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गुस्सा पहले से था, गुबार अब फूटा

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Sep 14, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Sep 2013 13:47:59

० सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टरीकरण की नीतियां बनी कारण ० सालों से पनप रहा था आक्रोश
ठेठ अक्कखड़ बोली, खेती, दूध, दही और घी जैसे अच्छे खानपान के साथ साथ  खाप पंचायतों के कुछ बुरे व कुछ अच्छे फैसलों के लिए जाना जाने वाला मुजफ्फरनगर आज सुलग रहा है। कवाल गांव में एक किशोरी से छेड़छाड़ के बाद हुए झगड़े में दो हिन्दू युवकों और छेड़छाड़ करने वाले एक समुदाय विशेष के युवक की हत्या के बाद पूरे इलाके में भड़के दंगे में अब तक 55 मौतें हो चुकी हैं। मौतों की ये संख्या सिर्फ सरकारी है, जब वास्तविकता सामने आएगी तो ना जाने कितने और लाशें वहां मिलेंगी और कितनों के अपने लापता मिलेंगे। मुजफ्फरनगर से जो पुख्ता जानकारियां छनकर आती हैं, वे बताती हैं कि बवाल की जड़ में क्या है। मुजफ्फरनगर में जो हुआ उसका बीज बहुत पहले रोपा जा चुका था। सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीतियां इसका सबसे बड़ा कारण बनीं। मुफ्फरनगर शहर में एक बड़ी आबादी सुन्नी मुसलमानों की है। इसके अलावा आसपास में भी कई बड़े गांव जाट हिंदुओं के हैं। वहां का सामाजिक ताना-बाना और लोगों की पारिवारिक पृष्ठभूमि इस तरह की है जहां लोग मान-मर्यादा की बात आने पर, विशेषकर लड़कियों को लेकर की गई टिप्पणी पर उबल पड़ते हैं। मुजफ्फरनगर में जो हुआ इसके लिए सिर्फ कवाल गांव की एक घटना ही कारण नहीं बल्कि लोगों के दिलों में सालों से पनप रहा गुस्सा भी एक बड़ा कारण है। ह्यलव जिहाद ह्ण को दिल्ली में बैठकर झुठलाने वाले लोग जमीनी स्थिति जानना चाहें तो इस क्षेत्र में आकर सत्य जान सकते हैं। करीब दो वर्ष पहले मुजफ्फरनगर में स्थानीय लोगों ने इकट्ठा होकर ऐसे रेस्तराओं पर छापे मारे थे, जहां युवक-युवतियां आपत्तिजनक स्थिति में बैठे पाए गए थे। तमाम लोगों और मीडिया ने भी इसे 'कठोर फैसला' बताया था, लेकिन सोचने वाली बात है कि ऐसी स्थिति हुई क्यों, कि लोगों को अपने घरों से बाहर निकलकर शहर भर में ऐसा अभियान चलाना पड़ा? जब वहां के लोगों से इस बारे में बात की गई तो उनका कहना था कि उन्हें डर है कि कहीं उनकी बेटी या बेटा किसी के बहकावे में आकर कोई ऐसा कदम ना उठा लें, जिससे उनकी बिरादरी में बदनामी हो जाए। यदि इस पहलू पर ध्यान दिया जाए तो उनका डर गलत नहीं था। वहां स्कूलों में भी बच्चियों के यौन उत्पीड़न की घटनाएं हुईं। कई लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म जैसी जघन्य वारदातें हुईं। लगातार हो रही ऐसी घटनाओं से लोगों के मन में गुबार था जो कवाल में हुई घटना के बाद गुस्सा बनकर फूटा। इस पर पेट्रोल छिड़कने का काम तब हुआ जब ह्यबहू-बेटी बचाओह्ण के मामले को लेकर हुई महापंचायत से घर लौट रहे बहुसंख्यक समाज के लोगों पर घात लगाकर जगह जगह हमले किए गए। कई लोगों की जानें गईं। इलाके में तनाव था, प्रशासन को इस बारे में पता था। पुलिस की स्थानीय खुफिया विंग ने इस बारे में सरकार को अपनी रपट भेज दी थी, लेकिन बावजूद इसके, कड़े कदम नहीं उठाए गए। परिणाम यह रहा कि मुजफ्फरनगर से उठी चिंगारी से आसपास के जिलों में भी आग फैल गई। दंगों में पहली बार ऐसा हुआ मुजफ्फरनगर शहर में जहां आगजनी की छिटपुट घटनाएं हुईं वहीं आसपास के जिलों के गांवों में सबसे ज्यादा हत्याएं हुईं। स्थानीय अखबारों में छपे समाचारों के मुताबिक बागपत, शामली और बड़ौत में भी हिंसा भड़की। कई लोग मारे गए। अब इस मुद्दे पर तमाम राजनैतिक दल अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने में जुटे हैं। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं, लेकिन मुजफ्फरनगर और आसपास के तमाम जिलों के लोग सहमे हुए हैं। शायद वहां के लोगों को पता है कि फिलहाल दंगा भले ही शांत हो जाए, लेकिन सब कुछ पूरी तरह शांत होने में पता नहीं कितना वक्त लगेगा। लेकिन साफ है कि सपा की तुष्टीकरण नीतियां और आजम खान के नफरती बयानों पर अब लगाम लगनी ही चाहिए।  आदित्य भारद्वाज

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