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श् श् श… सैम सब जानता है

by
Jun 29, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 29 Jun 2013 13:31:22

 

अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में 'अंकल सैम' नाम से कुख्यात अमरीका ने दुनिया के हर घर में हलचल मचा दी है। 'प्रिज्म' नाम से राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) द्वारा चलाए जा रहे जासूसी कार्यक्रम के जरिए उसने दुनिया के करोच्चें इंटरनेट उपभोक्ताओं के खातों में सेंध लगा दी है। इस बात से हर कोई साइबर सुरक्षा को लेकर चिंतित है।

विज्ञान के शब्दकोश में 'प्रिज्म' एक सतही, चमकीले आधार का रोशनी फेंकने वाला पारदर्शी आह्ळप्टीकल तत्व होता है। आज 'प्रिज्म' को अमरीका की एनएसए के गुप्त इलेक्ट्रानिक निगरानी कार्यक्रम के रूप में जाना जा रहा है। कुछ रपटों के अनुसार 'प्रिज्म' की शुरुआत 2007 में हुई थी। 'प्रिज्म' के नाम से प्रतीत होता है कि यह कांच के त्रिकोणीय टुकच्च्े की तरह काम करते हुए बच्च्ी मात्रा में सूचना लेता है और महत्वपूर्ण जानकारी जुटाने में सरकार की मदद करता है।

इस घटना ने जार्ज आह्ळरवेल के 1984 के एक काल्पनिक चरित्र 'बिग ब्रदर' की याद दिला दी है। इसमें 'डिस्टोपेन सोसाइटी' का वर्णन करते हुए आह्ळरवेल कहते हैं कि हर कोई टेली-स्क्रीन के जरिए अधिकारियों की पूर्ण निगरानी में है। लोगों को बार-बार यह तथ्य याद कराया जा रहा है कि उन पर गोपनीय ढंग से 'बिग ब्रदर' की निगाहें हैं।

आह्ळरवेल के टेली-स्क्रीन के स्थान पर आज हमारे पास इंटरनेट से जुच्च तंत्र है। 'प्रिज्म' के अंतर्गत लोकप्रिय इमेल सेवा प्रदाता, सोशल नेटर्वक और प्रमुख दूरसंचार और ब्राह्ळडबैंड कम्पनियां अपने उपभोक्ताओं की जानकारियां नियमित रूप से खुफिया एजेंसियों को अमरीका में उपलब्ध करा रही हैं। कुछ रपटों के अनुसार एनएसए और एफबीआई प्रमुख इंटरनेट कम्पनियों के केन्द्रीय सर्वर से विदेशी लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए आह्ळडियो, वीडियो, फोटो, चैट, इमेल, दस्तावेज आदि सीधे ले रही हैं।  

यहां सवाल यह है कि 'प्रिज्म' कितना बच्च है? जवाब है कि यह बहुत बच्च है। माइक्रोसाह्ळफ्ट, याहू, गूगल, फेसबुक, पलटाह्ळक, एओएल, स्काइप, यू-ट्‌यूब, एप्पल आदि इसकी जद में हैं। जब इतनी बच्च्ी वैश्विक कम्पनियां एनएसए और अन्य अमरीका आधारित कम्पनियों को अपनी सभी सूचनाएं उपलब्ध कराएंगी तो खुफिया कार्यक्रम सिर्फ अमरीका तक ही सीमित नहीं रह जाता, यह वैश्विक हो जाता है। भारत के सरकारी विभागों/अधिकारियों और कुछ महत्वपूर्ण विभागों की बहुत बच्च्ी तादाद ऐसी है जिसका खाता माइक्रोसाह्ळफ्ट, याहू, गूगल, फेसबुक, पलटाह्ळक, एओएल, स्काइप, यू-ट्‌यूब, एप्पल आदि पर है।

यह भी कहा गया है कि एनएसए पानी में डूबें केबल से इंटरनेट डाटा तक पहुंच गया है। इसलिए पानी के भीतर केबल से प्रौद्योगिकी कम्पनियांे के 'बल्क' इंटरनेट डाटा को लेने की अनुमति 'प्रिज्म' के जरिए एनएसए को हो गई है।   

एनएसए के अधिकारी स्काइप, जीमेल आदि माध्यमों पर होने वाली बातचीत और चैट के जरिए अपने 'शिकार' तक सही समय में पहुंच जाते हैं। अमरीका डिजिटल बातचीत के किसी भी टुकच्च्े को पकच्च्ने में सक्षम है। चाहे वह इमेल हो, आह्ळडियो चैट या फिर वीडियो। यह इसलिए, क्योंकि दुनिया का सबसे ज्यादा इलेक्ट्रानिक संचार अमरीका से होकर गुजरता है। इलेक्ट्रानिक संचार सीधे रास्ते को अपनाने की बजाय, कम महंगे रास्ते को अपनाता है। इंटरनेट का बच्च आधारभूत ढांचा अमरीका में ही स्थापित है। 'प्रिज्म' संदेशों को पढ्ढने के लिए आधुनिक तकनीक को अपनाता है जिसके माध्यम से पता चल जाता है कि संदेश संदेहास्पद है या नहीं? अमरीका ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि करीब 6 साल पहले से अमरीका की सरकार ने अनेक इंटरनेट कम्पनियों- गूगल, फेसबुक आदि से सूचनाएं इकट्ठी की थीं जिनमें विदेशी नागरिकों की अनके सूचनाएं ऐसी थीं जो अमरीका की सुरक्षा को चुनौती दे रही थीं।

अमरीका के इस जासूसी कार्यक्रम की अनेक यूरोपियन देशों ने कच्च्ी निंदा की है लेकिन भारत की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया इस संबंध में नहीं आई है। यहां सरकार घोटालों और भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूबी हुई है। शायद इसी कारण वह अमरीका के खिलाफ बोलने की हिम्मत न दिखा पा रही हो। कारण यह भी हो सकता है कि भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या अधिक न होने के कारण वे जाति आधारित चुनावी गणित को प्रभावित नहीं कर सकते। इसलिए इंटरनेट उपभोक्ताओं की निजता राजनीतिक दलों के लिए कोई मायने नहीं रखती।

भारत, विशेषकर सरकारी क्षेत्र में साइबर सुरक्षा उम्दा नहीं है। ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं जब सरकार की वेबसाइट 'हैक' कर ली गईं या फिर उनसे महत्वपूर्ण डाटा हटा दिया गया। अनेक बार सरकार का गोपनीय डाटा सायबर हमले या उपेक्षा की भेंट चढ्ढ गया। हर घटना के बाद सरकारी विभाग आह्ळनलाइन हो जाते हैं और 'हैकर' उन पर फिर से नजर गढ्ढा लेते हैं। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि भारत सरकार देशभर के इंटरनेट खातों के समन्वय और विश्लेषण के लिए केन्द्रीय तंत्र बना रही है। इस तंत्र को नेशनल साइबर कोआर्ह्ळडिनेशन सेंटर (एनसीसीसी) कहा जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या एनसीसीसी देश की साइबर सुरक्षा में प्रभावी साबित होगा? खबरों के अनुसार एनसीसीसी का लक्ष्य निजी नहीं, बल्कि भारतीय सायबर ढांचे को मिल रही चुनौतियों का होगा। अनूप वर्मा

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