कार्य-मग्नता ही जीवन, मृत्यु विश्रांति
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स्व.संघ की प्रचारक परम्परा के आदर्शों में एक नाम है स्व. श्रीकांत जी जोशी का। इसी वर्ष 8 जनवरी को मुम्बई में उनका निधन हो गया। ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व के अचानक चले जाने से सभी स्तब्ध थे। चारों तरफ से शोक संदेश मिलने लगे तो उनमें श्रीकांत जी के व्यक्तित्व के बहुत से ज्ञात-अज्ञात पहलू सामने आए। कार्यकर्ताओं को फिर ऊर्जा मिली कि उनके दिखाए रास्ते पर चलकर चुनौती का सामना करेंगे। और हम ही क्यों, श्रीकांत जी से जुड़ा हर व्यक्ति उनके व्यक्तित्व को जाने, उनसे प्रेरणा ले, इसलिए सभी श्रद्धाञ्जलियों या कहें जीवन-प्रसंगों को एकत्र कर एक पुस्तक प्रकाशित की गई-कृतार्थ जीवन। स्व. श्रीकांत जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को दो शब्दों में व्यक्त करना हो तो यही उभरता है-कृतार्थ जीवन। इसीलिए श्रीकांत जी के निधन पर रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत को संघ के वरिष्ठ प्रचारक आबाजी थत्ते का जीवन संदेश स्मरण हुआ, 'कार्य-मग्नता जीवन हो, मृत्यु ही विश्रांति।'
श्रीकांत जी इसी जीवन संदेश पर चल रहे थे। कार्य में ऐसे मगन कि विश्रांति का जीवन भर अवसर ही नहीं मिला। किस परिवार में जन्में, कहां तक पढ़े, कैसे प्रचारक बने, असम की चुनौती में क्या भूमिका निभाई, और फिर तृतीय सरसंघचालक पूज्य बालासाहब देवरस के सहयोगी के रूप में क्या अनुभव रहे, यह सब तो पुस्तक में है ही। पर उनके द्वारा स्वयं स्वीकृत चुनौती का उन्होंने जिस प्रकार निर्वहन किया, वह बहुत प्रेरक है। वह चुनौती थी मृतप्राय: बहुभाषी समाचार समिति हिन्दुस्थान समाचार को नवजीवन प्रदान करने की। सन् 2001 में जब श्रीकांत जी ने हिन्दुस्थान समाचार के पुनरुज्जीवन का बीड़ा उठाया तो लगभग सबने कहा था-असम्भव। पर संकल्प मजबूत हो, दृष्टि स्पष्ट हो और दिशा सही हो तो मंजिल मिलती ही है, यह श्रीकांत जी ने एक बार पुन: सिद्ध कर दिखाया। श्रीकांत जी पत्रकार नहीं थे। पत्रकारिता उनका क्षेत्र भी नहीं था। लेकिन उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार के माध्यम से देशभर में पत्रकारों की एक बड़ी श्रृंखला खड़ी कर दी। आज हिन्दुस्थान समाचार के माध्यम से अनेक भारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय महत्व की खबरों का प्रसारण हो रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार को पुन: खड़ा करने की चुनौती को उन्होंने किस प्रकार सफल बनाया, उसका आधार क्या था, यह श्री चन्द्रमोहन को 8 मई, 2009 लिखे गए उनके एक पत्र से पता चलता है। इसमें श्रीकांत जी लिखते हैं-
'इस कार्य को चलाने वाले हम सभी कार्यकर्ताओं में (हम केवल वेतनभोगी कर्मचारी नहीं हैं) एक-दूसरे के प्रति प्रेम, आदर, आत्मीयता तथा विश्वास हो, इसकी बड़ी आवश्यकता है। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात तो यही होगी कि कार्य करते समय कार्य से संबंधित प्रत्येक छोटी-मोटी बातें एक-दूसरे को सूचित करनी चाहिए। उसके लिए आपस में नित्य संवाद होना चाहिए। किसी बात के विषय में मतभेद हो भी सकते हैं। मताभिन्नता होना चलेगा, लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए। ऐसी बैठकों में आपस में खुलकर चर्चा होनी चाहिए। इससे एक अच्छी केन्द्रीय टोली भी विकसित होगी और सामूहिक चिंतन, विचार-विमर्श तथा निर्णय करने की प्रक्रिया भी विकसित होती जाएगी। एक बार निर्णय होने के बाद वह हम सभी का मिलकर किया हुआ निर्णय है, ऐसा समझकर ही व्यवहार होना चाहिए। अन्यथा मेरा तो ऐसा मत नहीं जैसी बात होने से, अपने ही प्रमुख कार्यकर्ता के बारे में कर्मचारियों में तथा बाहर भी गलत संदेश जाएगा।' इस एक पत्र में ही श्रीकांत जी ने किसी भी संस्था अथवा समूह की सफलता का मार्ग बता दिया था।
रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री भैया जी जोशी ने उनकी इस सफलता पर लिखा- 'हिन्दुस्थान समाचार अनेक कारणों से बंद करना पड़ा था। श्रीकांत जी ने इस व्यवस्था को पुनर्जीवत करने का विचार करते समय अपनी कार्यक्षमता इस कार्य हेतु लगाने का निर्णय किया और देखते-देखते गत 10 वर्षों में हिन्दुस्थान समाचार एक बार पुन: समाचार संस्था के रूप में सक्रिय हुआ।'
डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री के साथ ही इस पुस्तक के संकलन व सम्पादन में प्रभावी भूमिका निभाने वाले, श्रीकांतजी के अत्यंत प्रिय व हिन्दुस्थान समाचार के सम्पादक व मुख्य कार्यकारी रहे श्रीराम जोशी ने इस विकास यात्रा का वर्णन करते हुए बताया-
'हिन्दुस्थान समाचार ने इन वर्षों में मा. श्रीकांत जी के मार्गदर्शन में कई प्रयोग किए। उनमें से एक प्रयोग था विद्यार्थी प्रशिक्षण का। दिल्ली, इलाहाबाद, कुरुक्षेत्र के विद्यार्थी हिन्दुस्थान समाचार ने प्रशिक्षण के लिए आने लगे। इसमें माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के विद्यमान कुलपति डा. बृजकिशोर कुठियाला एवं महात्मा गांधी काशी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डा. ओमप्रकाश सिंह ने मा. श्रीकांत जी का बड़ा साथ दिया। प्रशिक्षु विद्यार्थियों के निवास-भोजन की व्यवस्था के साथ-साथ उन्हें भत्ता (स्टाइपेन्ड) भी दिया जाता था और अंत में प्रशिक्षण पूर्ण करने पर प्रमाण पत्र। इसका लाभ यह रहा कि हिन्दुस्थान समाचार की बहुभाषी सेवा की रीढ़ हिन्दी होने के कारण गैरहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी भाषी पत्रकार मिलने की समस्या का अपने आप समाधान हो गया। चेन्नै, हैदराबाद, अमदाबाद, मुम्बई, कोलकाता, बेंगलुरू, ईटानगर आदि स्थानों पर यह प्रयोग हद से ज्यादा सफल हुआ। इतना ही नहीं, सफल प्रशिक्षण के बाद अन्य प्रसार माध्यमों में पहुंचे पत्रकारों को भी सुअवसर प्राप्त हुए।'
पुस्तक में श्रीकांत जी द्वारा पूज्य बालासाहब देवरस के बारे में लिखे गए कुछ ऐसे लेखों का संकलन भी है, जो इससे पूर्व कहीं प्रकाशित नहीं हुए। इसके साथ ही संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों सहित उनसे जुड़े सामान्य कार्यकर्ताओं के स्मृति-प्रसंगों का संकलन पढ़कर उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व सामने आ जाता है। कृतार्थ जीवन कैसा होता है और हम अपना जीवन कैसे कृतार्थ बना सकते हैं- यह समझना हो तो यह पुस्तक अवश्य पढ़नी पढ़िए। जितेन्द्र तिवारी
पुस्तक का नाम – कृतार्थ जीवन
(श्रीकांत शंकर जोशी)
लेखक – प्रो. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री श्रीराम जोशी
प्रकाशक – राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास 2502 ए, नलवा गली,
पहाड़गंज, नई दिल्ली
पृष्ठ – 216
मूल्य – 100 रुप
घमंडीलाल अग्रवाल
रिश्वत खेले खेल रात–दिन,
चली लूट की रेल रात–दिन।
सच का पौधा सूखा–सूखा,
बढ़े झूठ की बेल रात–दिन।
आम आदमी का रोजाना,
निकले तन से तेल रात–दिन।
हिंसा लो, मक्कारी ले लो,
लगी हुई है 'सेल' रात–दिन।
भ्रष्टाचार और काला धन,
कभी न होते फेल रात–दिन।
चोर–चोर मौसेरे भाई,
प्रतिघातों में मेल रात–दिन।
देशप्रेमियों को अक्सर ही
हो आजीवन जेल रात–दिन।
लोकतंत्र की बातें थोथी,
खुशी रही दु:ख झेल रात–दिन।
सिरमौर में श्रीकांत जोशी स्मृति व्याख्यानमाला
साहित्य और संस्कृति का गहरा सम्बंध है
गत दिनों सिरमौर (मध्य प्रदेश) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्व. श्रीकान्त जोशी स्मृति व्याख्यान माला सम्पन्न हुई। दो दिन तक चले इस समारोह में अनेक चिंतकों व पत्रकारों ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये। व्याख्यानमाला के पहले दिन समारोह में मुख्य अतिथि, पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलपति डा. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी ने 'साहित्य के सामाजिक सरोकार विषय' पर दिये गये सारगर्भित व्याख्यान में कहा कि साहित्य शब्दों से परिभाषित होता है, साहित्य और संस्कृत का गहरा सरोकार है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (महाकौशल प्रान्त) के सम्पर्क प्रमुख डा. जितेन्द्र जामदार ने कहा कि भारत में 40 करोड़ लोग युवा हैं जो अमरीका जैसे देश की सम्पूर्ण आबादी से डेढ़ गुना अधिक हैं, किन्तु वह दिग्भ्रमित हैं।
व्याख्यानमाला के दूसरे दिन अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन मंत्री श्री श्रीधर पराड़कर ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जब तक साहित्य राष्ट्र की चेतना से नही जुड़ता तब तक साहित्य अधूरा है। साहित्य का शास्वत स्वरूप ही उसे जीवित रखता है। इस अवसर पर श्रीकान्त जोशी स्मृति साहित्य पत्रकारिता सम्मान से श्रीधर पराडकर को सम्मानित किया गया। उनके साथ छ: अन्य साहित्यकारों एवं पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। सम्मान से पूर्व कार्यक्रम के आयोजक हिन्दुस्थान समाचार के ब्यूरो प्रमुख धर्मेन्द्र पाण्डेय ने विन्ध्य-महाकौशल में हिन्दुस्थान समाचार की विकास यात्रा के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
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