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से.नि. कर्नल (डॉ.) तेज के. टिक्कू
जब यह पता लगता है कि कश्मीर में हैदर नाम की कोई फिल्म का फिल्मांकन हो रहा है तो हमें खुद यह अपेक्षा करनी चाहिए कि यह क्या दिखाएगी। इसका सीधा संदेश उग्रवादियों के लिए माफी और हमारी सेना की मात्र आलोचना होती है। पिछले 25 वर्षों से कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित उग्रवाद को मीडिया सहित बॉलीवुड पूरी तरह एकतरफा दिखा रहे हैं। यह मीडिया ही था जिसने घाटी में 1989-90 के दौरान 4 लाख से भी अधिक कश्मीरियों के पलायन पर पूरी तरह आंखें मूंद ली थीं। कई अलग-अलग घटनाचक्रों के साथ वॉलीवुड में पिछले कुछ वर्षों से डी कम्पनी और आईएसआई की साठगांठ वॉलीवुड को जकड़े हुए हैं। फिल्मों के निर्माण में इनके धन प्रवाह को सभी जानते हैं।
हैदर पूरी तरह से एकतरफा पक्ष लेकर चलती है। पिछले 25 वर्षों में पाकिस्तान द्वारा पोषित, धन से बढ़े उग्रवाद की चपेट में आए असंख्य निर्दोष लोगों के प्रति यह अन्यायक है। दुर्भाग्य से विशाल भारद्वाज ने गलत पक्ष को ही चमकाने का प्रयास किया है, जो शांतिपूर्ण कश्मीर में हिंसा और अशांति के लिए उग्रवादियों की भूमिका पर वे कुछ नहीं कहते। सामान्यत: सूफी इस्लाम पर आधारित कश्मीरियत का राग अलापने वाले हैदर और उसके आकाओं ने किस प्रकार यहां का विध्वंस किया है। इसको निर्देशक ने पूरी तरह उपेक्षित कर रखा है। क्या विशाल भारद्वाज को पाकिस्तान आयातित उग्रवादियों द्वारा चारों ओर फैलाया हुआ जान और माल का विध्वंस नहीं दिखायी देता है जिसमें हजारों कश्मीरियों को मौत के घाट उतार दिया गया? उन 4 लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों का क्या हुआ जिनके घर इतिहास की जानकारी मिलने तक कश्मीर में माने जाते थे? उनके घरों, संपत्ति, उनके बगीचों और असंख्य धर्मस्थलों के विषय में क्यों चिंता नहीं की गई? जब ये अल्पसंख्यक अपने जीवन को बचाने के लिए भाग रहे थे उस समय 3 हजार से भी अधिक निहत्थे लोगों को कैसे मारा गया था? उस खूनी खेल, जिहाद की चिल्लाहटों और इस्लाम स्वीकारने की धमकी के बीच में कैसे कश्मीरी पंडित भागे थे, इन दृश्यों को क्यों कोई याद नहीं करता या फिल्माता है? क्या भारद्वाज इन सब बातों को नहीं जानते?
मीडिया के लोगों के लिए सेना पर आक्रमण करना बहुत आसान हो गया है और करने के लिए सबसे आसान चीज यही लगती है। वे जानते हैं कि सैनिक बहुत सख्त अनुशासन के तहत संचालित होता है और वह प्र्रतिक्रिया भी नहीं करेगा। हैदर फिल्म में भी विशाल भारद्वाज ने यही राह पकड़ी है। उनकी फिल्म में सेना अंधेरे में दिखायी गयी है और कश्मीर घाटी में सेना की उपस्थिति उत्तरी वजीरिस्तान या पाकिस्तान के कानूनरहित फाटा की तरह है जहां पाकिस्तानी, तालिबानी और हक्कानी का नेटवर्क सबकुछ चलाते हैं। फिल्म में मार्तंड मंदिर को शैतानी घर की तरह दिखाया गया है और फिल्म के मुख्य चरित्र यहां शैतानी नाच करते हुए दिखायी देते हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर को शैतानी घर दिखाने से पहले कुछ नहीं सोचा विशाल भारद्वाज ने । इस फिल्म के मार्गदर्शन के लिए बशरत पीर और उनकी पुस्तक ह्यद कर्फ्यूड नाईटह्ण को चुना जो कि स्पष्ट रूप से पिछले 15 वर्षों में कश्मीर में घटित उग्रवाद का एकतरफा वर्णन करती रही। विशाल भारद्वाज जैसे निर्माता के पूरे विश्व में बड़ी संख्या में प्रशंसक हैं। उन्हें इस फिल्म में यह संदेश देने से पहले सचेत होना चाहिए था। हम सभी को यह भय है कि हैदर पूरी तरह से कश्मीर की त्रासद स्थिति का एकपक्ष दिखाएगी और हैदर उन्हें न तो एक भारतीय की तरह और नहीं एक गंभीर फिल्म निर्देशक की तरह कोई श्रेय दिला पाएंगी।
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