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वंचित वर्ग के छात्रों को हिन्दू विरोधी बनाने का कुचक्र

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May 4, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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उस्मानिया में ईसाई षड्यंत्र

दिंनाक: 04 May 2013 13:02:47

मां सरस्वती की प्रतिमा तोड़ी, महापुरुषों के चित्रों का तिरस्कार

 

वेटिकन के इशारे पर कांचा इलैया और उनके कम्युनिस्ट साथियों ने पिछले साल 'बीफ फेस्टिवल' करवा कर परिसर का माहौल खराब किया। अब मोबाइल चोरी की छोटी सी घटना पर छात्रों को भड़काकर हिन्दू देवी–देवताओं, महापुरुषों का अपमान किया, हिन्दू मूल्यों का उपहास उड़ाया। अगर समय रहते ऐसे तत्वों पर रोक न लगाई गई तो विश्वविद्यालय और आस–पास के इलाके में साम्प्रदायिक तनाव को और उकसाया जाएगा।

आमतौर पर शांत दिखने वाले हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय परिसर में पिछलों कई सालों से ईसाई तत्व माहौल बिगाड़ने में जुटे हुए हैं। वहां 'फिफ्थ वेव' का उन्माद पैदा किया जा रहा है। उनके निशाने पर हैं वहां पढ़ने वाले वंचित वर्ग के मासूम और भावुक छात्र। षड्यंत्री ईसाई तत्व उनके दिमाग में जहर रोपकर न केवल परिसर का माहौल दूषित कर रहे हैं, बल्कि आस- पास के इलाकों में भी सामाजिक सौहार्द को तार-तार कर रहे हैं। चाहे वह 16 अप्रैल 2012 को किया 'बीफ फेस्टिवल' हो या हाल में परिसर के मंदिर में लगी मां सरस्वती की प्रतिमा का तोड़ा जाना, या फिर वहां हॉस्टल में रह रहे अभाविप कार्यकर्ता के कमरे में जबरन घुसकर दीवारों पर लगे देश के महापुरुषों के चित्रों को फाड़ना, तोड़ना।

ऐसे कई हथकंडे अपनाए जा रहे हैं ताकि वहां के वंचित वर्ग के छात्रों में हिन्दुओं के विरुद्ध विष घोला जाए। इतना ही नहीं, वंचित वर्ग के छात्रों के दिमाग में रोपा जा रहा है कि 'तुम तो रावण, तातकी, नरकासुर वगैरह के वंशज हो।' इस जहर को गहरा करने के लिए उनके बीच ऐसा जहरीला साहित्य बांटा जाता है जो उन कांचा इलैया जैसों ने लिखा है जो सामाजिक न्याय के बहाने वेटिकन के इशारे पर सिर्फ और सिर्फ हिन्दू इतिहास, संस्कृति और मूल्यों को तहस-नहस करने में लगे हैं। मिसाल के लिए, आंध्र प्रदेश में गोमांस बेचने, पकाने और खाने पर 1977 के कानून के तहत पूरी तरह रोक है। लेकिन तब भी वंचित वर्ग के छात्रों को 'यह हमारा हक है' के नाम पर 16 अप्रैल 2012 को 'बीफ फेस्टिवल' मनाने को उकसाया गया। इससे न केवल कानून की धज्जियां उड़ाई गईं, बल्कि अभाविप और स्थानीय प्रशासन के विरोध करने पर जान लेने-देने पर उतारू हो गए।

ताजा घटना की बात करें तो, 27 अप्रैल 2013 को एक अभाविप कार्यकर्ता ने उस्मानिया परिसर पुलिस थाने में अपना मोबाइल फोन गुम होने की रपट दर्ज कराई। इसे वंचित वर्ग का अपमान बताते हुए तमाम कम्युनिस्ट सोच के छात्र संगठनों के कार्यकर्ताओं का एक झुण्ड मनमानी पर उतर आया। उसने सीधे परिसर के मंदिर का रुख किया और सबकी नजरों के सामने वहां स्थापित मां सरस्वती की प्रतिमा तोड़ डाली। झुण्ड फिर अभाविप कार्यकर्ता राजेन्द्र प्रसाद और उनके साथी छात्रों को खोजने लगा, रास्ते में जो दिखा उसे तोड़ते हुए वे लोग हॉस्टल की तरफ बढ़ने लगे। वहां राजेन्द्र प्रसाद के कमरे में पहुंच कर उन्होंने दीवारों पर लगे रा.स्व.संघ के आद्य सरसंघचालक डा. केशव बलिराम हेडगेवार, वीर सावरकर और लोकमान्य तिलक के चित्रों को तोड़ डाला।

पिछले साल भी ऐसी ही किसी मोबाइल फोन खोने की रपट को बहाना बनाकर हिन्दुओं पर निशाना साधा गया था। तब भी हिन्दू देवी-देवताओं, महापुरुषों के चित्र और प्रतिमाएं तोड़ी गई थीं, हिन्दू छात्रों को शारीरिक और मानसिक तौर पर आहत किया गया था।

वक्त आ गया है कि प्रशासन और सभ्य समाज ऐसे उपद्रवियों और उनको राह से भटकाने वाले कांचा इलैया जैसों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, जो हिन्दू समाज को तोड़ने के मौके ही तलाशते रहते हैं, समाज के सौहार्द को चोट पहुंचाते हैं। उस्मानिया विश्वविद्यालय के ज्यादातर छात्र ऐसे ईसाई षड्यंत्रों को पहचानने लगे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि परिसर में हिन्दू विरोधी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाई जाए, देश विरोधी साहित्य पर रोक लगाई जाए।   विसंके, आंप्र

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