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अपने ही बुने जाल में…

by
Jul 6, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Jul 2013 13:32:01

 

राजनीतिक नफे-नुकसान के गणित में डूबी रहने वाली मनमोहन सरकार किस तरह मुस्लिम वोटों की खातिर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रही है, इसका सबसे ताजा उदाहरण है इशरत जहां मामले की सीबीआई जांच। लेकिन इस मामले में सरकार अपने ही बुने जाल में फंसती नजर आ रही है। 3 जुलाई को इस कांड पर पहला आरोप पत्र विशेष अदालत को सौंपने वाली सीबीआई ने अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर तथ्यों को जिस तरह पेश किया है वह उसके 'पिंजरे में बंद तोता' और 'सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंन्वेस्टिगेशन' की बजाय 'कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इंन्वेस्टिगेशन' होने के आरोपों पर मुहर लगाता है। इशरत और उसके साथ मुठभेड़ में मारे गए जिन तीन लोगों को मुठभेड़ के बाद जांच एजेंसियों ने लश्करे तोइबा के आतंकी बताया था उनकी आतंकवादी गुटों से जुड़े होने की तथ्यपरक जांच करने की बजाय कथित राजनीतिक दिशानिर्देशों पर सीबीआई ने मुठभेड़ को 'फर्जी' बता दिया। इससे साफ है कि सरकार ने अपनी गुप्तचर एजेंसियों के मनोबल से खिलवाड़ करने, जांच अधिकारियों की समझदारी और योग्यता पर शक करने और वोट बैंक की खातिर विरोधी दल पर लांछन लगाने की सारी हदें पार करने की ठानी हुई है।

15 जून 2004 को अमदाबाद के बाहरी इलाके में हुई संदिग्ध आतंकियों से मुठभेड़ में मारे जाने के 9 साल बाद, 3 जून को विशेष अदालत में पेश किए आरोप पत्र में सीबीआई ने कहा कि मुठभेड़ फर्जी थी, मृतकों से मिले हथियार आईबी दफ्तर से लाए गए थे। रपट में आरोपी के तौर पर आईपीएस अधिकारी पी.पी. पाण्डे, डी.जी. वंजारा, जी. एल. सिंहल और गुजरात पुलिस के सात अफसरों के नाम दिए गए।

179 गवाहों के बयानों वाला 1500 पन्नों का आरोप पत्र मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एच.एस. खुटवड़ की अदालत में पेश किया गया। सीबीआई की मानें तो, 'इशरत और उसके बाकी तीन साथियों, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै, अमजद अली और जीशान जौहर को 'फर्जी' मुठभेड़ में मारा गया जिसमें आईबी के उस वक्त के संयुक्त निदेशक राजेन्द्र कुमार, आईबी के अधिकारी एन.के. सिन्हा, राजीव वानखेड़े और एक अन्य शामिल थे।' इन सब के खिलाफ धारा 302, 120बी के अंतर्गत षड्यंत्र, सबूत मिटाने, अपहरण और हत्या के मामले दर्ज किए गए हैं।  आरोप पत्र में सीबीआई ने पूरा खाका खींचते हुए बताया कि चारों को अलग अलग जगहों से कब कब लाकर कहां कहां  रखा गया। कहा गया कि 'मुठभेड़ के दिन पुलिस अधिकारी अमीन, बारोट मोहन कलास्वा और अनाजू ने चारों को मुठभेड़ वाली जगह पर सड़क के बीच बने 'डिवाइडर' के पास खड़ा करने के बाद गोली मार दी। उनके पास आईबी दफ्तर से लाए गए ए.के.-56 और दूसरे हथियार रख दिए गए।'

गुजरात पुलिस के पास पुख्ता जानकारी थी कि वे चारों आतंकी गुट लश्कर से जुड़े हुए थे। उनमें से दो पाकिस्तानी आतंकी जीशान जौहर और अमजद अली राणा खतरनाक इरादों से वहां आए थे जो इशरत और जावेद शेख की मदद से आतंकी हमले की योजना बना रहे थे। जावेद लश्कर का एजेंट था, जो, बताते हैं, आईबी को जीशान और अमजद की गतिविधियों की जानकारी दे रहा था।

मुठभेड़ को 'फर्जी' बताने वाले इस आरोप पत्र में कई बिन्दु ऐसे हैं जो सीबीआई की जांच के किसी 'इशारे' पर आगे बढ़ने की भनक देते हैं। कुछ सवाल हैं, जो देश की सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम हैं। पहला, सीबीआई ने गृह मंत्रालय के अधीन कार्यरत खुफिया एजेंसी आईबी के उस निष्कर्ष पर आगे जांच क्यों नहीं की कि मारे गए वे चारों लोग उस लश्करे तोयबा नाम के जिहादी गुट के आतंकी थे जो सीमा पार से देश में जिहाद रच रहा है? भाजपा के इस आरोप में दम है कि सीबीआई का मारे गए लोगों की पृष्ठभूमि का खुलासा न करना आश्चर्य पैदा करता है। पार्टी का आरोप है कि सरकार सीबीआई को मामले के बारे में दिशानिर्देश दे रही है। कांग्रेसनीत सरकार भाजपा, नरेन्द्र मोदी और उनके सहयोगियों को इस सब में फंसाने की मंशा रखती है। नहीं तो क्या वजह  है कि 6 अगस्त 2009 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा मारे गए चारों के लश्कर के आतंकी होने संबंधी गुजरात उच्च न्यायालय में दिया हलफनामा महज 2 महीने बाद ही उस वक्त के गृहमंत्री चिदम्बरम के कथित दबाव के बाद बदल गया और इशरत और उसके साथियों के आतंकवादी होने के बारे में 'पक्के सबूत न होने' की बात करते हुए सीबीआई जांच को अपनी सहमति दे दी गई? क्या इसमें ओछी राजनीति की दुर्गंध नहीं आती? भाजपा महासचिव रविशंकर प्रसाद का कहना है कि सरकार नरेन्द्र मोदी को उलझाने के लिए देश की सुरक्षा को दाव पर लगा रही है। चिदम्बरम के कथित दबाव पर बदला गया हलफनामा, जाहिर है नरेन्द्र मोदी को मामले में कहीं न कहीं जुड़ा दिखाने की ही कवायद थी।

लेकिन अब अंदरखाने यह बात सामने आई है कि गृह मंत्रालय ने इशरत और उसके साथियों को लश्कर के आतंकी साबित करने की तैयारी कर ली है। मंत्रालय के अधिकारियों ने माना है कि आईबी के अधिकारियों की इस बात की पुष्टि करनी है कि इशरत और उसके साथी आतंकी थे। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की टिप्पणी है कि जावेद आईबी को आतंकियों की गतिविधियों की जानकारी देता था। साथ ही, इशरत के साथ मारे गए दो पाकिस्तानियों की बाबत कोई कुछ क्यों नहीं बता रहा? पुख्ता जानकारी के आधार पर ही आईबी के उस वक्त के संयुक्त निदेशक राजेन्द्र कुमार ने गुजरात पुलिस को सावधान किया था। गृह मंत्रालय के उस अधिकारी का कहना है कि राजेन्द्र कुमार निर्दोष हैं और राजनीति की बिसात पर उनको मोहरा बनाया जा रहा है। उनके साथ ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी को इस सब में फंसाने की गरज से ही हलफनामा बदला गया था। लेकिन जरूरत पड़ी तो अदालत को सीबीआई को खिलाफ इशरत और उसके साथियों के आतंकवादी होने के सारे सबूत दिए जाएंगे। अगर इस तरह देश की गुप्तचर एजेंसियों पर अंगुली उठाई जाएगी तो उनकी साख पर असर पड़ेगा। इससे देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी खतरा पैदा होगा। कोई खुफिया अधिकारी फिर किसी राज्यों को गुप्तचर सूचनाएं देने से कतराएगा। n{ÉÉSÉVÉxªÉ ब्यूरो

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