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उत्तर प्रदेश भारतीय जनसंघ के चतुर्थ अधिवेशन के संभावित प्रस्ताव
लखनऊ। स्थानीय झंडेवाले पार्क में आगामी 31दिसंबर तथा 1जनवरी को होनेवाले उत्तर प्रदेश भारतीय जनसंघ के चतुर्थ अधिवेशन में दो मुख्य प्रस्ताव रखे जानेवाले हैं। प्रथम तो यह कि 'लगान आधा हो'और दूसरा यह कि शिक्षा सस्ती हो।
शिक्षा लोकतंत्र की सफलता की आधारभूत शर्त है किन्तु हम देख रहे हैं कि कांग्रेस शासन के अन्तर्गत वह निरन्तर महंगी होती जा रही है। छात्र तथा अभिभावक किताबों के बोझ और फीस की बढोत्तरी से बुरी तरह परेशान है।
अत: उत्तर प्रदेश भारतीय जनसंघ ने अपने इस अधिवेशन से शिक्षा सस्ती हो की मांग करने का निश्चय किया है। इसके लिए जनमत संगठित करके सरकार को उसकी उचित मांग मानने के लिए बाध्य किया जाएगा।
जहां 'सस्ती शिक्षा'नागरिक जीवन की इस समय प्रमुख आवश्यकता है। वहंा 'लगान आधा हो'हमारे किसान की इस समय प्रमुख मांग है। इसीलिए भारतीय जनसंघ उत्तर प्रदेश ने इस अधिवेशन में अपने नाम को सार्थक करते हुए जनता की दो प्रमुख मांगों को हाथ में लेने का विचार किया है।
इस अधिवेशन में 'कुटीर उद्योग प्रदर्शनी'तथा 'महिला सम्मेलन' विशेष आकर्षण रहेंगे। प्रदर्शनी का उद्घाटन दिनांक 29 दिसम्बर को सायंध्काल साढ़े पांच बजे होगा।
इस अवसर पर भारतीय जनसंघ के अनेक अखिल भारतीय नेताओं का भी आगमन हो रहा है। पं. पे्रमनाथ डोगरा जी, श्री देवप्रसाद घोष, श्री दीनदयाल उपाध्याय, श्री उमाशंकर त्रिवेदी (संसद सदस्य) तथा श्री अटलबिहारी वाजपेयी आदि।
यह अधिवेशन प्रदेश की राजधानी में हो रहा है। इसलिये इसका और भी महत्व बढ़ गया है। अधिवेशन की सफलता के लिये काफी जोर शोर से तैयारियां की जा रही हैं। प्रदेश के संगठन मन्त्री श्री नानाजी देशमुख तथा सहायक संगठन मन्त्री श्री रामप्रकाश जी की प्रत्यक्ष देख-रेख में तैयारियां हो रही हैं।
कहीं हम 'लाल' गुलामी की ओर तो नहीं बढ़ रहे?
सरसंघचालक श्री गुरुजी की चेतावनी
दिल्ली।'हमारी तरुण पीढ़ी को प्रत्येक सम्माननीय अतिथि के आगे नतमस्तक होना सिखाया जाता है। यह तो ठीक वैसा ही है जैसे कि होटल के नौकरों को हरेक गा्रहक को सलाम करना सिखाया जाता है। यदि हमारे बच्चों को इन होटल के नौकरों जैसे संस्कार दिए गए तो इस राष्ट्र का क्या होगा? यह एक गंभीर प्रश्न है।'ये शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने दिल्ली के प्रतिष्ठित नागरिकों की एक गोष्ठी में कहे।…
औद्योगिक प्रदर्शनी में विदेशी प्रचार
इस अवसर पर श्री गुरुजी ने कई महत्वपूर्ण तथा विचारणीय बातें कहीं। आपने कहा कि 'यहां आयोजित औद्योगिक प्रदर्शनी में मैं गया तो देखा कि कुछ देशों ने इसको अपने राजनीतिक विचारों के प्रचार का साधन बना रखा है। रूसी तथा चीनी दुकानों पर मैंने बड़े-बड़े राजनीतिक नारे लिखे दिखे यह, मैं समझता हूं कि हमारी उदारता का दुरुपयोग'
रूसी नेताओं द्वारा प्रशंसा क्यों?
श्रीगुरुजी ने रूसी नेताओं द्वारा की गई भारत की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा के संबंध में बोलते हुए कहा,'इस प्रशंसा को हमें विवेक के साथ ग्रहण करना चाहिए।'साथ ही आपने कहा कि 'जब वे लोग स्वयं अपने देश में तो अन्य किसी दल का अस्तित्व भी सहन नहीं कर सकते सह-अस्तित्व की बातें करने लगते हैं तो हमंे उनके शब्दों का हूबहू अर्थ नहीं लेना चाहिए। वो जो बोलते हैं उसका अर्थ हमेशा वही नहीं होता जो वो कहते हैं'
संधियां देश की रक्षा नहीं कर सकतीं
आपने पंचशील की चर्चा करते हुए कहा 'पंचशील एक मधुर एवं मोहक शब्द है। परन्तु स्मरण रहे ये घोषनाएं तथा संधियां किसी देश को बचा नहीं सकतीं। चीन के नए नक्शों में पहले ही भारत तथा नेपाल के हिमालय वाले प्रदेशों के कई भागों में दिखाया जा रहा है। तिब्बत को वो अपना 'आंतरिक मामला'पहले ही घोषित कर चुकें हैं। कहीं नेपाल को भी तो वे अपना आंतरिक मामला बताने की दिशा में कदम नहीं बढ़ा रहे,चीनियों के इरादे क्या हैं?हमें पता नहीं' यहां यह स्मरणीय है कि श्री गुरुजी ने इससे पूर्व बातचीत के सिलसिले में डा. के.आई. सिंह के नेपाल प्रवेश के पीछे चीन कम्यूनिस्ट सरकार का हाथ होने का संकेत दिया था।
कहीं हम कम्युनिस्ट गुलामी की ओर तो नहीं?
आपने इसी प्रसंग में आगे कहा कि 'मुझे कई बार आश्चर्य मालूम पड़ता है कि कहीं हम दुबारा गुलामी की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं- कम्युनिस्ट आधिपत्य की गुलामी। जबकि अभी अंग्रेजों की गुलामी हम पूरी तरह उखाड़ नहीं पाये हैं। हमें बताया जाता है कि राष्ट्रमंडल में हम पूर्णतया स्वतंत्र हैं जैसे कि किसी कैदी को एक बड़े 'वार्ड' में घूमने-फिरने की स्वतंत्रता मिल जाय। मैं आपसे इतना अवश्य कह सकता हूं कि मुझे देश में कहीं सच्ची स्वतंत्रता के दर्शन नहीं होते। किसी को भी इसका अनुभव नहीं होता'
विशुद्ध राष्ट्रीय भावना की आवश्यकता
श्री गुरुजी ने इस समस्या का एकमात्र हल बताते हुए कहा कि'गुलामी के इन दोनों प्रकार से बचने का एकमात्र उपाय है आपका स्वत्ंात्र राष्ट्रीय पथ बनाना विशुद्ध राष्ट्रीय भावना के आधार पर ही राष्ट्र सुदृढ़ हो सकता है। और हम सब लोगों को स्वीकार करना चाहिए कि भारतवर्ष में हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है।'
आपने आगे कहा कि 'हमारे सेकुलर मित्र पूछते हैं कि मुसलमानों तथा ईसाइयों का क्या होगा। हिन्दुओं ने तो अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। अब यह इन समाज के नेताओं का काम है कि वे अपनी स्थिति बतायें कि उनका अधिष्ठान क्या है। यह उनके अपने निर्णय का प्रश्न है।'
अंत में आपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दू संगठन संबंधी विचार तथा कार्यक्रम पर बल दिया।
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