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वर्ष प्रतिपदा विशेषांक बेहद पसन्द आया। मैं वर्षों से पाञ्चजन्य पढ़ रहा हूं, किन्तु पहली बार ऐसा विशेषांक पढ़ने को मिला। यह विशेषांक अन्य विशेषांकों से बिल्कुल हट कर है। आज के बच्चे घोर अभाव के बावजूद हर क्षेत्र में बहुत सुन्दर काम कर रहे हैं। नई-नई उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं। मैंने अपने पोते को भी यह अंक पढ़वाया, वह भी बड़ा प्रभावित हुआ।
–पीताम्बर दत्त प्रभाकर
9ए/77, डब्ल्यू.ई.ए., करोलबाग, नई दिल्ली-110005
सच में विशेष है। बहुत सारे लोग बहुत अच्छे-अच्छे काम कर रहे हैं। उनके बारे में समाज को जानकारी मिलेगी तो निश्चित ही दूसरे लोग भी अच्छा करने का प्रयास करेंगे। पाञ्चजन्य परिवार आगे भी इसी तरह के प्रेरक अंक उपलब्ध कराएगा, यही उम्मीद है।
–विकास कुमार
शिवाजी नगर, वडा, थाणे (महाराष्ट्र)
n यह अच्छी बात है कि 'परिवर्तन के पुरोधाओं' की चर्चा के साथ-साथ पाञ्चजन्य में परिवर्तन किया गया है। अपनी बात अच्छी लगी। हम खुद बदलाव का बीज बनें। सही लिखा गया है कि हमारा उद्धार हो, इसका जिम्मा किसी नेता, नारे, नीति, पार्टी, महापुरुष, अवतार, संस्था, सम्प्रदाय के हवाले करने से हमारी पार लगेगी क्या? बिल्कुल नहीं। अपने उद्धार के लिए हमें ही कमर कसनी होगी।
–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह 'सोनगरा'
कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)
n अपनी बात प्रेरणादायक लगी। आज लोगों को नई दिशा खोजने के लिए, परिवर्तन लाने के लिए संकल्प लेने की जरूरत है। ऊंचाई को छूने के लिए मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति भी चाहिए। पाञ्चजन्य ने मेहनती और संकल्पी लोगों का परिचय देकर पाठकों को प्रोत्साहित करने का काम किया है।
–देशबन्धु
आर जेड-127, प्रथम तल, सन्तोष पार्क,
उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
n विशेषांक में अनेक समाज-सेवियों के कार्यों और प्रतिभाशाली छात्रों का परिचय दिया गया है। उत्तर प्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने वाली दुइजी अम्मा ने यह साबित किया है कि आप यदि अपनी जगह ठीक हैं तो सत्तामद में चूर लोग भी आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकते हैं। जीत तो सत्य की ही होती है।
–कविता रावत
भोपाल (म.प्र.)
n विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन में लगे युवाओं की प्रेरक कहानियां दिल को छू गईं। यह अंक पाठकों को भी प्रेरणा देगा कि तुम भी प्रण कर लो सफलता जरूर मिलेगी। मुम्बई की प्रेमा जयकुमार की प्रगति-गाथा और जयपुर की मनन चतुर्वेदी का वात्सल्य भरा काम हमें भी मेहनत और सेवा के लिए प्रेरित करता है।
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
n मध्य प्रदेश के टेक्सटाइल इंजीनियर हर्ष गुप्ता ने खेती में सफल प्रयोग किया है। अगर हम अपने से किसी लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रण कर लें तो राह कठिन नहीं लगती है। भारत की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इस हालत में स्व-रोजगार पैदा करने का प्रयास होना चाहिए। कई युवा ऐसा कर रहे हैं, वे सही मायने में देश की सेवा कर रहे हैं।
–दिनेश गुप्ता
कृष्णगंज, पिलखुवा, हापुड़ (उ.प्र.)
सऊदी अरब से कुछ सीखो
सऊदी अरब में ऐतिहासिक अलहरम मस्जिद में हो रही तोड़-फोड़ के बारे में पढ़ा। पाकिस्तान, बंगलादेश आदि मुस्लिम देशों में भी रेल मार्ग, सड़क या और कुछ महत्वपूर्ण भवन बनाने के लिए अनेक मस्जिदें और मजारें तोड़ी जाती रही हैं। पर कभी इनका विरोध नहीं हुआ, लोग सड़कों पर नहीं उतरे। किन्तु भारत में किसी मस्जिद या मजार की एक ईंट खिसक जाने पर भी लोग चिल्लाने लगते हैं 'इस्लाम खतरे में।'
–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
1-10-81, रोड नं.-8 बी
द्वारकापुरम, दिलसुखनगर
हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)
n भारत के नेताओं को सऊदी सरकार से और भारतीय मुस्लिमों को सऊदी मुस्लिमों से सीख लेनी चाहिए। भारत में न्यायालय के आदेश पर एक अवैध मस्जिद को गिराने पर नेता चिल्लाने लगते हैं और मुस्लिम सड़कों पर उतर आते हैं। प्रजातंत्र का मतलब यह नहीं है कि गलत कामों के लिए भी सरकार पर दबाव डाला जाए।
–गणेश कुमार
कंकड़बाग, पटना (बिहार)
बलि राजा की, दोष प्रधामंत्री का
पूर्व केन्द्रीय मंत्री और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के आरोपी ए. राजा ने साफ-साफ कहा कि उन्होंने जो कुछ किया प्रधानमंत्री की जानकारी में किया। फिर भी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने प्रधानमंत्री को बरी करते हुए कहा कि 2जी आवंटन में प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय की भूमिका नहीं रही है। बड़ी विडम्बना है कि 2 जी आवंटन में सिर्फ ए. राजा को बलि का बकरा बनाया जा रहा है, जबकि इस घोटाले में प्रधानमंत्री, और वित्त मंत्री भी शामिल हैं। कांग्रेस पार्टी के प्रबंधक अपने नेताओं को किसी भी सूरत में बचा ले जा रहे हैं और दूसरी पार्टी के नेताओं पर अपने 'पाप' का बोझ डाल रहे हैं।
–हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)
कलम के धनी
गणेश शंकर विद्यार्थी के बारे में बड़ी अच्छी जानकारी मिली। विद्यार्थी जी ने अपने लेखों के माध्यम से अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। 1931 में कानपुर में दंगाइयों को शान्त करने के दौरान किसी ने उनकी हत्या कर दी थी। उनकी हत्या न हुई होती तो शायद स्वतंत्रता की अग्नि और अधिक प्रज्ज्वलित होती।
–गोपाल
गांधीग्राम, जिला–गोड्डा (झारखण्ड)
यह कैसी सजा?
पंजाब सहित पूरे देश की जेलों में ऐसे बहुत से कैदी हैं जिनकी सजा पूरी हो चुकी है, पर वे वर्षों से सीखचों में बंद हैं, क्योंकि जेल से बाहर जाने के लिए जो नक्शे आदि बनवाने और सरकार से मंजूर करवाने की जटिल प्रक्रिया उनके परिवार पूरी नहीं कर पाए। ऐसे बहुत से मामले देखने में आए, जब जेल अधिकारी तो फाइल गृह विभाग को भेज देते हैं, पर वहां फाइलें दबी रहती हैं। अपराध करने के लिए जो सजा मिली, उसे तो सहना कम कठिन है, पर सजा पूरी होने के बाद सरकारी लापरवाही अथवा परिवारों की कमजोरी के कारण मिल रही सजा सहना कितना कठिन है यह वही जानते हैं जिन्हें इस यातना से गुजरना पड़ता है।
पंजाब सरकार और भारत के गृहमंत्री दोनों से ही यह निवेदन है कि सभी जेलों से यह जानकारी लें कि कितने लोग ऐसे हैं जो सजा पूरी होने के बाद भी सजा भुगत रहे हैं। ऐसे व्यक्तियों को मुक्त करवाने के लिए मानवाधिकार आयोग को भी आगे आना चाहिए। राजधानियों के ठंडे कमरों में बंद अधिकारी तथा मानवाधिकार आयोग न्याय नहीं दे सकता। उन्हें दुखी लोगों के पास जाना ही चाहिए, जाना ही पड़ेगा।
–लक्ष्मीकांता चावला
अमृतसर (पंजाब)
जब एक पुराना प्रसंग याद आया
पाञ्चजन्य के विशेषांक के बारे में हम सबके सुपरिचित और मार्गदर्शक श्री मा.गो. वैद्य ने एक पत्र भेजा है। उसे यहां 'विशेष पत्र' के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।
वर्ष प्रतिपदा के शुभ अवसर पर पाञ्चजन्य की टोली ने जो विशेषांक प्रकाशित किया, उसके लिए मैं उस टोली का अभिनंदन करता हूं। पाञ्चजन्य ने अपने प्रिय भारतवर्ष को नया चेहरा देने वाले अनोखे कर्तृत्व और चरित्र के धनी व्यक्तियों का परिचय करा दिया है। यह विशेषांक पढ़ते समय मुझे 12-13 वर्ष पूर्व के एक प्रसंग का स्मरण हुआ। बात सन् 2000 की होगी। मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवक्ता के नाते दिल्ली में रहने लगा था। एक बार दिल्ली से प्रकाशित होने वाले 'पंजाब केसरी' के एक अंक में संघ के बारे में एक ऊटपटांग समाचार पढ़ने में आया। मेरे उस समय के सहयोगी डा. बलराम जी मिश्र के साथ मैं 'पंजाब केसरी' के सम्पादक श्री अश्विनी कुमार जी को मिलने गया था और उस घटना की हकीकत के संबंध में सही जानकारी दी। श्री बलराम जी ने, मैं नागपुर से प्रकाशित होने वाले मराठी दैनिक 'तरुण भारत' का भूतपूर्व सम्पादक हूं, ऐसा परिचय करा दिया। तो उन्होंने कहा कि हमारे समाचार पत्र में भी लिखिये। मैंने कहा कि मेरी हिन्दी उतनी अच्छी नहीं है। तो उन्होंने कहा कि आप लिखिये, हम ठीक कर लेंगे। फिर मैंने कहा कि राजनीतिक विषयों पर नहीं लिखूंगा। उन्होंने वह भी मान लिया।
किन विषयों पर लिखना चाहिए ऐसा मैं सोच रहा था तो हमारी कार के सामने जाने वाले एक ट्रक के पीछे लिखी हुई एक पंक्ति मैंने पढ़ी। वह पंक्ति थी 'सौ में से निन्यानवे बेईमान फिर भी मेरा भारत महान'। मन में विचार आया कि क्या बेइमानों की इतनी बड़ी संख्या होने के बाद भी कोई देश महान बन सकेगा? ध्यान में आया कि कितने ही लोग प्रचार से दूर रहकर शान्त, निरपेक्ष भाव से ऐसे कार्य कर रहे हैं, जो सचमुच भारत को महान बनायेंगे। और मैंने सप्ताह में एक बार, ऐसे लोगों के और कार्यों के बारे में पचास लेख लिखे। उन लेखों की एक पुस्तक भी बनी जिसका प्रकाशन लखनऊ के 'लोकहित प्रकाशन' ने सन् 2007 में किया। पुस्तक का नाम है 'मेरा भारत महान'। पाञ्चजन्य की टोली ने जिन नामों का चयन किया है वे सारे बहादुर तरुण हैं। संभवत: मैंने जिनका चयन किया वे सारे तरुण नहीं थे, लेकिन महान अवश्य थे। आपको उचित लगे तो उनका परिचय, आप अपने पाठकों को दे सकते हैं, मेरी अनुमति है।
फिर से अभिनंदन!
–मा.गो. वैद्य
19, जयप्रकाश नगर, पोस्ट–खामला, नागपुर-440025 (महाराष्ट्र)
babujivaidya@gmail.com
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