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-आलोक गोस्वामी
66 सालों से इस देश की बुनियाद को बैठाने मंे लगी वंशवादी बेल पर सवार राहुल गांधी जिस तरह कंग्रेसी दिग्गजों और ़10, जनपथ के दरबारियों के नए हुजूरेआला बनकर उभरे हैं उससे यह बात तो साफ हो गई है कांग्रेसी संस्कृति के लिहाज से कुर्सी पर मनमोहन सिंह के दिन अब गिनती के ही बचे हैं। इस परिस्थिति ने राहुल के तेवरों में अक्खड़पन और बयानबाजी में जमीनी सच्चाई को ठेंगे पर रखने की खतरनाक ठसक को उजागर करके रख दिया है। अपनी युवराजी रौ में बहके राहुल को अब शायद इन बातों का भी ध्यान नहीं रहता कि वह जो तीर छोड़ रहे हैं वह घूम-फिर कर उन्हीं की ओर आते हैं।
उनकी कुछ ऐसी ही लिजलिजी भ्रष्टाचार पर उनकी संतई दिखाने वाले बयानों पर हो रही है। अभी 21 दिसम्बर को दिल्ली में फिक्की के समारोह में भाषण देते हुए वे कुछ ज्यादा ही बहक गए और भूल गए कि जो बोल रहे हैं उसके छंींटें उन्हीं के उजले कुर्त-बंडी को कालिख लगा रहे हैं। बोलने के लिए उन्होंने विषय भी चुना तो वह भ्रष्टाचार जिसकी सबसे बड़ी दोषी उनकी कांग्रेस पार्टी है और जनता इस बात को भली भांति देख-जांच चुकी है इसलिए चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसे ऐसी पटखनी दी कि पार्टी को मुंह छुपाना भी मुश्किल हो रहा है।
भारत के उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के सामने राहुल ने माना कि चार राज्यों में पार्टी चुनावी चौसर पर चारों खाने चित्त हुई है। लेकिन उनके भाषण नवीस ठीक इसी बिन्दु पर गच्चा खा गए और भाषण में लिख गए कि देश को भ्रष्टाचार लीले जा रहा है जिसको दूर करने के लिए इस पर फौरन अंकुश लगाना जरूरी है। इसी झोंक में उन्होंने संसद में पारित लोकपाल विधेयक का जिक्र करते हुए अपने हाथों अपनी ही पीठ थपकने की बेशर्म कोशिश की। देश को शायद अपनी बपौती समझने वाले युवराज भूल गए कि एक अण्णा नाम के व्यक्ति हैं जो बरसों से भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल कानून बनाए जाने की मुहिम चलाए हुए हैं और संसद में विशेयक लाने के लिए कांग्रेस मजबूर हुई भी है तो सिर्फ और सिर्फ अण्णा की वजह से, नहीं तो क्या कारण था कि 40 से ज्यादा सालों से यह विधेयक पारित होने का इंतजार करता रहा? इस दरम्यान रहीं कांग्रेस की केन्द्र सरकारों ने क्यों नहीं लोकपाल पर गंभीरता से विचार किया और क्यों 2010 में राहुल गांधी ने लोकसभा में भाषण झाड़कर मामले को रफा-दफा कराकर अण्णा को एक प्रकार से धोखा दिया?
लेकिन राहुल गांधी इतने पर ही नहीं रुके। भ्रष्टाचार दूर करने के प्रति अपनी उतावली दिखानी थी सो फौरन महाराष्ट्र में वहां की चव्हाण सरकार द्वारा आदर्श सोसायटी की जांच रपट को कूड़े की टोकरी में डालने को गलत ठहरा दिया और मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की नींदें उड़ा दीं। उसमें दाग लगे थे तो कांग्रेस नेताओं पर ही, जिसे चव्हाण सामने लाते भी तो कैसे। शरद पवार ने मौका ताड़ा और फौरन बयान झाड़ा कि भई, चव्हाण ने हमसे पूछे बिना ही रपट टेबल के नीचे सरका दी जबकि महाराष्ट्र सरकार में 50 टका हिस्सेदारी हमारी भी है। पता चला है कि अब चव्हाण ने हुजूरेआला को खुश करने की गरज से जांच रपट तो खुलवाई है पर ठीकरा उन नौकरशाहों पर फोड़ने की पूरी तैयारी के साथ जिन्होंने ह्यसेवा कायदों का उल्लंघनह्ण किया है। अपने नेताओं को चव्हाण यह कहकर बचाने में लगे हैं कि उनके अपराध करने का सबूत नहीं है।
लेकिन मुद्दा यह नहीं है कि राहुल ने महाराष्ट्र सरकार को लताड़ लगाई और भ्रष्टाचार से लड़ने की अपनी थोथी इच्छा जताई, मुद्दा यह है कि दिल्ली से 1500 किलोमीटर दूर मुम्बई पर नजर डालने वाले राहुल को दिल्ली से महज 250 किलोमीटर पर स्थित चंडीगढ़ में कांग्रेस की हुड्डा सरकार के कारनामे नजर क्यों नहीं आए जिन्होंने तमाम लोकतांत्रिक और प्रशासनिक मर्यादाओं को ठेंगा दिखाते हुए दामाद राबर्ट वाड्रा के आगे पूरी सरकार को नतमस्तक करा दिया और अरबों-खरबों की जमीन औने-पौने दाम पर दामाद जी को घुटने के बल बैठकर तश्तरी में परोस कर दी? 58 करोड़ के इस वाड्रा-डीएलएफ सौदे को उजागर करने वाले हरियाणा के लोकसेवक आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को दामादजी पर उंगली उठाने का खामियाजा एक बार नहीं, बार-बार भुगतना पड़ा है। खेमका ने दिलेरी भरा फैसला करते हुए हरियाणा के भू पंजीकरण महानिरीक्षक के नाते वह सौदा रद्द करके उस पर जांच बैठा दी थी। लेकिन चार उपायुक्तों ने जांच की जो रपट सौंपी उसमें वाड्रा को पाक साफ ठहरा दिया था, जो जाहिर है किसी दबाव में तैयार की गई थी। खेमका ने वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटेलिटी और डीएलएफ के बीच कई सारे फर्जी लेनदेन की कलई खोली थी। हरियाणा सरकार ने जिस तरह दामादजी की सेवा में पलक-पांवड़े बिछाए थे वह सबके सामने आ चुका था। खेमका ने तो यहां तक दावा किया था कि अगर बीते आठ सालों के दौरान हुए घपलों की फेहरिस्त बनाएं तो यह 20 हजार-3.5 लाख करोड़ से कम का घोटाला नहीं होगा।
लेकिन वाड्रा का कुछ होना नहीं था सो नहीं ही हुआ, पर खेमका की बदली करके उन्हें बीज विकास निगम में भेज दिया गया। खेमका की साफगोई अब तक उनक ी 40 से ज्यादा बार बदलियां करा चुकी है। दामादजी यानी वाड्रा इस वक्त भारत में भ्रष्टाचारियों के सिरमौर बने हुए हैं। लेकिन उनके खिलाफ न जांच होगी, न उनकी तरफ कोई उंगली उठाएगा। ऐसे में राहुल के भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के कसीदों में वाड्रा का उल्लेख न होना कांग्रेसी संस्कृ ति के जानकारों को हैरत में नहीं डालता। लेकिन देश की जनता युवराज की इस ह्यसेलेक्टिव टार्गेटिंगह्ण से हैरान है। इस पर टिप्पणी करते हुए राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने ठीक ही कहा कि राहुल के तेवर बनावटी थे। वे खुद को मीडिया के सामने अलग सा दिखाना चाहते हैं जबकि वे खुद भ्रष्टाचार में गले तक डूबी पार्टी के ही हिस्से हैं। कांग्रेस उन लालू यादव से हाथ मिलाती है जो आज भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके हैं। जेटली ने सही कहा कि कभी कभार जोश नहीं, भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार संघर्ष करना पड़ता है। कांग्रेस वह पार्टी है जो 2 जी, राष्ट्रमंडल खेल और कोयला घोटाले जैसे महाघपलों में शामिल है।
वैसे राहुल को भ्रष्टाचार के आरोप में सदा घिरे रहने वाले हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी याद नहीं आए जिनके खिलाफ घोटाले के आरोप के चलते उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था, हिमाचल में भी उन पर घपलों के आरोप हैं। अरुण जेटली ने आरोप लगाया कि वी. चंद्रशेखर नाम के व्यवसायी ने वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को 1.5 करोड़ और 2.4 करोड़ के ह्यऋणह्ण दिए थे। वीरभद्र ने, जेटली के अनुसार, 2002 में चंद्रशेखर की कंपनी को जलविद्युत परियोजना के लिए हरी झंडी दिखाई थी।
कांग्रेस आज भले अपने नेताओं और दामादजी पर लगे आरोपों को खारिज करे पर यह बात भी दिन के उजाले की तरह उजली है कि केन्द्र में कांग्रेसनीत सरकार के रहते कम से कम वंश के ऊपर कोई जांच नहीं बैठाई जाएगी। भ्रष्टाचार के खिलाफ मीनार पर खड़े होकर भाषण देना सरल है, मुश्किल है तो अपने गिरेबां में झांकना। तब बोफर्स से लेकर आज 2जी, राष्ट्रमंडल खेल, कोयला खदान आवंटन, वाड्रा-डीएलएफ करार…. तक कांग्रेस की झोली में घोटालों की भरमार है, पर नहीं है तो उन पर कार्रवाई करने की ईमानदार कोशिश और सीने में देशभक्त जिगर।
अथ कांग्रेस भ्रष्टाचार कथा
0 वीरभद्र ने वी. चंद्रशेखर की कंपनी को जलविद्युत परियोजना लगाने की दी छूट, बदले में उनको और उनकी पत्नी को मिले कथित 1.5 और 2.4 करोड़ रु. के ह्यऋणह्ण। चन्द्रशेखर ने वीरभद्र के बेटे और बेटी की कंपनी को दिया ब्याज-मुक्त, अरक्षित 1.99 करोड़ का ऋण।
0 राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में बड़े पैमाने पर धांधली की गई। देश को करीब 8000 करोड़ का चूना लगाया गया। दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सहित कई कांग्रेसी नेताओं पर दाग लगे। कलमाडी जेल गए, पर ज्यादातर अब भी सजा से दूर। शुंगलू जांच समिति पर शीला सरकार की टालमटोल पर सोनिया-राहुल की चुप्पी से साफ हुआ कि अपनों को बचाने में कांग्रेस आलाकमान भी जुटी।
0 इसी तरह 1.76 लाख करोड़ के 2जी घोटाले में चिदम्बरम सहित कई बड़े नेताओं पर आरोप, पर आलाकमान के मुंह पर ताले ही पड़े रहे।
0 1.86 लाख करोड़ डकार जाने वाले कोयला खदान आवंटन घोटाले में तो अदालत ने सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर उंगली उठाई, पर पूरी सरकार उनको पाक साफ दिखाने में जुट गई। सीबीआई से फाइलें पीएमओ में गईं, काट-छांट के सबूत मिले। पर हुआ वही, ढाक के तीन पात।
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