्सलवादियों से गहरे संबंध हैं। भूटान भी लगातार चीन के निशाने पर है।
भूटान की परिस्थितियां भारत के पूवार्ेत्तर राज्यों की आंतरिक सुरक्षा पर असर डालती हैं। प्रधानमंत्री ने जब देश के बाहर कदम रखा तो सबसे पहले इन्हीं दोनों देशों का आतिथ्य स्वीकारा। वहां पर दिल खोलकर पारस्परिक हितों की बातें कीं। नेपाल की संविधान सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा था, 'जब आपको ठंड लगती है, तो हमें भी ठंड लगती है।' अपने पूर्ववर्तियों से थोड़ा हटकर मोदी ने चीन के नेपाल में बढ़ते प्रभाव की रोकथाम करने का प्रयास किया। अब बंगलादेश व श्रीलंका में बहुत सावधानी से बढ़ने की आवश्यकता है। दोनों को चीन फुसला रहा है।
बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद अभी चीन होकर आई हैं। वहां उन्होंने चीन के नेतृत्व वाली इक्कीसवीं शताब्दी में सक्रिय भागीदारी करने की इच्छा व्यक्त की। बंगलादेश के हथियार आयात में 82 प्रतिशत हिस्सा चीन का है। दोनों देशों ने चटगांव में चीनी आर्थिक-निवेश क्षेत्र बनाने का समझौता किया है। साथ ही सोनादिया द्वीप को चीन बंदरगाह के रूप में विकसित करने जा रहा है। सोनादिया में उपस्थिति से चीन का हिंद महासागर में प्रभाव बढ़ेगा तथा उसे एक और वैकल्पिक ऊर्जा व व्यापार मार्ग उपलब्ध हो जाएगा। श्रीलंका से संबंधों को दक्षिण भारत की तमिल राजनीति की छाया से दूर विकसित करने का प्रयास आरंभ किया गया है।
वियतनाम चीन के साथ खूनी लड़ाई झेल चुका है और आज भी अपनी सीमाओं को लेकर आशंकित है। सितंबर माह में भारत ने चीन की नाराजगी को दरकिनार करते हुए वियतनाम के साथ अति महत्वपूर्ण व्यापार व रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस तरह निरंतर आक्रामक रहे चीन का पिछला दरवाजा खटखटाना एक महत्वपूर्ण पग है। दक्षिण चीन सागर में चीन की थानेदारी से परेशान वियतनाम लंबे समय से भारत से युद्घपोत भेदी ब्रह्मोस मिसाइल खरीदना चाह रहा था। भारत ने इस पर वियतनाम को हरी झंडी दे दी है। भारत वियतनाम को 100 मिलियन डालर के नौसैनिक पोत व साजोसामान भी बेच रहा है, बदले में वियतनाम ने भारत की पेट्रोकेमिकल कंपनी ओएनजीसी विदेश लिमिटेड को दक्षिण चीन सागर में तेल की खुदाई के लिए आमंत्रित किया है। कह सकते हैं कि आत्मविश्वास से भरी भारतीय कूटनीति ने इस क्षेत्र में नये उत्साह का संचार किया है। भारत 2015 तक इस क्षेत्र में अपने द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन डालर तक ले जाने की योजना बना रहा है। भारत, म्यांमार, थाईलैंड के बीच त्रिपक्षीय सड़क-रेल परिवहन की योजना बन रही है।
भारत ने अपने पास-पड़ोस में पग बढ़ाना शुरू किया तो प्राय: सभी ओर से उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं आईं। अपनी दस दिन की विदेश यात्रा के अंतिम पड़ाव में जब मोदी फिजी पहुंचे तो फिजी के प्रधानमंत्री फ्रेंक बेनीमरामा उनका स्वागत करने हवाई अड्डे पर पहुंचे।
विदेश नीति और कूटनीति के कुछ आधारभूत सिद्घांत हैं। सर्वप्रथम तो यही है कि आप कौन है और क्या हैं। आप शुरुआत करते हैं या प्रतिक्रिया देते हैं? फिलहाल, इस नयी यात्रा के प्रारंभ पर भारत के पास उत्साहित होने के लिए कई कारण और भेदने के लिए अनेक लक्ष्य हैं।

ड्रैगन और गजराज आमने-सामने

विगत कुछ दशकों से भारत के अन्य पड़ोसियों से संबंधों का ठहराव चीन के लिए मौका बन गया। पाकिस्तान को उसने भारत के खिलाफ मोहरा बनाया, जबकि अन्य पड़ोसियों के असंतोष को भुनाने के लिए उसने बांहें चढ़ा लीं। चीन ने इन देशों की ओर हाथ बढ़ाकर भारत के चारों ओर रणनीतिक व्यूह खड़ा करने का प्रयास किया। चीन 1965 के बाद से ही पाकिस्तान को शस्त्रों से सुसज्जित करने में लगा है। उसने पाकिस्तान को टैंक, मिसाइल, लड़ाकू विमान से लेकर परमाणु बम तक का डिजाइन उपलब्ध करवाया। साथ ही आर्थिक-कूटनीतिक संबंध दृढ़ किए। फलस्वरूप पाकिस्तान ने चीन को उसके अवैध कब्जे वाले कश्मीर में सड़क और आधारभूत ढांचे के निर्माण तथा खनन के लिए आमंत्रित किया। चीन ने पाकिस्तान के अरब सागरतट पर विशाल नौसैनिक बंदरगाह ग्वादर विकसित किया, जिसे सड़क, रेलमार्ग द्वारा पाक कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर से होकर चीन से जोड़ दिया गया। इससे चीन की पश्चिम एशिया के तेल क्षेत्रों तथा अफ्रीका के व्यापार मार्ग तक सीधी पहुंच हो गई, साथ ही भारत के पश्चिम में चीनी नौसेना की उपस्थिति दर्ज होने लगी। पाकिस्तान को इससे सीधा फायदा तो मिला ही, उसने अपने कब्जे वाले कश्मीर में चीन के हितों को जोड़कर भारत की चुनौती को दुहरा कर दिया। चीन ने हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में भी कदम रखा। श्रीलंका में उसने हम्बनटोटा और बर्मा में सीटवे, क्यूक्फ्यू, हाइंगई व तननथलाई बंदरगाह तैयार किये। बर्मा ने अंदमान-निकोबार के समीप कोको द्वीप भी चीनी नौसेना को सौंप दिया। इसके अतिरिक्त चीन ने इन सभी देशों के साथ व्यापारिक-कूटनीतिक संबंध गहरे किए एवं प्राय: सभी का शस्त्र आपूर्ति करने वाला मुख्य देश बन गया। बर्मा भी ऐसा ही एक लाभार्थी था।
चीन की इस घेराबंदी के जवाब में भारत की 'पूर्व की ओर देखने' (लुक ईस्ट) की नीति रही है। मोदी सरकार ने इसे नया आयाम देते हुए 'एक्ट ईस्ट' नीति नाम दिया है। इसके अंतर्गत सभी आसियान देशों (इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनेई, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम) से व्यापारिक व सामरिक संबंध सुदृढ़ करने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की गई है। वार्ता की मेज पर आने के पहले सीमा पर तनाव पैदा करना चीन की पुरानी पर हमेशा परिणाम देने वाली चाल रही है। इस बार भी चीन ने वही किया, परंतु चाल काम न आई। भारतीय सुरक्षा बलों ने सीमा पर चीनी दुस्साहस का संयत, लेकिन दृढ़ प्रतिरोध किया। भारतीय सीमा में चीन द्वारा बनाई जा रही सड़क को हमारे सैनिकों ने खोदकर अलग कर दिया। चीन से व्यापार और सहयोग पर बातचीत के साथ प्रधानमंत्री ने स्पष्टता से कह दिया कि व्यापार तभी फल-फूल सकता है, जब सीमाओं पर शांति हो। तभी दलाई लामा का बयान आया कि चीनी राष्ट्रपति को भारत के शांतिप्रिय वातावरण से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। इसी बीच तिब्बती प्रदर्शनकारी वार्ता स्थल तक पहुंच गए। जिनपिंग ने दीवार पर लिखी इबारत अवश्य ही पढ़ ली होगी।अरुणाचल मामले पर चीन ने अपनी धौंस इस कदर जमा रखी थी कि प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के अरुणाचल दौरे पर आपत्ति दर्ज कराने का दुस्साहस तक कर डाला था। 15 अक्तूबर को चीन ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर मैक्मोहन रेखा के समानांतर भारत द्वारा सड़क निर्माण की योजना पर कड़ा एतराज जताया। लेकिन16 अक्तूबर को ही केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बयान दिया कि 'भारत एक शक्तिशाली देश है, कोई हमें धमका नहीं सकता।'

पड़ोस से संबंधों का ककहरा

किसी भी देश के पड़ोसी देशों से उसके संबन्धों का प्रभाव उसकी आंतरिक-बाह्य सुरक्षा तथा आर्थिक विकास-व्यापार पर पड़ता है। भारत में वस्तुओं, सेवाओं, आधारभूत ढांचे और तकनीक का विशाल बाजार है। साथ में, प्राकृतिक संसाधन, युवा कार्यबल और बड़ी संख्या में इंजीनियर और मैनेजर हैं, बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। आसियान देशों तक सड़क व रेलमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। ये व्यापार मार्ग विकास को तरसते पूवांर्चल राज्यों का भाग्य पलट सकते हैं।
आसियान भारत के दक्षिण-पूर्व में स्थित दस देशों का आर्थिक-राजनैतिक संगठन है। इसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनेई, कम्बोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम शामिल हैं। आसियान देशों की संयुक्त शक्ति मिलाकर वे विश्व में छठवें नम्बर की अर्थव्यवस्था हैं। आसियान के चीन, जापान, कोरिया, भारत, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते हैं। 2012 तक भारत-आसियान व्यापार 70 बिलियन डॉलर प्रतिवर्ष था। चीन ने आसियान देशों के साथ विश्व के सबसे बड़े मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना की है। लक्ष्य है 2015 तक चीन-आसियान व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

यह युद्ध नहीं, राष्ट्र का आत्मसम्मान है! : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऑपरेशन सिंदूर को सराहा, देशवासियों से की बड़ी अपील

शाहिद खट्टर ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

मोदी का नाम लेने से कांपते हैं, पाक सांसद ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

ऑपरेशन सिंदूर पर बोले शशि थरूर– भारत दे रहा सही जवाब, पाकिस्तान बन चुका है आतंकी पनाहगार

ड्रोन हमले

पाकिस्तान ने किया सेना के आयुध भण्डार पर हमले का प्रयास, सेना ने किया नाकाम

रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब कुछ शेष नहीं: भारत इन्‍हें जल्‍द बाहर निकाले

Pahalgam terror attack

सांबा में पाकिस्तानी घुसपैठ की कोशिश नाकाम, बीएसएफ ने 7 आतंकियों को मार गिराया

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

यह युद्ध नहीं, राष्ट्र का आत्मसम्मान है! : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऑपरेशन सिंदूर को सराहा, देशवासियों से की बड़ी अपील

शाहिद खट्टर ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

मोदी का नाम लेने से कांपते हैं, पाक सांसद ने पीएम शहबाज शरीफ को बताया गीदड़

ऑपरेशन सिंदूर पर बोले शशि थरूर– भारत दे रहा सही जवाब, पाकिस्तान बन चुका है आतंकी पनाहगार

ड्रोन हमले

पाकिस्तान ने किया सेना के आयुध भण्डार पर हमले का प्रयास, सेना ने किया नाकाम

रोहिंग्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अब कुछ शेष नहीं: भारत इन्‍हें जल्‍द बाहर निकाले

Pahalgam terror attack

सांबा में पाकिस्तानी घुसपैठ की कोशिश नाकाम, बीएसएफ ने 7 आतंकियों को मार गिराया

S-400 Sudarshan Chakra

S-400: दुश्मनों से निपटने के लिए भारत का सुदर्शन चक्र ही काफी! एक बार में छोड़ता है 72 मिसाइल, पाक हुआ दंग

भारत में सिर्फ भारतीयों को रहने का अधिकार, रोहिंग्या मुसलमान वापस जाएं- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

शहबाज शरीफ

भारत से तनाव के बीच बुरी तरह फंसा पाकिस्तान, दो दिन में ही दुनिया के सामने फैलाया भीख का कटोरा

जनरल मुनीर को कथित तौर पर किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है

जिन्ना के देश का फौजी कमांडर ‘लापता’, उसे हिरासत में लेने की खबर ने मचाई अफरातफरी

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies