म्यांमार में बौद्ध भिक्षु के हत्यारों को 28 साल की जेल
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म्यांमार में बौद्ध भिक्षु के हत्यारों को 28 साल की जेल
म्यांमार में पिछले दिनों अल्पसंख्यक मुस्लिमों ने वहां के बहुसंख्यक बौद्धों के खिलाफ
खुलकर हिंसा की थी, कितने ही लोगों को मारा गया, गांव के गांव फूंके गए, कितनों को जिंदगी भर के लिए अपाहिज बना दिया गया। म्यांमार में अदालतों में उस हिंसा के बाद कई मुकदमों की सुनवाई चल रही है। कुल 86 लोगों को हिरासत में लिया गया था, जिसमें बौद्धों की भी अच्छी-खासी संख्या है। वहां के मानवाधिकारी गुटों ने भी मुस्लिमों के सुर में सुर मिलाते हुए सुरक्षाबलों पर ही हिंसा पर देर से कार्रवाई करने का आरोप लगाया था। 86 में से दस मुस्लिम अपराधियों को तो पहले ही जेल भेजा जा चुका है। 21 मई को और सात मुस्लिमों को सजा सुनाई गई जिन पर एक बौद्ध भिक्षु की हत्या, गैरकानूनी साठगांठ और जनता के बीच अफरातफरी मचाने का आरोप था। इन अपराधियों को दो से 28 साल तक की सजा सुनाई गई है। बताया गया है कि इस भिक्षु की हत्या के बाद से तनाव उपजा और वहां के रोहिंग्याई मुस्लिमों ने जमकर उत्पात मचाया।
केन्या के आयोग ने कहा-
गुलामी के दौर में दीं यातनाओं की माफी मांगे ब्रिटेन
अफ्रीकी देश केन्या में सरकार के अनुदान से बने एक आयोग ने अपनी रपट में लिखा है कि केन्या को जब ब्रिटेन ने अपना गुलाम बना रखा था उस दौरान उसने जो हत्या, यातना और यौन हिंसा के अपराध किए उसके लिए ब्रिटेन को सबके सामने बिना शर्त माफी मांगनी चाहिए। केन्या के 'ट्रुथ, जस्टिस एंड रीकन्सिलिएशन कमीशन' का गठन वहां की सरकार ने 2007 में चुनावों के बाद हुई हिंसा के संदर्भ में किया था। आयोग से 1963 में ब्रिटेन से केन्या के आजाद होने से लेकर 2007 तक जनता के साथ हुए अन्याय की जांच करने को कहा गया था। लेकिन आयोग ने जांच के दायरे में उपनिवेशकाल को भी शामिल कर लिया। 21 मई को केन्या के राष्ट्रपति को सौंपी गई चार खण्डों की इस रपट में आयोग ने माफी ही नहीं, ब्रिटेन से गुलामी के दिनों में सताए गए लोगों मुआवजा देने को भी कहा है।
अगर यह मुआवजा मिलता है तो उन हजारों लोगों के दिन फिर जाएंगे जो 1950 के दशक में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध हुई माऊ माऊ क्रांति में शामिल थे। वैसे वहां ब्रिटिश सरकार के वकीलों ने अंदरखाने मुआवजे के भुगतान के बारे में बातचीत शुरू भी कर दी है।
फ्रांस की मांग-'हिज्बुल्ला' आतंकवादी, काली सूची में डालो
यूरोपीय संघ के एक बड़े देश के तौर पर फ्रांस ने मांग की है कि हिज्बुल्ला के फौजी दस्ते को आतंकवादी घोषित करके उसका नाम यूरोपीय संघ की आतंकवादियों की काली सूची में जोड़ा जाए। फ्रांस के विदेश मंत्री फाबियूस का कहना है कि ये उग्रवादी गुट सीरियाई सत्ता की तरफ से लड़ रहा है और सीरिया की जनता पर कहर बरपा रहा है, राष्ट्रपति असद की फौज के साथ मिलकर कई शहरों में रक्तपात मचा रहा है। फ्रांस के विदेश मंत्री का कहना है कि यूरोप के कई देशों का ऐसा ही सोचना है। हिज्बुल्ला के एक नजदीकी सूत्र ने माना भी है कि इस गुट ने सीरिया में नया ज्यादा मारक दस्ता भेजा है। हिज्बुल्ला के टेलीविजन चैनल ने तो सीरिया में लड़ते हुए मारे गए अपने पांच लड़ाकों के दफनाने की तस्वीरें दिखाईं और कहा कि ये 'जिहादी कर्तव्य' निभाते हुए मारे गए हैं। उधर अमरीका के विदेश मंत्री जॉन कैरी ने कहा कि अन्य देशों के साथ अमरीका भी हिज्बुल्ला के विध्वंसक कृत्यों की निंदा करता है। सीरिया की सत्ता को मिल रही इस फौजी मदद से वहां नस्लीय तनाव बढ़ रहे हैं और सत्ता का अपनी ही जनता के खिलाफ आतंक बरपाने का अभियान तेज हो रहा है। गौर करने की बात है कि अमरीका ने तो पहले से ही लेबनान के इस उग्रवादी गुट को आतंकवादी घोषित किया हुआ है।
पोप ने की झाड़–फूंक, चर्च में बढ़ा विवाद
वेटिकन लाख मना करे कि पोप फ्रांसिस ने कोई झाड़-फूंक नहीं की, किसी की प्रेत बाधा का उपचार नहीं किया, लेकिन चर्च में इस पर भीतर ही भीतर खुसर-पुसर तेज होती जा रही है। दरअसल हुआ यूं था कि 21 मई को मैक्सिको से 43 साल का एक विकलांग आदमी सेंट पीटर्स स्क्वायर की रविवार की प्रार्थना में भाग लेने रोम पहंुचा। प्रार्थना में पोप फ्रांसिस आए थे। प्रार्थना खत्म होने पर पोप वहां आए तमाम पहिए की कुर्सियों पर बैठे विकलांग अनुयायियों की तरफ बढ़ गए। वहीं पहिए की कुर्सी पर यह मैक्सिको से आया आदमी भी था, जिसके सिर पर दोनों हाथ रखकर पोप ने आंख बंद करके कुछ बुदबुदाया। ऐसा होते वक्त उस आदमी ने कई बार गहरी सांसें लीं, कंपकपाया और अंत में पछाड़ खाकर एक तरफ लुढ़क गया। उसे साथ लाने वाले पादरी ने बताया कि वह प्रेत बाधा से पीड़ित था और उस पर कोई 'साया' था। पोप के इस सारे उपक्रम की तस्वीरें दुनियाभर में फैल गईं। लोग दबी जुबान कहने लगे कि लगता है पोप प्रेत बाधा दूर करते हैं। इसी बीच झाड़-फूंक करके 'साया' दूर करने के लिए मशहूर एक तांत्रिक ने कहा कि इसमें शक नहीं कि पोप ने प्रेत बाधा दूर करने का ही उपक्रम किया था। वह आदमी चार अलग अलग 'सायों' के कब्जे में था।
उस तांत्रिक के ऐसा कहने के बाद तो चर्चा जोर-शोर से चल निकली। इटली के बिशपों की कांफ्रेंस ने ऐलान कर दिया कि कई तांत्रिकों के मुताबिक, इसमें 'कोई शक नहीं' कि फ्रांसिस ने उस आदमी पर मंडराते 'साए' को हटाने के लिए झाड़-फूंक या कोई प्रार्थना जरूर की थी। प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी
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