शक्ति से देना होगा नक्सली हिंसा का जवाब
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 शक्ति से देना होगा नक्सली हिंसा का जवाब

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Jun 8, 2013, 12:00 am IST
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नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग (तृतीय वर्ष) के समापन समारोह में सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा-

दिंनाक: 08 Jun 2013 13:45:23

 

जब धर्म को जनता द्वारा अंगीकार किया जाएगा तब सामान्य जनता के मन में देशभक्ति, गुणवत्ता, महान कार्य करने का संकल्प और स्वयं स्वीकृत अनुशासन का आविर्भाव होगा। इससे समाज में समरसता आएगी और राष्ट्र विश्व कल्याण की दिशा में आगे बढ़ेगा। नैतिकता, विवेक और अध्यात्म के बल पर भारत विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है।

नक्सली हिंसा का जवाब शक्ति से देने की आवश्यकता है। अपने पराक्रम से नक्सलियों को समाप्त करने की क्षमता सुरक्षा बलों में होनी चाहिए। इसके लिए जवानों का आत्मविश्वास बढ़े इस दिशा में अपने सूचनातंत्र को भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शिता और उसे और अधिक परिपक्व बनाये जाने की जरूरत है। हमें ऐसा तंत्र विकसित करना होगा जिससे हमारे समाज के किसी भी वर्ग का शोषण न हो। समाज के हर तबके तक विकास की गंगा पहुंचे। ऐसा होने पर ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र से नक्सली मंशा को ध्वस्त किया जा सकता है।' उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने गत 6 जून को नागपुर (महाराष्ट्र) में सम्पन्न हुए संघ शिक्षा वर्ग (तृतीय वर्ष) के समापन समारोह को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। समारोह के मुख्य अतिथि चुनचुनगिरि मठ, बेंग्लूरू के मठाधिपति श्री निर्मलानन्द नाथ महास्वामी थे, जबकि विशेष अतिथि  थे बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ के प्रपौत्र श्री समरजीत सिंह गायकवाड़। मंच पर वर्ग के सर्वाधिकारी श्री पवन कुमार जिंदल तथा नागपुर महानगर संघचालक डा. दिलीप गुप्ता भी आसीन थे।

भारत सरकार की दुर्बल नीति

नक्सली हमले पर हो रही राजनीति को खोखला करार देते हुए सरसंघचालक ने कहा कि नक्सलियों को बंदी बनाने की दिशा में योजना बनाकर उस पर योग्य रीति से सरकार द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की दुर्बल और संवेदनहीन नीति से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल हुई है। लगातार हो रहे नक्सली हमले, भ्रष्टाचार और स्वार्थलोलुप राजनीति से देश की जनता का विश्वास शासन से उठने लगा है। ऐसे में भारत की जनता को अपने स्वत्व का बोध कराते हुए उसे सामाजिक पुनरुत्थान की दिशा में कार्य करने के लिए प्रवृत्त किया जाना चाहिए।

पिछले दिनों भारतीय सीमा में हुई चीनी घुसपैठ पर बोलते हुए सरसंघचालक ने कहा कि चीन के अड़ियल रुख के जवाब में भारत सरकार ने दृढ़ता नहीं दिखाई, जिसके कारण देश में तनाव उत्पन्न हुआ। मीडिया में जब यह विषय आया और जनता सवाल करने लगी तो सरकार ने कह दिया कि चीनी घुसपैठिए वापस चले गए। अब चीनी घुसपैठिए वापस गए या वहीं हैं, पता नहीं? उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार जनता को गुमराह कर रही है तो दूसरी ओर भारत के तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक तबके से ऐसा स्वर निकलने लगा है कि भारत की अपनी सीमा निश्चित नहीं है। इससे ऐसा लगने लगा है कि हमारे देश की जनता का दिमाग विदेशियों की पैरवी करने में लग रहा है। ऐसा भी लगता है, जैसे इस कार्य के लिए लोगों को तैयार करने में विदेशी सफल हो रहे हैं।

सरकार की विदेश नीति पर प्रहार करते हुए श्री भागवत ने कहा कि घुसपैठियों को देश से निकालने की कोई योजना सरकार क्यों नहीं बनाती? क्यों राष्ट्र की सीमा सुरक्षा के प्रति हमारे देश के राजनेताओं के दिल में आग नहीं है? देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की ही है। इसलिए सरकार को अपना कर्तव्य का भान होना चाहिए। कर्नाटक की वर्तमान सरकार द्वारा गोहत्या पर प्रतिबंध को वापस लिए जाने के संबंध में उन्होंने कहा कि सरकार बनते ही ऐसी कौन-सी समस्या थी जिससे गोहत्या पर लगे प्रतिबन्ध को कर्नाटक सरकार ने वापस ले लिया। उन्होंने कहा कि केवल अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए ऐसा किया गया।

भारत धर्मप्राण देश है

स्वामी विवेकानन्द के सन्देश का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत धर्मप्राण देश है। स्वामीजी ने कहा था 'जब तक भारत अपने धर्म का आश्रय लेता है तब तक दुनिया की कोई ताकत भारत का अहित नहीं कर सकती। और दुर्भाग्य से यदि भारत अपने धर्म को भूल गया तो दुनिया की कोई ताकत उसे बचा नहीं सकेगी'। उन्होंने कहा कि धर्म का आश्रय लेने पर ही अर्थ और काम में अनुशासन लाया जा सकता है।

श्री भागवत ने कहा कि समाज में धर्म को आचरणीय बनाए जाने वाली शिक्षा की हमें आवश्यकता है। जब धर्म को जनता द्वारा अंगीकार किया जाएगा तब सामान्य जनता के मन में देशभक्ति, गुणवत्ता, महान कार्य करने का संकल्प और स्वयं स्वीकृत अनुशासन का अविर्भाव होगा। इससे समाज में समरसता आएगी और राष्ट्र विश्व कल्याण की दिशा में आगे बढ़ेगा। यह धर्म जिसे दुनिया मानव धर्म कहती है वही हिन्दू-धर्म है। हिन्दू अपनी खामियों को दूर कर सार्मथ्य के साथ संगठित होकर जब दृढ़तापूर्वक खड़ा होगा तब ही भारत का उत्थान होगा। उन्होंने कहा कि नैतिकता, विवेक और अध्यात्म के बल पर भारत विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है।

श्री निर्मलानन्द नाथ महास्वामी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि भारत के विकास की बागडोर युवाओं के हाथ है। आज भारत सवार्धिक युवा सम्पन्न राष्ट्र है। देश के विकास में युवाशक्ति ही फलदायी है। आज इस विज्ञान के युग में मनुष्य के हृदय में मनुष्यत्व निर्माण करने तथा सकारात्मक कार्य करने की प्रेरणा देने वाली शिक्षा की आवश्यकता है।

समारोह के प्रारंभ में ध्वजारोहण के पश्चात स्वयंसेवकों द्वारा पथ संचलन, समता, दंड, घोष, व्यायाम योग तथा सूर्य नमस्कार का प्रदर्शन किया गया। वर्ग कार्यवाह श्री विट्ठलराव कांबले ने अतिथियों का परिचय कराया। वर्ग के सर्वाधिकारी श्री पवन कुमार जिंदल ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए संघ शिक्षा वर्ग का वृत प्रस्तुत किया। इस अवसर पर 'वही प्रेरणापुंज हमारे, स्वामी पूज्य विवेकानन्द' सामूहिक गीत प्रस्तुत किया गया। वि.सं.के., नागपुर

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