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आभासी अपराधियों के शिकंजे में दुनिया

by
Jan 25, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jan 2014 17:36:56

भारत सहित विश्व के अनेक देश साइबर अपराध से आज बुरी तरह पीडि़त हैं। अपराध का यह ऐसा आयाम है, महत्वपूर्ण, जानकारी, सूचनाओं, तकनीकों, कारोबारी, दांव-पेचों सन्धियों और करारों पर गुप-चुप तरीके से चोट करके सालों-साल ङकी मेहनत और गुप्त जानकारियों को चट कर जाता है।
अपराध का स्वरूप इतना छद्म है कि बहुत बारीक नजर ही पकड़ पाती है,नजर ही नहीं अब तो अत्याधुनिक तकनीकी इजाद की जा रही है जो इस भीषण अपराध की तह में उतर कर कोई निदान सुझा सके।
2011 में नार्टन साइबर क्राइम रपट ने खुलासा किया था कि भारत को सालाना 54,110 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा था और 2010 में 2़99 करोड़ लोग साइबर अपराध की चपेट में आए थे। वैश्विक घाटे की बात करें तो इस अपराध से 18,360,159,881,591 रुपये का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा था। एक सर्वे के अनुसार इंटरनेट प्रयोग करने वाले 69 प्रतिशत वयस्कों में से 2 तिहाई से ज्यादा साइबर अपराध के शिकार होते हैं। यानी हर सेकेण्ड 14 वयस्क इसके पाश में जकड़ते जा रहे हैं।
साइबर अपराध के बढ़ते शिकंजे के चलते सुरक्षा एजेंसियों का चौकन्ना होना स्वाभाविक ही था। भारत में इस अपराध के मामलों में पर नजर डालें तो जहां 2007 में आन्ध्र प्रदेश में 15 मामले दर्ज हुए थे तो मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 20 मामले दर्ज किये गए थे। महाराष्ट्र में 2009 में 30 मामले दर्ज हुए थे तो पंजाब में यह अंाकड़ा 2008-09 में क्रमश: 19 और 19 रहा था। केन्द्र शासित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा 7 मामले 2007 में अंदमान निकोबार द्वीप समूह में दर्ज किए गये थे।
2011 में लंदन में द्वितीय वैश्विक साइबर सुरक्षा सम्मेलन संपन्न हुआ था जिसमें साइबर हमलों और साइबर जासूसी के संदर्भ में 43 देशों से आए 450 सरकारी, प्रौद्योगिकी,तकनीकी प्रतिनिधियों ने साइबर सुरक्षा के समाधान का खाका तैयार करने के लिए लम्बी वार्ताएं की थीं।
इन प्रतिनिधियों ने चिंन्ता व्यक्त की थी कि इस खतरे का सामना करने के अनेक उपाय होते हुए भी साइबर अपराध पर जंग नहीं जीती जा रही है। हमें अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था का बचाव करने के लिए सख्त व कड़ी नीतियां चाहिए। इस वैश्विक सम्मेलन को चीन,अमरीका, रूस और भारत सरकार सहित दुनिया के अनेक देशों का समर्थन प्राप्त है। इस अपराध के निदान में सबसे बड़ी बाधा आपसी विश्वास की कमी का होना है।
भारत में 2013 के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। एक रपट के अनुसार इस वर्ष साइबर अपराध में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोत्तरी देखी गई। सिर्फ अगस्त महीने में ही 4191 भारतीय बेवसाइटें ह्यहैकह्य की गईं जबकि उससे पिछले महीने, जुलाई में यह आंकड़ा 2380 था और मई में यह 1808 था। यह रपट भारत सरकार के इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के अध्ययन पर आधारित थी। खतरा ऐसा गूढ़ है कि अपराध करने वाले का कोई चेहरा नहीं दिखता, वह सात समन्दर पार भी बैठा हो सकता है या फिर पीछे की गली में भी।
साइबर अपराधी एक से एक आधुनिक और कूट तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं,इसलिए उनके बारे में न पहले से बताया जा सकता है और न ही उन्हें रोका जा सकता है। ऐसा खासकर इसलिए देखने में भी आ रहा है क्यों कि सोशल मीडिया और ह्यबादलोंह्ण के जरिए होने वाला कम्प्यूटर व्यवहार तेजी से बड़ा है। दिलचस्प बात यह है कि कुछ कंपनियों ने अपने यहां बाकयदा ह्यचीफ रिस्क आफिसर्सह्ण और ह्यचीफ इन्फोर्मेशन सिक्योरिटी आफिसर्सह्ण जैसे पद सृजित कर लिए हैं,जिनका काम साइबर अपराध पर निगरानी रखना है।
भारत ही नहीं अमरीका जैसी विश्व शक्ति को भी इस अपराध से बड़ा भारी नुकसान झेलना पड़ा है। इस मुद्दे पर भारत-अमरीका  की लगातार वार्ताएं होती रही हैं। इसी का नतीजा था कि जब भारत के विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा अमरीका गए थे तब भारत-अमरीका ने एक करार पर हस्ताक्षर पर करके साइबर अपराध से लड़ने के सम्मिलित प्रयास का वायदा किया था। इस करार के तहत दोनों देश साइबर सुरक्षा पर निकट सहयोग और समय पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करेंगे। भारत-अमरीका की दो बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी इकाइयां इसे सुगम बनायेंगी। भारत के प्रमुख सूचना प्रौद्योगिक केन्द्र भी इस समस्या से निपटने की जंग में लगे हुए हैं।
दूसरे देशों की गुप्त सूचनायें उड़ाने में चीन और उत्तर कोरिया से आने वाली खबरें संदिग्ध इशारे करती हैं। ज्यादा समय नहीं बीता जब यह चर्चा उड़ी थी कि चीनी ह्यहैकर्सह्ण अमरीका के रक्षा प्रतिष्ठानों के कम्प्यूटरों पर भेदिया नजरें गड़ाए थे। अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी में स्नोडन के खुलासे के बाद चौकसी मजबूत हुई है लेकिन यह अपराध आकाश मार्ग से अदृश्य तरीकों से किए जा रहा है। इस अपराध के बहुत से रहस्य अभी अंतरिक्ष में विचर रहे हैं।                                पाञ्चजन्य ब्यूरो

राज्य         धोखाधड़ी के मामले दर्ज

    2007    2008    2009
आंध्र प्रदेश      15    21    03
अरुणाचलप्रदेश    00    00    00
असम    00    00    00
बिहार    00    00    00
छत्तीसगढ़    12    11    11
गोवा    00    00    03
गुजरात    00    16    02
हरियाणा    00    00    00
हिमाचल प्रदेश    00    00    00
जम्मू-कश्मीर    00    00    00
झारखंड    00    00    00
कर्नाटक    00    00    00
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मध्य प्रदेश    20    01    00
महाराष्ट्र    00    00    30
मणिपुर    00    00    00
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