मनन चतुर्वेदीममता का आंचल
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मनन चतुर्वेदीममता का आंचल

by
Apr 6, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Apr 2013 17:07:56

जयपुर की मनन चतुर्वेदी असाधारण समर्पण वाली महिला हैं। 39 वर्षीया मनन आज ऐसे 92 बच्चों को संवार रही हैं, जिन्हें अपनों से ही तिरस्कार मिला है। फैशन डिजायनिंग को अपना कैरियर चुनने वाली मनन अब बच्चों के जीवन को संवारती हैं और बच्चों के लालन-पालन के लिये फिल्मों का निर्माण करती हैं, स्टेज शो आयोजित करती हैं, हस्तनिर्मित वस्तुओं का उत्पादन एवं विपणन करती हैं, एक मासिक पत्रिका 'बोगन वेलिया' का प्रकाशन व संपादन करती हैं और समय निकाल कर चित्र बनाती हैं। इन सब कार्यों से प्राप्त होने वाली आय से वे 'सुरमन'  संस्थान संचालित करती हैं। पिछले साल 29 दिसम्बर से लगातार 72 घंटे तक चित्र बनाकर दुनिया भर में सुर्खियों में आईं मनन चतुर्वेदी 'एंजिल ऑफ लव अभियान' भी चला रही हैं, जिसमें वे शहर-शहर जाकर 24 घंटे लगातार चित्र बनाकर समाज को इन बच्चों और परित्यक्त महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए जागरूक करती हैं। आज से 10 साल पहले अपने फुर्सत के क्षणों में सेवा बस्तियों में जाकर बच्चों के साथ समय बिताना उन्हें आत्मिक शांति देता था। ऐसी ही एक दोपहर में जयपुर स्टेशन के पास की सेवा बस्ती में कुछ लोगों ने एक बच्ची गौरी को मनन की गोद में डाल दिया, जो मौत से लड़ रही थी। चिकित्सकों की मेहनत, जीवन के प्रति ललक और मनन की प्रार्थना ने उस बच्ची के जीवन की रक्षा की। आज गौरी विद्यालय में पढ़ने जाती है। इस प्रकार एक के बाद एक करके मनन के परिवार में निराश्रित और परित्यक्त बच्चे आते गये और आज उनका परिवार बच्चों की किलकारियों से गूंज रहा है। लोगों की नजर से देखें तो वह अनाथ और परित्यक्त बच्चों के लिए अनाथ आश्रम की संचालिका हैं। लेकिन यदि आप इस घर में कदम रखें तो अहसास होगा कि यह अनाथ आश्रम नहीं अपितु पूरा परिवार है और ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि इन बच्चों में से मनन के तीन बच्चों को आप पहचान नहीं सकते। सब कुछ घुला-मिला, और चूंकि यह परिवार है। इसीलिए उन्होंने चार प्रण भी कर रखे हैं। पहला, सरकार से मदद नहीं लेनी और दूसरा 'पालना' में आए बच्चों को किसी और को गोद नहीं देना। तीसरा, बाहर से पका खाना नहीं खिलाना और दूसरे लोगों के उतारे कपड़े अपने बच्चों को नहीं पहनाना। सरकारी मदद न लेने के सवाल पर वह पूछती भी हैं कि क्या कोई अपना घर चलाने के लिए सरकारी मदद लेता है? क्या कोई मां अपने बच्चों को किसी को गोद देती है? तो फिर मैं अपने बच्चों को गोद क्यो दूं, उनके लिए सरकारी मदद क्यों लूं?

ऐसा नहीं है कि मनन इस पूरे यज्ञ को अकेले ही कर रही हैं। समाज के कई लोग उनका संबल बनकर उनके साथ खड़े हैं?

10 साल पहले मनन ने जयपुर के मानसरोवर में एक छोटे से फ्लैट में एक परित्यक्त महिला और उसके दो बच्चों के साथ पालना की शुरुआत की थी। जैसे-जैसे पालना के सदस्य बढ़ते गए यह आवास छोटा पड़ने लगा। फिर एक जगह से दूसरी जगह किराये के मकान बदलने का सिलसिला चलने लगा। आखिर में तो सबने उनको जगह देने से मना कर दिया। जहां भी वह जातीं, लोग कहते, आप काम तो बड़ा अच्छा कर रही हो, परंतु हमारे मौहल्ले में 'अनाथ आश्रम' के लिए जगह नहीं है। आखिरकार, मनन उन 17 बच्चों के साथ अपने एक हजार फुट के फ्लैट में रहने आ गईं। बाद में अपने कर्म कौशल और समाज के सहयोग से उन्होंने उसी परिसर में तीन और फ्लैट खरीदे। आज वह ऐसी 'मां' है जो इन बच्चों के लिए एक ऐसा गांव बनाना चाहती हैं जहां वे स्वाभिमान की जिंदगी जी सकें और वह जगह ऐसी हो जहां ना केवल ये बच्चे, अपितु वे महिलाएं जो परित्यक्त हैं या फिर वे वृद्ध, जिनके लिए अपना घर छोटा पड़ने लगा है, खुली हवा में सांस ले सकें। मनन बाल आश्रम के अलावा जीवन, संबल, फुलवारी व कोशिश नामक प्रकल्प भी संचालित कर रही हैं।

जीवन प्रकल्प में थैलिसीमिया से पीड़ित नवजात बच्चों को उच्चस्तरीय चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

संबल प्रकल्प में जीवन से निराश हो चुकी महिलाओं को जीवन के प्रति रुचि पैदा कर उन्हैं अपने पैरों पर खड़ा करना और उनके रोजगार की व्यवस्था करने का उद्देश्य है।

फुलवारी प्रकल्प के तहत शहर की विभिन्न वंचित बस्तियों में शिक्षा मंदिर की शुरुआत की गई है।

कोशिश प्रकल्प ऐसे सभी वृद्ध जनों को समर्पित है, जिनके अपनों ने उन्हें तिरस्कृत कर दिया। इन कार्यों के लिए मनन को कई पुरस्कार भी मिले हैं। o प्रस्तुति : मनोज कुमार गर्ग

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