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होम Archive

जाओ संजू जेल जाओ

by
Apr 27, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Apr 2013 15:56:03

आवरण कथा 'ये रिश्ता क्या कहलाता है?' संजय दत्त को लेकर न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू की अति सक्रियता पर सवाल खड़ी करती है। यह बात समझ में नहीं आती कि न्यायमूर्ति काटजू हर उस व्यक्ति का पक्ष क्यों ले रहे हैं, जो भारत को ही चुनौती देता है? संजय दत्त को माफी सिर्फ इसलिए नहीं मिलनी चाहिए कि वह एक बड़ा अभिनेता है? कानून की नजर में हर व्यक्ति समान है। इसलिए जिसको जो सजा मिलती है उसे वह भुगते।

–गणेश कुमार

कंकड़बाग, पटना (बिहार)

द लगता है कि न्यायमूर्ति काटजू अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठा रहे हैं। लोकतंत्र में हर किसी को बोलने और किसी मुद्दे पर अपनी राय रखने का अधिकार है। किन्तु जो बोलता है उसे यह तो ध्यान रखना ही पड़ेगा कि वह जो बोल रहा है या कर रहा है उसका समाज पर क्या असर पड़ेगा?

–बी.एल. सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट

नई दिल्ली-110023

द संजय दत्त को सजा सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि 'अपराधी को मालूम था कि जो हथियार उसके पास रखे गए हैं उनका संबंध उन लोगों से है जो मुम्बई बम काण्ड करने वाले हैं।' इसके बावजूद संजय दत्त ने पुलिस को कुछ नहीं बताया। अगर उसने पुलिस को बता दिया होता तो मुम्बई काण्ड होता ही नहीं। ऐसे संजय को माफी दिलाने की मुहिम चलाने वाले बताएं कि जो लोग मुम्बई में मारे गए थे उनका क्या दोष था? निर्दोष मारे जाएं और दोषी छूट जाएं यह कैसे हो सकता है?

–सत्यदेव गुप्त

उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड)

द इसमें कोई दो राय नहीं है कि संजय दत्त के संबंध भारत-विरोधी तत्वों से रहे हैं। फिर भी काटजू कहते हैं कि मानवता के आधार पर संजय को माफ कर दो। यही काटजू उन साध्वी प्रज्ञा को छोड़ने की मांग क्यों नहीं करते हैं, जिनके खिलाफ अभी तक कोई सबूत नहीं है। सरकारी प्रताड़ना की वजह से वह बीमार भी रहने लगी हैं। काटजू यह क्यों भूल रहे हैं कि संजय सस्ते में छूट रहा है।

–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर

1-10-81, रोड नं.-8 बी, द्वारकापुरम  दिलसुखनगर

हैदराबाद-60 (आं.प्र.)

द संजय दत्त का जुर्म अफजल के जुर्म से कहीं भी उन्नीस नहीं ठहरता। यह सिद्ध हो चुका है कि दुबई में उसने आतंकवादी सरगना दाऊद इब्राहिम से मुलाकात की थी। उसके बाद ही उसके घर कई एके-47 राइफल और विस्फोटक पहुंचाए गए, फिर मुम्बई में सीरियल बम विस्फोट हुए और सैकड़ों निर्दोष मारे गए। दाउद इब्राहिम द्वारा प्रायोजित और संचालित इस आतंकवादी कार्यवाही का संजय दत्त एक हिस्सा था। परन्तु पिता सुनील दत्त के राजनीतिक रसूख के कारण पुलिस ने भी नरमी बरती, टाडा कोर्ट ने भी सहानुभूति दिखाई और सरकार का तो कहना ही क्या? सर्वोच्च न्यायालय भी उसे छूट पर छूट दे रहा है।

–विपिन किशोर सिन्हा

वाराणसी (उ.प्र.)

द कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस ने अपना वोट बैंक बढ़ाने का ठेका न्यायमूर्ति काटजू को दिया है। इसलिए वे कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति को आगे बढ़ा रहे हैं। वे राष्ट्रवादी भाजपा और नरेन्द्र मोदी की आलोचना करते हैं। पर देशद्रोहियों के साथी रहे संजय दत्त की माफी की बात करते हैं। वे आतंकवादियों की सजा पर अंगुली उठाते हैं, किन्तु आतंकवाद के बहाने बिना किसी सबूत के जेल में बन्द हिन्दुओं के लिए एक शब्द नहीं बोलते हैं।

–हरिओम जोशी

चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)

द संजय दत्त ने अपनी सुरक्षा के लिए जो भी तरीका अपनाया वह किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता। यदि उन्हें किसी से अपनी जान का खतरा था तो पुलिस से सुरक्षा मांगते। पर उन्होंने ऐसा न करके आतंकवादियों से हथियार प्राप्त किए। स्पष्ट है कि उनके रिश्ते आतंकवादियों से रहे हैं। ऐसे व्यक्ति को किसी भी सूरत में माफी नहीं मिलनी चाहिए।

–उदय कमल मिश्र

गांधी विद्यालय के समीप

सीधी-486661 (म.प्र.)

द अपराध करने के बाद कोई भी अपराधी समाज सेवा का चोला ओढ़ ले या फिर राजनीतिक चोला पहन ले या पारिवारिक बन्धनों से बंध कर जिम्मेदारियां निभाने लगे तो भी वह अपराधी ही रहता है। उसे न्यायालय से रहम की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। संजय दत्त अंतरिम जमानत पर भले ही कई वर्षों से बाहर घूम रहे थे लेकिन वास्तव में वह सजायाफ्ता मुजरिम थे। एक ना एक दिन यह निर्णय आना ही था। ऐसे में हिन्दी फिल्म जगत ने उन पर 250 करोड़ रु. का दांव क्यों लगाया?

–निमित जायसवाल

ग-39, ई.डब्ल्यू.एस.

रामगंगा विहार फेस प्रथम, मुरादाबाद-244001 (उ.प्र.)

जैसी शिक्षा, वैसे विचार

सम्पादकीय 'पश्चिम का पाश, शिक्षा का सत्यानाश' और 'किस ओर जाती शिक्षा' शीर्षक से प्रकाशित समाचार बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। पश्चिमी शिक्षा के कारण आज हम अपनी संस्कृति से भटक गए हैं। हमारी पुरानी शिक्षा पद्धति में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि के संस्कार दिए जाते थे। आज बच्चों को शिक्षा के माध्यम से संस्कार नहीं दिए जा रहे हैं। दुष्परिणाम दिखने लगा है। जैसी शिक्षा होगी, वैसे विचार होंगे।

–लक्ष्मी चन्द

गांव–बांध, तहसील–कसौली

जिला–सोलन (हि.प्र.)

द आज समाज में शिक्षा के मायने बदल गए हैं। बच्चे को कुछ आए न आए पर अंग्रेजी आनी चाहिए, यह मानसिकता बनती जा रही है। कुछ लोग हिन्दी लिखने और बोलने वालों को तो पढ़ा-लिखा मानते ही नहीं हैं। यही कारण है कि आज के मां-बाप अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा रहे हैं। बच्चा मातृभाषा में जितना ज्ञान ग्रहण कर सकता है उतना किसी और भाषा में नहीं, फिर भी भेड़चाल जारी है।

–हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया

इन्दौर-452001 (म.प्र.)

विशुद्ध साम्प्रदायिकता

दिल्ली में रह रहे विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं से जुड़ी रपट 'आधार के बहाने राहत राशि पर रोक' विशुद्ध साम्प्रदायिकता का परिचय देती है। दिल्ली की कांग्रेस सरकार विस्थापित हिन्दुओं को परेशान कर रही है। जो लोग बेघर हैं, वे कैसे 'आधार कार्ड' बनवा सकते हैं। कश्मीरी हिन्दुओं का कहना ठीक है कि उनके गृह राज्य में अभी आधार पर रोक है तो फिर वे दिल्ली में आधार क्यों बनाएं?

–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह 'सोनगरा'

कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)

द विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी हिन्दू जन्म-मरण के दुश्चक्र में फंसे हैं। न उनकी वापसी का पुख्ता प्रबंध हो रहा है, न उनके विस्थापित जीवन की समस्याएं हल हो रही हैं। आधार की आड़ में उनकी राहत राशि रोकना उनके जख्मों को हरा करने के बराबर है।

–रामावतार

अरावली अपार्ट, कालकाजी, नई दिल्ली

मनगढ़ंत कहानी

पिछले दिनों साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बारे में पढ़ा कि वह बीमार हैं और मुम्बई उच्च न्यायालय को उन्होंने एक पत्र लिखा है, जिसमें उनकी पीड़ा व्यक्त हुई है। संप्रग सरकार हर मोर्चे पर असफल हो रही है। उधर से जनता का ध्यान हटाने के लिए उसने 'हिन्दू आतंकवाद' की मनगढ़न्त कहानी तैयार की है। इस कहानी को सच बनाने के लिए ही सरकार ने प्रज्ञा, पुरोहित जैसे लोगों को बना सबूत गिरफ्तार कर जेल में रखा है।

–विश्व प्रताप

रास मण्डल, मानिक चौक

जौनपुर-222001 (उ.प्र.)

दु:खद स्थिति

हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराने के लिए अपना सर्वस्व लुटा दिया, हंसी-हंसी फांसी का फंदा चूम लिया। किन्तु अब स्थिति बदल गई है। अब नेता जनता का ही सब कुछ छीन रहे हैं। सत्ता के लिए राष्ट्र की अखण्डता को भी चुनौती दे रहे हैं। कई तो राष्ट्रविरोधी कार्य कर रहे हैं। यह दु:खद स्थिति है।

–गजानन्द गोयल

गोयल ब्रदर्स, श्रीमाधोपुर

सीकर-332915 (राजस्थान)

गुजरात और गोवंश

बराबर ऐसे समाचार पढ़ने को मिलते हैं कि गुजरात में गोवंश में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जबकि शेष भारत में गायों की संख्या तेजी से घट रही है। चीन और यूरोपीय देशों में भी गायों की संख्या बढ़ रही है। गाय के दूध से बनी वस्तुएं भी उन देशों में पर्याप्त रूप से मिल रही हैं। जबकि भारत में लोगों को गाय का शुद्ध दूध भी नहीं मिल रहा है। गुजरात के लोग बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने गाय पर विशेष ध्यान दिया है। काश, पूरे भारत के लोग ऐसा करते तो कितना अच्छा होता।

–कृष्ण मोहन गोयल

113, बाजार कोट

अमरोहा-244221  (उ.प्र.)

कैसी सुवनाई, कैसी सजा?

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इटली  के दो हत्यारे नौसैनिकों के भारत आने पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। लेकिन क्या वे बता सकते हैं कि उन्हें किसलिए भारत लाया गया है? अब तो उच्चतम न्यायालय को सिर्फ सुनवाई करनी है। फैसला तो इटली की सरकार ने खुद ही कर दिया है और भारत सरकार ने उसे मान भी लिया है। मसलन इटैलियन नौसैनिक भारत में गिरफ्तार नहीं होंगे-ठाठ से अपने देश के दूतावास में शानदार भवन में रहेंगे, उन्हें फांसी की सजा नहीं दी जा सकती, उन्हें जो भी सजा होगी, उसे अपने देश इटली में काटेंगे। यह कैसी सुनवाई और कैसी सजा है, जिसे हत्या जैसे जघन्य अपराध के लिए भारत का उच्चतम न्यायालय नहीं, स्वयं अपराधियों के आका तय कर रहे हैं। ऐसा अपराध यदि किसी भारतीय के हाथ से इटली में हो गया होता तो क्या वह सरकार भारतीय नागरिक या भारतीय सरकार की ऐसी शर्तों को मानती? क्या भारत के अलावा आत्मसम्मान वाली और कोई सरकार इसे स्वीकार करती?

–अरुण मित्र

324, राम नगर, दिल्ली-51

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