भगवान की हुण्डी पर सरकारी डाका
|
110 किलो सोने के
आभूषणों में 14 किलो
सोने की हेर-फेर
महाराष्ट्र के पंढरपुर तथा शिरडी के जगत प्रसिद्ध मन्दिरों पर सरकारी प्रबंधन के तहत जो चल रहा है वह चिंताजनक है। सरकार के बैठाए कारिंदों की कथित चालबाजियों से मन्दिर से नकदी व सोने के आभूषणों में भारी हेर-फेर चल रही है। यानी सरकार ही भगवान की हुण्डी पर डाका डाल रही है। लाखों श्रद्धालुओं में इन तीर्थ स्थानों के प्रति श्रद्धा का आकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले माह आषाढ़ एकादशी के अवसर पर पंढरपुर में 10 लाख श्रद्धालु आए जबकि गुरु पूर्णिमा के पर्व पर शिरडी के साईं मन्दिर में मात्र एक ही दिन में 2 लाख भक्त पहुंचे।
इन मन्दिरों से संबद्ध कथित वित्तीय हेर-फेर के मामले राज्य विधानमंडल में गूंजने एवं मन्दिरों पर नियंत्रण रखने वाली सरकार द्वारा अपनी वास्तविक जवाबदेही से सार्वजनिक तौर पर मुंह मोड़ लेने के कारण श्रद्धालुओं के साथ आम जनता में भी बहुत रोष है।
इन मन्दिरों में व्याप्त भ्रष्टाचार का मामला तब उजागर हुआ जब शिवसेना नेता रामदास कदम ने शिरडी साईंबाबा मन्दिर को समर्पित 110 किलो सोने के अलंकार-आभूषणों में से 14 किलो सोने के घपले का मामला राज्य विधानसभा परिषद् में उठाया।
विधायक रामदास कदम के अनुसार, 2012 में शिरडी संस्थान के 110 किलो सोने के अलंकार केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली मुम्बई स्थित टकसाल में पिघलाने भेजे गए थे, इसमें से 14 किलो सोने का घोटाला किया गया। उल्लेखनीय है कि साई भक्तों द्वारा चढ़ावे के तौर पर मन्दिर में समर्पित सोने के अलंकारों की नीलामी के लिए उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को देखते हुए न्यायालय ने पहले ही मना कर दिया था। विकल्प के तौर पर मुम्बई के सरकारी टकसाल में सोने के आभूषणों को पिघलाने की प्रक्रिया तो अपनायी गयी, पर अब इस प्रक्रिया के भी भ्रष्टाचार तथा हेराफेरी में घिर जाने की बात स्पष्ट हो चुकी है।
रामदास कदम ने जब यह बात दावे के साथ कही कि मुम्बई टकसाल में सोना पिघलाने की प्रक्रिया के दौरान राज्य शासन के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में उसमें घपला हुआ है तो उस पर लीपा-पोती करते हुए राज्य के शहरी-विकास राज्यमंत्री उदय सामंत ने जवाब दिया कि सोने की शुद्धता परखने की प्रक्रिया में 14 किलो सोने की कमी हुई है, पर गायब हुए सोने की कीमत के मामले में वे चुप ही रहे।
महाराष्ट्र के एक अन्य श्रद्धास्थल, पंढरपुर के श्री विट्ठल मन्दिर की आय-आमदनी के अलावा मन्दिर के खेत और जमीन से संबद्ध घोटाले से तमाम विट्ठल भक्तों में असंतोष व्याप्त है। भक्तों के अनुसार विट्ठल मन्दिर समिति के कारोबार का 2010 में किया गया लेखा परीक्षण संदेह में रहा, वहीं विगत तीन वर्षों से मन्दिर संस्थान के कारोबार का लेखा परीक्षण नहीं होने के कारण मामला गंभीर हो गया है।
उल्लेखनीय है कि पंढरपुर के श्री विट्ठल मन्दिर का कारोबार तथा संचालन 1985 में राज्य सरकार द्वारा बनाई मन्दिर व्यवस्थापन समिति द्वारा किया जा रहा है तथा इस समिति के मुखिया-अध्यक्ष के बराबर सत्ता पक्ष से संबद्ध रहने के कारण मन्दिर तथा भक्तों की श्रद्धा पर पैसा तथा राजनीति हावी होती रही है।
पंढरपुर के श्री विट्ठल मंदिर के स्वामित्व में 1220 एकड़ जमीन है, जिसमें से 500 एकड़ जमीन मन्दिर संस्थान को भक्तों द्वारा दान की गयी है। इस जमीन के स्वामित्व तथा इसके स्थानांतरण पर संस्थान से लेकर शासन तक संदिग्धता ही बरती गयी है। इस बात की पुष्टि अब शासन के राज्य विधि एवं न्याय विभाग द्वारा नियुक्त की गई समिति द्वारा भी की गई है।
सूत्र बताते हैं कि विगत दस वर्षों से यानी 2002 से लेखा परीक्षकों द्वारा त्रुटियां एवं आपत्ति जताने के बावजूद मन्दिर समिति द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। प्रतिदिन तथा किसी पर्व-विशेष अवसर पर लाखों की संख्या में भक्तों द्वारा दिए जाने वाले दान की रसीद पर कोई नम्बर नहीं होता। जांच समिति के अनुसार यह चीज हेरा-फेरी ही दिखाती है, जो आज भी जारी है।
मन्दिर के नियमों के तहत मन्दिर में जमा होने वाली राशि रोजाना गिनकर बैंक में जमा करनी जरूरी है। इस नियम को भी ताक पर रखते हुए प्रतिदिन जमा राशि पहले बोरियों में डाली जाती है तथा काफी विलंब से बैंक में जमा करायी जाती है। इस दौरान इस राशि में क्या घपला होता है, यह मन्दिर समिति के अलावा कोई नहीं जानता। यही बात श्री विट्ठल-रुक्मिणी मंदिर को प्राप्त आभूषणों को लेकर भी कही जाती है। आपराधिक भ्रष्टाचार का यह क्रम आज भी जारी है।
पंढरपुर मन्दिर में जारी इस आर्थिक-प्रशासनिक घपले के मामलों को प्रतिवर्ष पंढरपुर की यात्रा करने वाले वारकरी संगठन तथा हिन्दू जन-जागृति समिति ने गंभीरता से लेते हुए सरकार से भ्रष्टाचार रोकने की मांग की है। द.वा.आंबुलकर
टिप्पणियाँ