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महाराष्ट्र में गर्मी के अपनी चरम सीमा पर पहुंचने के साथ ही राज्य की जनता का हाल बेहाल हो रहा है। सूखाग्रस्त इलाकों को सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिलती जबकि राज्य के अन्य हिस्सों में पीने का पानी तो है पर उन्हें भी बिजली की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
वर्षा न होने, सूखे की स्थिति के कारण फसल से हाथ धोने के बाद किसानों को जो कुछ करना तथा सहना पड़ रहा है, वह बहुत त्रासदपूर्ण है। सूखाग्रस्त औरंगाबाद तथा जालना जिलों में मौसमी की फसल उगाकर उसको पर्याप्त पानी देकर उसकी परवरिश करने वाले किसान अब अपनी आंखों के सामने जल गये मौसमी के पेड़ों को घर के चूल्हे में जलाने के काम में ला रहे हैं। यही एक बात विषय की गंभीरता को स्पष्ट कर देती है।
फसलों-पौधों के साथ-साथ क्षेत्र के किसानों के पशुओं, विशेषकर गाय, बैल तथा भैंस के हाल और भी बदतर हो गये हैं। इन पशुओं के लिये प्रशासन तथा स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से जो राहत शिविर लगाये गये हैं, वहां जानवरों की संख्या क्षमता से दोगुनी तक हो गई है तथा उन्हें ठूंस-ठूंस कर रखा जा रहा है। मराठवाड़ा के बीड़ जिले के आल्टी तहसील में ऐसे ही एक पशु शिविर में 1100 पशुओं के स्थान पर 2831 पशुओं को रखा गया है। इसके कारण इन पशुओं के पोषण तथा देखभाल की समस्या खड़ी हो गयी है। आल्टी तहसील में इस प्रकार से अन्य 15 शिविर लगाये गये हैं। खेत तथा फसल से हाथ धोने के बाद अब सूखा पीड़ित क्षेत्र के किसान अपने पशुओं को आधी कीमत में भी बेचने के लिए विवश हो गये हैं। इन जिलों के कस्बों में इन दिनों साप्ताहिक हाट में सब्जी एवं अनाज की नहीं, पशुओं की खरीद भारी मात्रा में हो रही है। अधिकांश पशु तस्कर और मांस के व्यापारी ही पशुओं की खरीद कर रहे हैं। यह भविष्य के लिए किसी बड़े संकट से कम नहीं है।
जालना जिले के दो-तिहाई गांवों को राज्य सरकार ने आधिकारिक तौर पर सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। इन गांवों से हजारों की संख्या में ग्रामीण तथा मजदूर काम एवं रोजगार की तलाश में नासिक, पुणे, मुम्बई, ठाणे जैसे नगरों में पहले ही चले गये हैं। मराठवाड़ा विकास निगम के सदस्य तथा इस क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता विजय दिवाण के अनुसार सूखे के प्रकोप के साथ-साथ प्रशासन की विफलता ने ग्रामीणों की विवशता को बढ़ाने का काम किया है। इससे पहले राज्य में 1972 में पड़ा सूखा इस सूखे से भी भीषण था। उन दिनों संसाधनों की भी अत्याधिक कमी थी। पर प्रशासनिक इच्छाशक्ति एवं जनसहयोग से उस समय के अकाल के समय ग्रामीणों की ऐसी दुर्दशा नहीं हुई थी, जैसी आज हो रही है। इसके साथ ही सूखाग्रस्त क्षेत्र को लेकर भी राजनीति चल रही है। सत्तापक्ष के नेताओं के प्रभाव वाले पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र के शोलापुर, सांगली तथा सतारा जिलों में शासन द्वारा पशुओं की देखभाल के लिये 457 राहत शिविर चलाये जा रहे हैं, जबकि सूखे की अधिक चपेट में आये हुए मराठवाड़ा के उस्मानाबाद, लातूर, बीड़, औरंगाबाद तथा जालना जिलों के पशुओं के लिये मात्र 40 राहत शिविर लगाये गए हैं।
प्रशासन की इस संवेदनहीनता और भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ भाजपा ने भी आवाज उठाई है। भाजपा नेता बबनराव लोणीकर तथा जालना के भाजपा सांसद रावसाहेब दानवे ने जिला प्रशासन पर लगातार दबाव बनाकर सूखाग्रस्त क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए पेयजल की समस्या के समाधान के प्रयास किए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा औरंगाबाद तथा जालना की यात्रा करने के बाद मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने औरंगाबाद समस्या का नये सिरे से अध्ययन किया। बीड़ के भाजपा सांसद गोपीनाथ मुंडे सरकार की सूखे से संबद्ध नीति एवं नीयत के खिलाफ औरंगाबाद में अन्य कार्यकर्ताओं के साथ अनशन पर बैठ गए। इसके बाद राज्य सरकार को पुणे संभाग के बांधों का पानी गन्ने की फसल की बजाय मराठवाड़ा की जनता एवं पशुओं के पेयजल पूर्ति हेतु भेजना पड़ा, जिससे जनता को कुछ राहत मिली।
सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार अप्रैल, 2012 से लेकर मार्च, 2013 के बीच राज्य के 19 मंत्रियों के राजधानी मुम्बई के निवास स्थानों में ही 9 करोड़ 48 हजार लीटर पानी व्यय हुआ है, जिसका औसत लगभग 50 लाख लीटर पानी प्रति परिवार प्रतिवर्ष आता है। जनता यह देखकर कहना चाहती है- डूब मरो चुल्लू भर पानी में। पर ऐसे नेता लाखों लीटर पानी में भी नहीं तर हो पा रहे हैं।
राज्य के मंत्रियों द्वारा मुम्बई स्थित राजकीय निवास स्थान में व्यय किये गये पानी के अपव्यय का ब्यौरा कुछ इस प्रकार है-
नाम एक वर्ष में पानी का व्यय (लीटर में)
छगन भुजबल 1,26,95,000
आर.आर. पाटिल 79,14,000
पृथ्वीराज चव्हाण (मुख्यमंत्री) 77,32,000
हर्षवर्धन पाटिल 49,52,000
राजेन्द्र दर्डा 49,05,000
जयदत्त क्षीरसागर 46,06,000
डा. पतंगराव कदम 18,23,000
नारायण राणे 6,94,000
जयंत पाटिल 39,12,000
अजित पवार (उपमुख्यमंत्री) 43,89,000
राधाकृष्ण बिखे पाटिल 46,61,000
बालासाहब थोरात 71,44,000
सुनील तटकरे (जल संसाधन मंत्री) 28,72,000
राज्य का आधे से अधिक क्षेत्र गर्मी तथा सूखे से जूझ रहा है। पेयजल तेल से भी महंगा हुआ जा रहा है। सूखे कुओं से पानी निकालने की कोशिश में मराठवाड़ा की 50 से भी अधिक महिलाओं की कुओं में गिरकर मौत हो चुकी। ऐसे माहौल में राज्य के मंत्रियों द्वारा अपने निवास स्थान पर इस प्रकार किये गये पानी के अपव्यय से सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों की असंवेदनहीनता ही उजागर होती है। द.बा.आंबुलकर
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