|
-मा.गो. वैद्य-
आम आदमी पार्टी (आ आ पा) की सरकार दिल्ली में सत्तासीन हो चुकी है। इस सरकार ने विश्वास मत भी हासिल कर लिया है। इस के लिए कांग्रेस पार्टी ने 'आआपा' को पूरा समर्थन दिया। कांग्रेस पार्टी कितने दिन तक समर्थन देगी इस के बारे में जनता के मन में भ्रम होना बहुत स्वाभाविक हैं, क्योंकि कांग्रेस का पिछला इतिहास वैसा रहा है। आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई की जनता पार्टी की सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह को समर्थन देकर उन्हें प्रधानमंत्री तो बनाया पर इतने जल्दी समर्थन वापिस लिया की बेचारे चौधरी साहब लोकसभा में उपस्थित भी नहीं हो पाए। उस समय इंदिरा गांधी कांग्रेस की नेता थीं। चौधरी चरण सिंह के अल्पजीवी मंत्रिपरिषद में यशवंतराव चव्हाण उपप्रधानमंत्री थे। यशवंतराव एक सुलझे हुए राजनेता थे। मुझे इस बात का आश्चर्य लगा की उनके जैसे नेता ने श्रीमती इंदिरा गांधी के शब्दों पर इतना भरोसा कैसे किया? एक बार जब दिल्ली में मैं उनसे मिला तो यही सवाल किया था। यशवंतराव का सच्चा जवाब था इतने कम समय में समर्थन वापस ले लिया जाए इसकी हमें भनक भी नहीं थी!
कांग्रेस का व्यवहार
लेकिन यह कोई अकेला उदहारण नहीं देवगौड़ा , इंद्रकुमार गुजराल, चंद्रशेखर इन की सरकार भी कांग्रेस समर्थन से ही सत्तासीन हुई थी। पर कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। कारण, कांग्रेस ने खुद का दिया समर्थन बिना किसी कारण से या बहुत ही छोटी-सी बात पर वापिस ले लिया था। अत: केजरीवाल के नेतृत्व में स्थापित 'आआपा' की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी ऐसा नहीं होगा। शायद लोकसभा के चुनाव की घोषणा के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार को गिराया जा सकता है, लेकिन इससे 'आआपा' का आकर्षण और ताकत कम होगी ऐसा मुझे नहीं लगता। हो सकता है 'आआपा' को जनता की और ज्यादा सहानुभूति प्राप्त हो और लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा इन दोनों पार्टियों को उसकी ताकत भरी चुनौती का सामना करना होगा।
दिल्ली का महत्व
यह सही है की केवल दिल्ली में ह्यआआपाह्ण की सरकार बनी इस वजह से उस पार्टी को इतनी अधिक प्रसिद्घि मिली और आगे भी मिलती रहेगी। यदि यही सरकार तमिलनाडु में या झारखंड में बनती तो इसकी इतनी चर्चा नही होती ना ही इसे इतनी प्रसिद्घि मिलती। प़ बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने सरकार बनाई तब या द्रमुक या अन्नाद्रमुक की तमिलनाडु में सरकार बनी तब उसके बारे में ऐसी चर्चा नहीं हुई जैसे 'आप' की सरकार की हुई। लेकिन दिल्ली में सत्ता स्थापित करना यानी समूचे भारत पर शासन जमाना ऐसा आभास निर्माण होता है। मुगल सम्राट बाबर की सत्ता दिल्ली और आसपास के प्रदेश पर ही थी पर उसको आज भी हिन्दुस्थान का बादशाह माना जाता है। यह दिल्ली का महत्व है , इसको समझना होगा। इसीलिए दिल्ली में सरकार बनकर एक सप्ताह भी नहीं बिता था और अरविन्द केजरीवाल भारत के भावी प्रधानमंत्री होंगे ऐसे सपने सजाए जाने लगे।
यह सपना प्रत्यक्ष में रूपांतरित होगा या नहीं इसके लिए अधिक प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं। आने वाले कुछ महीनो में पता चल ही जायेगा।
परन्तु इसका अर्थ अरविंद केजरीवाल या उनकी 'आआपा' पार्टी की ताकत को कम आंकना या उसकी उपेक्षा करना उचित नहीं होगा। यह सच है कि दिल्ली सारा भारत नहीं। ह्यआआपाह्ण की ताकत अभी तक तो नगरीय क्षेत्रों तक ही सीमित हैं, लेकिन भारत का 70 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण है और इस ग्रामीण इलाके में 'आआपा' का प्रवेश अभी तक नहीं हुआ है न ही निकट भविष्य में होने की संभावना दिखाई देती है। पर नगरीय इलाकों में कांग्रेस और भाजपा जैसे दोनों प्रमुख पार्टियों को 'आआपा' की चुनौती का सामना करना होगा। दिल्ली विधान सभा के चुनाव में 'आआपा' ने कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं में बड़ी सेंध लगाई जिसके कारण कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर पहंच गई और उसके 70 में से केवल आठ विधायक ही चुनाव जीत सके, लेकिन 'आआपा' ने भाजपा की तरफ जाने वाले कुछ वोट अपनी तरफ मोड़ने में सफलता प्राप्त की यह भी समझना होगा। अन्यथा भाजपा के लिए 40 सीट जीतकर आसानी से दिल्ली में सरकार बनाना संभव होता। दिल्ली में 'आआपा' को जिस प्रकार से सफलता मिली है उससे देश के अन्य नगरीय इलाकों में उसके प्रति सहानुभूति और अपनेपन की भावना उपजी है। राजनीति में रुचि रखने वाले परंतु किसी वजह से नाराज लोग 'आप' में प्रवेश करने हेतु तैयार बैठे हैं। उसी प्रकार युवा वर्ग में भी इस पार्टी के प्रति आकर्षण बढ़ता दिखाई देता हैं।
ग्रामीण क्षेत्र की विशेषता
इस नई मानसिकता का झटका जितना कांग्रेस को मिल सकता है उससे कई गुना अधिक भाजपा को मिल सकता है, क्योंकि नगरीय इलाकों में कांग्रेस का प्रभाव घटता नजर आ रहा है और उसका फायदा भाजपा को मिलता दिखाई देता हैं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र भाई मोदी की सार्वजिक सभाओं में उमड़ता जनसागर इस बात का प्रमाण है। नगरीय क्षेत्रों में भाजपा आज सब से आगे है। इसी कारण से 'आआपा' का प्रभाव भाजपा का अधिक नुकसान कर सकता है। मेरी राय में नगरीय क्षेत्रों में ह्यआपह्ण और भाजपा में ही सही मुकाबला हो सकता है। कांग्रेस पार्टी दिल्ली जैसे तीसरे स्थान पर सिमट जाएगी, लेकिन ग्रामीण हिस्सों में असली टक्कर कांग्रेस और भाजपा में होगी। 'आआपा' उस क्षेत्र में भी अपनी उम्मीदवारों को खड़ा करेगी परन्तु उस विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में काम करने के लिए पर्याप्त कार्यकर्ता, साधन और धन पार्टी को मिलना संभव नहीं होगा और पर्याप्त संख्या में कार्यकर्ता अगर नहीं है तो चुनाव लड़ना इस क्षेत्र में मुश्किल है। कांग्रेस का संगठन नहीं है पर उसके कार्यकर्ता पर्याप्त संख्या में हैं। भाजपा के पास संगठन भी है और कार्यकर्ता भी हैं इसलिए इस क्षेत्र में असली संघर्ष कांग्रेस और भाजपा में ही होगा, लेकिन भाजपा की शक्ति का बड़ा आधार तो नगरीय क्षेत्रों में हैं। और 'आआपा' भी इसी क्षेत्र में अपनी ताकत आजमाने की कोशिश करेगी। भाजपा के अनुभवी नेता इस वास्तविकता को समझ सकेंगे और उस दृष्टि से अपनी रणनीति तय करेंगे इसमें कोई संशय नहीं है। 'आआपा' ने जिस कांग्रेस को भ्रष्टाचार में लिप्त बताया था उसी कांग्रेस के समर्थन से उसने सत्ता हासिल की। पर यह अधिक समय तक चलने वाला नहीं है। यह सभी जानते हैं की 'आआपा' ने समर्थन नहीं मांगा था बल्कि कांग्रेस ने स्वयं आगे आकर समर्थन दिया था और समर्थन मिलने के बाद भी केजरीवाल ने सरकार बनाने की जल्दी नहीं दिखाई चरण सिंग, देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल या चंद्रशेखर के सामान वे बहकावे में नहीं आए। उन्होंने जनता की राय जानने के बाद सरकार बनाई।
उसी प्रकार 'आआपा' को विदेशों से धन प्राप्त होता हैं इसका प्रभाव भी चुनाव के दौरान रहने की संभावना अधिक है। यह बात सही है केजरीवाल के 'कबीर' एनजीओ को फोर्ड फाउंडेशन की तरफ से बहुत मात्र में धन प्राप्त हुआ। इस धन का प्रयोग दिल्ली के चुनाव में किया गया होगा इस बात की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। इस मामले में खोजबीन शुरू है। उसके परिणाम जानने के पश्चात ही इस विषय पर चर्चा की जा सकेगी। पर इन दो नकारात्मक मुद्दों के आधार पर 'आआपा' के प्रभाव को रोक पाना संभव होगा ऐसा नहीं लगता है। भाजपा ने जो मतदान केन्द्रश: (इववजीपेम) संगठन प्रक्रिया प्रारंभ की है उसको अधिक मजबूत बनाना ही उचित होगा। इसके अलावा भी चुनावी घोषणापत्र में कौन से मुद्दे अधिक महव के होंगे यह भी महत्वपूर्ण आयाम हो सकता है। पर उसकी चर्चा तो घोषणा पात्र के जारी होने के बाद ही होगी। मुझे इस बात को यहां अधोरेखित करना है कि 'आआपा' की चुनौती पर गंभीरता से विचार करना होगा उसे कम आंकना या उसकी उपेक्षा करने से काम नहीं बनेगा।
टिप्पणियाँ