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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला घोटाले से जुड़ी फाइलों के गायब होने पर विपक्ष के भारी दबाव के बाद 3 सितम्बर को संसद के दोनों सदनों में आखिरकार बयान दे ही दिया। लेकिन उस बयान की तह में जाएं तो मुद्दे की बात ढूंढते ही रह जाएंगे। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि फाइलें ढूंढी जा रही हैं। सफाई देने के अंदाज में उन्होंने यह भी कहा कि अगर कागजात नहीं मिले तो उन्हें खोने के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, उन्हें सजा दी जाएगी। मनमोहन ने कहा कि ‘सरकार कुछ छुपा नहीं रही है और यह सोचना भी गलत है कि दाल में कुछ काला है।’ मनमोहन ने सरकार की लाज बचाने की लगभग कोशिश करते हुए सफाई दी कि ‘सीबीआई को करीब डेढ़ लाख पन्ने के दस्तावेज तो दिए जा चुके हैं। अगर कुछ दस्तावेज गायब पाए गए तो उसके दोषियों की जांच करके उन्हें सजा दी जाएगी। अदालत ने दस्तावेज जमा कराने का जो वक्त दिया है उसके अंदर दस्तावेज जमा करा दिए जाएंगे।’
कहना न होगा, हमेशा की तरह प्रधानमंत्री का भाषण कोरा और सपाट था। चेहरे पर कोई भाव लाए बिना वे बस बोलते चले गए और बाद में किसी ने कुछ पूछने की कोशिश की तो उसे अनसुना सा करके सदन से उठकर चले गए।
उधर सीबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत उन तमाम फाइलों की सूची महाधिवक्ता वाहनवती को सौंप दी है जिनकी जांच में जरूरत पड़ रही है। ये फाइलें जांच एजेंसी के पास अब तक नहीं पहुंची हैं। अदालत ने 29 अगस्त को एजेंसी को यह सूची तैयार करके भेजने के लिए पांच दिन का वक्त दिया था।
बहरहाल, संसद में प्रधानमंत्री के बयान ने विपक्षी खेमे को संतुष्ट करने की बजाय और भड़का दिया, क्योंकि, जैसा ऊपर बताया, भाषण में तथ्य की कोई बात नहीं थी, सिर्फ शब्दों का खेल था। राज्यसभा में भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा कि सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाने वाले घोटाले में वे फाइलें खास सबूत हैं इसलिए महत्वपूर्ण हैं।
सरकार को बताना चाहिए कि दोषियों का पता लगाने के लिए क्या कोई जांच हो रही है। लोकसभा में भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने इस मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सवाल किया कि जब प्रधानमंत्री ही जी-20 की बैठक के लिए विदेश दौरे पर चले जाएंगे तो फिर यहां फाइलों पर जवाब देने वाला कौन होगा।
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