जनसंघ की तरह भाजपा को बदनाम किया जा रहा है
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जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे उस समय उन्होंने जिला स्तर पर पासपोर्ट कार्यालय खोलने के आदेश दिए थे। इसके बाद आम मुसलमान खाड़ी देशों में जाने लगे। यह सिलसिला अब तक जारी है।
अटल जी ने ही अपने प्रधानमंत्री काल में वक्फ सम्पत्ति का पंजीकरण शुरू करवाया था।
मदरसों के आधुुनिकीकरण का काम भी राजग सरकार के समय शुरू हुआ।
स समय देश में यह शोर सुनाई दे रहा है कि भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) अल्पसंख्यक विरोधी है। टी वी चैनलों में भी इस विषय पर खूब बहसें हो रही हैं। पिछले दिनों इसी तरह की एक बहस में भाजपा के एक प्रवक्ता ने कहा कि हमारी पार्टी अल्पसंख्यकों के लिए एक दस्तावेज जारी करने वाली है, जिसमें पार्टी की गतिविधियों का मानसिक प्रतिबिम्ब देखने को मिलेगा। जब भी चुनाव नजदीक आता है तो देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का मुद्दा गर्म हो जाता है। पर यह कोई बताने को तैयार नहीं है कि अल्पसंख्यक कौन है? संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि जिस देश में किसी समुदाय की संख्या 5 प्रतिशत है वह अल्पसंख्यक समुदाय है। किन्तु हमारा संविधान अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं करता है। इसलिए जो भी समुदाय बहुसंख्यकों से कम है वही अपने को अल्पसंख्यक कहने लगता है। वोट बैंक की राजनीति ने अल्पसंख्यकवाद को और हवा दे दी है। जो राजनीतिक दल वोट बैंक की राजनीति करते हैं वे भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी और साम्प्रदायिक कहते हैं। शायद इन दलों को यह नहीं पता कि भाजपा ने इन अल्पसंख्यकों के लिए कितने काम किए हैं। हकीकत तो यह है कि जनसंघ से लेकर भाजपा तक ने अल्पसंख्यकों के लिए जितने काम किए हैं उतने तो शायद और किसी ने नहीं किए होंगे।
पासपोर्ट कार्यालय
आपातकाल के बाद देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। उस सरकार में श्री अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री थे। उन दिनों किसी के लिए पासपोर्ट बनवाना हिमालय को उठाने के बराबर था। केवल राज्य की राजधानियों में पासपोर्ट कार्यालय हुआ करते थे। अटल जी ने हर जिले में पासपोर्ट कार्यालय खोलने के आदेश दिए थे। इसके पीछे उनकी दूर दृष्टि उन गरीब मुसलमानों पर थी जो विकसित होते मध्य-पूर्व के देशों में जाकर छोटा-बड़ा कारोबार या नौकरी करके अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकते थे। अटल जी ने महसूस किया कि भारत का अनपढ़ मुसलमान बड़ी संख्या में अच्छा कारीगर है। यदि उसे विकासशील खाड़ी के देशों में काम करने का अवसर मिले तो वह अपना छोटा-मोटा व्यवसाय और नौकरी करके दो पैसा कमा सकता है। अटल जी के प्रयासों से पासपोर्ट बनाना आसान होते ही बड़ी संख्या में हर मत-पंथ के भारतीय मध्य-पूर्व के देशों में गए। हां यह भी सत्य है कि हम-मजहबी होने के कारण मुसलमान सबसे अधिक खाड़ी के देशों में पहुंचे। तब से आज तक यह सिलसिला जारी है। इस कारण भारतीय मुस्लिमों का जीवन स्तर सुधरा। ये लोग अपने परिवार वालों के लिए वहां से पैसा भी भेजते हैं। इस तरह सरकार को भी विदेशी मुद्रा मिलती है और मुसलमानों की खुशहाली बढ़ती है। इसलिए आज भी मुसलमान अटल जी को दुआएं देते हैं। किन्तु दुर्भाग्य से पिछले दिनों सऊदी अरब में 'नताका' नामक कानून लागू हो गया है। अब वहां की सरकार पहले अपने नागरिकों को काम देगी। इसके बाद यदि काम बचेगा तो अन्य देशों के लोगों को मौका मिलेगा। इस वजह से आने वाले छह माह के अन्दर कम से कम दस लाख भारतीय मुसलमान स्वदेश वापस आ जाएंगे। मुस्लिमों की हितैषी होने का दावा करने वाली मनमोहन सरकार इस मामले पर चुप है। पिछले दिनों विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद मध्य-पूर्व के देशों की यात्रा पर गए थे। उन्होंने भी इस मामले पर लीपापोती वाले बयान देकर अपना पीछा छुड़ा लिया है।
वक्फ सम्पत्ति का पंजीकरण
जब अटल जी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने सिकन्दर बख्त की देखरेख में मुस्लिम वक्फ सम्पत्ति की रपट तैयार करवाई थी। इसके बाद वक्फ सम्पत्ति का पंजीकरण आरंभ हुआ। जिस वक्फ सम्पत्ति को लेकर आजकल जो लोग राजनीति कर रहे हैं उन्होंने कभी भी वक्फ सम्पत्ति की सुध नहीं ली थी। यदि कांग्रेस ने कभी वक्फ सम्पत्ति को लेकर गंभीरता दिखाई होती तो उसे सच्चर कमिटी बनाने की जरूरत नहीं पड़ती। कांग्रेस की इस लापरवाही की वजह से मुसलमानों को जो आर्थिक नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है। उदाहरण है मुम्बई के मालाबार हिल इलाके के माउंट प्लेजेन्ट रोड स्थित अनाथालय। यहां गरीब मुस्लिमों के बच्चों को तालीम मिलती थी। किन्तु इस अनाथालय की जगह को महाराष्ट्र सरकार ने मुकेश अम्बानी को बेच दी है। इसी जगह पर आज एटलांटा नामक टावर खड़ा है। आज हाल यह है कि जिस किसी मुस्लिम विधायक या सांसद को वक्फ की जिम्मेदारी दी गई उसी ने वक्फ सम्पत्ति को बेच कर अपनी जेब भर ली। वक्फ सम्पत्ति का कुरूप इतिहास कांग्रेसी सरकारों के साथ जुड़ा हुआ है।
प्रेस पर डाक टिकट
अटल जी की सरकार के समय मौलाना इलियासी ने एक प्रस्ताव रखा था, जिसमें मांग की गई थी कि वक्फ सम्पत्ति की आय से मस्जिदों के इमामों को तनख्वाह दी जाए। इस पर कुछ कार्रवाई भी हुई थी किन्तु इसी बीच सरकार चली गई और यह मामला जस का तस पड़ा हुआ है। इमाम संगठन आज भी इसकी मांग कर रहे हैं।
इन्दिरा गांधी के समय से ही मुस्लिम यह मांग कर रहे थे कि लखनऊ स्थित पंडित नवल किशोर दास द्वारा स्थापित ऐतिहासिक प्रेस की सेवाओं को देखते हुए उस पर डाक टिकट जारी किया जाए। किन्तु इस मांग पर कभी गौर नहीं किया गया। जब अटल जी को इससे अवगत कराया गया तो उन्होंने एक सप्ताह के अन्दर उस प्रेस पर डाक टिकट जारी करवाया। उल्लेखनीय है कि जब दुनिया में कुरान कहीं नहीं प्रकाशित होता था उस समय इस प्रेस ने कुरान प्रकाशित कर कीर्तिमान स्थापित किया था। इस प्रेस से उर्दू, फारसी और अरबी की पुस्तकें भी प्रकाशित होती थीं।
यह भी कौन नहीं जानता है कि लखनऊ में शिया-सुन्नी दंगों को रोकने में अटल जी और नाना जी देशमुख का बड़ा योगदान है। इस कारण उत्तर प्रदेश के कई जिलों में भाजपा के पारम्परिक मुस्लिम मतदाता हैं। मध्य प्रदेश के पुराने समाजवादी और बाद में पंडित दीनदयाल उपाध्याय से प्रभावित आरिफ बेग को आज भी कोई भूला नहीं है।
डाक्टर मुरली मनोहर जोशी जब मानव संसाधन मंत्री थे तो उन्होंने मदरसों के आधुनिकीकरण का विस्तृत काम प्रारंभ किया था। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय को जो अनुदान दिया था वह भी कीर्तिमान है। जब राम नाइक रेल मंत्री थे तब दिल्ली और मुंबई से अजमेर शरीफ के लिए सीधी रेल गाड़ियां चलाई गई थीं।
उर्दू से रिश्ता
भारतीय जनता पार्टी को जो लोग मुस्लिमों के नजदीक ले जाना चाहते हैं उन्हें इस तथ्य से परिचित होना चाहिए कि आर्य समाज और उलेमाओं के बीच जब टकराव बढ़ा था तो मुस्लिमों को जानने-समझने के लिए आर्य समाजियों ने न केवल उर्दू सीखी,बल्कि उसकी पत्रकारिता की नींव भी रखी। आज भी उत्तर पश्चिम भारत में जितने भी उर्दू दैनिक हैं वे आर्य समाज की विरासत हैं। क्या आप प्रताप और मिलाप जैसे उर्दू दैनिकों से परिचित नहीं हैं? कहने का मतलब है कि मुस्लिम मानस और उनकी समस्याओं से अवगत होने के लिए नेताओं को उर्दू से अपना रिश्ता जोड़ना ही होगा। भारतीय जनता पार्टी भोपाल से एक उर्दू साप्ताहिक का प्रकाशन लम्बे समय से कर रही है। यह स्व. कुशाभाऊ ठाकरे और आरिफ बेग की देन है।
इस छोटे से लेख में विभिन्न राज्यों में मुस्लिमों के बीच भारतीय जनता पार्टी द्वारा किए गए कामों को शामिल करना मुश्किल है। कार्यकर्ता उन कार्यों को प्रचारित करें और यह सिद्ध करें कि जनसंघ की तरह आज भाजपा को बदनाम करने का सोचा-समझा षड्यंत्र चल रहा है। मुजफ्फर हुसैन
हिन्दी के लिए सरकार से लड़ने वाले योद्धा
गत 25 जुलाई को श्यामरुद्र पाठक को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। 16 जुलाई की शाम को उन्हें दिल्ली पुलिस ने नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर उस समय जबरन गिरफ्तार कर लिया जब वे सत्याग्रह पर बैठे थे। वे 225 दिनों से कांग्रेस मुख्यालय के बाहर सत्याग्रह पर इस मांग के साथ बैठे थे कि सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के अलावा सम्बंधित राज्यों की मातृभाषा में बहस हो। इसके लिए वे संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन चाहते थे। किन्तु सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मानी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
श्री पाठक को कांग्रेस मुख्यालय के बाहर सत्याग्रह करने की अनुमति बहुत मुश्किल से मिली थी। कई शर्तों के साथ उन्हें यह अनुमति मिली थी। शर्त के अनुसार वे सुबह 10 बजे कांग्रेस के दफ्तर के बाहर सत्याग्रह पर बैठते थे और शाम को छह बजे पुलिस उन्हें उठाकर तुगलक रोड थाने ले जाती थी। रात भर वे वहीं रहते थे। फिर सुबह वे सत्याग्रह स्थल पर पहुंच जाते थे। श्री पाठक आई आई टी दिल्ली के छात्र रहे हैं। वहां भी उन्होंने हिंदी के लिए संघर्ष किया था। अपनी परियोजना रपट (प्रोजेक्ट रिपोर्ट) हिन्दी में लिखकर उन्होंने हंगामा मचा दिया था। सरकारी हस्तक्षेप के बाद उनकी परियोजना रपट स्वीकृत हुई थी। उन्हीं के प्रयास से आई आई टी में हिंदी माध्यम से परीक्षाएं होने लगी हैं। श्री पाठक कहते हैं कि भारतीयों को अभी पूर्ण आजादी नहीं मिली है। जब तक लोगों को उनकी मातृभाषा में काम करने और पढ़ने का अधिकार नहीं मिलेगा तब तक यह कैसे कहा जा सकता है कि लोगों को आजादी मिल गई है?
खरी–खरी
'गांधी जी के बाद तो सारे गांधी अंग्रेजों के गुलाम हो गए हैं।'
-सुबोध कुमार तांती
'सत्याग्रहियों से दुर्व्यवहार, शर्म करो यूपीए सरकार'
-संजीव सिन्हा
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