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शब्द–शब्द बूंदें गिरें, यत्र–तत्र–सर्वत्र।
बादल टाइप कर रहे, फिर पावस के पत्र।।
बूढ़े हुए जवान फिर, देखा ऐसा हाल।
सावन में गदरा गए, फिर पोखर, फिर ताल।।
नदियां बौराने लगीं, छोड़ पुराने छोर,
मन में रख दुर्भावना, चली गांव की ओर।।
मौसम से कुछ यूँ हुए, पावस के अनुबंध।
गली–गली में बिछ गई, सौंधी–सौंधी गंध।।
दुखिया की छत कर रही, टप–टप, टप–टप रोज।
पखवाड़े से हो रही, कोलतार की खोज।।
पावस का अद्भुत असर, देखा हमने मित्र।
चित्रकार ने रंग दिए, हरे–हरे सब चित्र।।
बूँदों की अठखेलियाँ, प्रिये करें बेचैन।
मन में बादल याद के, बरसा करते नैन।।
पल में बादल घिर गए, पल में तपती धूप।
नेताओं जैसा लगे, मौसम का ये रूप।।
छम–छम बूंदें नाचतीं, बादल छेड़ें साज।
हरियाली रचने लगी, महाकाव्य फिर आज।।
नदिया को यूँ भा गई, बस्ती, मानव–गंध।
इन बारिस में एक दिन, तोड़ दिए तटबंध।।
डरे–डरे से लोग हैं, चीख–पुकारें शोर।
इन बारिस में हो गईं, नदियां आदमखोेर।।
नदिया फैली गर्व से, पाकर नीर अपार।
किसकी शामत आएगी, पता नहीं इस बार।।
अशोक 'अंजुम'
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