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राम मन्दिर बनवाने वाली सरकार चाहिए

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Mar 9, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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राम मन्दिर बनवाने वाली सरकार चाहिए

दिंनाक: 09 Mar 2013 12:53:54

 

आवरण कथा 'श्रीराम जनमभूमि पर शीघ्र हो मन्दिर निर्माण' बताती है कि हिन्दू समाज अयोध्या में श्रीराम का मन्दिर बनाने के लिए बेचैन है। प्रयाग में आयोजित धर्म संसद में सन्तों ने बिल्कुल ठीक कहा है कि अब भगवान का कपड़े का घर सहन नहीं हो रहा है। उनका भव्य मन्दिर बने।

–गणेश कुमार

कंकड़बाग, पटना (बिहार)

n ʽþxnÚù समाज को अब उसके अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। अयोध्या में भगवान राम का मन्दिर बनाना हिन्दू समाज का अधिकार है। यदि वर्तमान केन्द्र सरकार मन्दिर निर्माण में हिन्दू समाज का सहयोग करे तो उसके 'युवराज' प्रधानमंत्री बन सकते हैं, अन्यथा कांग्रेसी मंशा शायद ही पूरी हो।

–राममोहन चंद्रवंशी

अभिलाषा निवास

बिट्ठल नगर, टिमरनी, ज्लिा–हरदा (म.प्र.)

n JÉÖnùÉ<Ç से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर उच्च न्यायालय ने कहा है कि जहां रामलला विराजमान हैं वही उनकी जन्मभूमि है। अब देश में एक ऐसी सरकार की आवश्यकता है जो श्रीराम मन्दिर निर्माण की सारी बाधाओं को दूर करे। पूरा हिन्दू समाज राम मन्दिर के लिए प्रयास करे तो एक दिन अयोध्या में भव्य मन्दिर जरूर बनेगा।

–उदय कमल मिश्र

गांधी विद्यालय के समीप

सीधी-486661 (म.प्र.)

n +ªÉÉävªÉÉ में मन्दिर तो है उसे केवल विस्तार देना है। न्यायालय ने भी उसे मन्दिर ही कहा है। केवल कुछ मुस्लिम-परस्त नेता और सेकुलर इस विवाद को बनाए रखना चाहते हैं। जिस दिन हिन्दू वोट बैंक बनेगा उस दिन मन्दिर भी अवश्य बनेगा। सन्त समाज गांव-गांव में बताए कि राम मन्दिर के विरोधी कौन लोग हैं।

–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर

द्वारकापुरम, दिलसुखनगर

हैदराबाद-60 (आं.प्र.)

यदुवंशी अखिलेश

के राज में गोहत्या

श्री अजय मित्तल की रपट 'गंगा में गोरक्त जेल में गोभक्त' दिल को झकझोर गई। बड़ा दु:ख होता है कि गोपालक भगवान श्रीकृष्ण के इस देश में खुलेआम गायों की हत्या हो रही है, हिन्दू समाज की भावनाएं आहत की जा रही हैं। जो लोग गोहत्या कर रहे हैं उन्हें यह समझने की जरूरत है कि गाय का अस्तित्व मानव जाति की भलाई के लिए जरूरी है। गाय बचेगी तो मानव भी बचेगा।

–अजीत शर्मा

राजा कोठी, मायलाबेरा, गुलाबबाड़ी

अजमेर-305001 (राजस्थान)

n EÖÆò¦É के अवसर पर गंगा में गोरक्त बहाना उसकी पावनता और सांस्कृतिक महत्व को खत्म करना है। कुछ लोग जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। गोहत्यारों को शह देने वाले नेताओं और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। उ.प्र. में अखिलेश यादव की सरकार है। इस देश में यदुवंशी गोपालक के रूप में विख्यात हैं। पर यदुवंशी अखिलेश गोहत्याओं को लेकर चुप हैं। इस कारण उनके राज में गोहत्या निर्बाध रूप से हो रही है।

–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह 'सोनगरा'

कांडरवासा

जिला–रतलाम-457222 (म.प्र.)

हिन्दुओं की उपेक्षा

ºÉ¨{ÉÉnùEòÒªÉ “ºÉÒ.¤ÉÒ.+É<Ç. के बहाने उजागर हुई हिन्दुत्व-विरोधी मानसिकता' में कांग्रेस की विद्वेषी भावनाओं को सामने लाया गया है। कांग्रेस या अन्य सेकुलर दल मुस्लिम वोट के लिए हिन्दुओं का अहित करते आए हैं। इन दलों ने हमेशा हिन्दुओं की उपेक्षा और मुसलमानों का साथ दिया है। इसके लिए सी.बी.आई. का दुरुपयोग भी किया जाता है।

–वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28-ए, शिवपुरी विस्तार

कृष्ण नगर, दिल्ली-51

एकजुटता की जरूरत

श्री नरेन्द्र सहगल का लेख 'हिन्दुत्व का सिंहनाद' अच्छा लगा। आज जो परिस्थितियां बन गई हैं उनमें राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट होने की जरूरत है। ऐसा तब होगा जब उन्हें अपने प्राचीन गौरवशाली इतिहास की जानकारी दी जाए और उनमें स्वदेशी की भावना भरी जाए। यह काम पाञ्चजन्य बहुत अच्छी तरह कर सकता है। हर अंक में 'स्वदेशी चिन्तन' पर लेख हों।

–प्रो. बी. आर. ठाकुर

सी-115, संगम नगर, इन्दौर (म.प्र.)

n ʽþxnÖùi´É देश की संस्कृति है। इसे धर्म, जाति और सम्प्रदाय में नहीं बांटा जा सकता। रहीम, रसखान, कबीर, जायसी से लेकर रफी, तलत, नौशाद तक की संस्कृति में हमने हर उस शख्स को इज्जत और प्यार दिया जिसने इस माटी के गीत गाए। हिन्दुत्व पर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाने वाले दल देश का गौरव और इतिहास नहीं जानते।

–मनोहर 'मंजुल'

पिपल्या–बुजुर्ग

प. निमाड़-451225 (म.प्र.)

उन्हें याद क्यों नहीं करते?

चर्चा सत्र में सुश्री लक्ष्मी कान्ता चावला का लेख 'हम्फ्रीगंज से याद आता है वीरों का वसंत' जापानियों की क्रूरता से परिचित कराता है। 30 जनवरी, 1944 (वसंत पंतमी के दिन) को जापानियों ने सैलूलर जेल से निकालकर 44 क्रांतिकारियों को मौत के घाट उतार दिया। बिल्कुल सही प्रश्न उठाया गया है कि स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन क्रांतिकारियों को याद क्यों नहीं किया जाता, उन्हें श्रद्धाञ्जलि क्यों नहीं दी जाती?

–हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया

इन्दौर-452001 (म.प्र.)

साधुवाद और धन्यवाद!

डा. वागीश दिनकर की कविता 'जग के सिरमौर बने स्वामी' में स्वामी विवेकानन्द के जीवन के विभिन्न आयाम काव्य के माध्यम से मुखरित हुए हैं। सुन्दर रचना के लिए कवि को साधुवाद और कविता को प्रकाशित कर पाठकों तक पहुंचाने के लिए पाञ्चजन्य परिवार को धन्यवाद!

–प्रेम बड़ाकोटी

1/17, माता मन्दिर कालोनी

अजबपुर, देहरादून (उत्तराखण्ड)

असली शत्रु

महिलाओं के नग्न चित्रों की प्रदर्शनी पर मातृशक्ति और दुर्गावाहिनी के विरोध प्रदर्शन का समाचार पढ़ा। वास्तव में कुछ लोग देश में कामुकता, अश्लीलता और नंगापन को बढ़ावा दे रहे हैं।

ईसाई मिशनरियों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों विदेशी गुप्तचर एजेंसिंयों और भ्रष्ट राजनेताओं के कालेधन पर पलने वाले ये लोग इस देश, धर्म व संस्कृति के असली शत्रु हैं।

–हरीश कुमार

'हिन्दू कार्यालय' 

सुखदेव मोटर्स के सामने

श्रीरामगंज मण्डी

जि.- कोटा-302001 (राज.)

स्वामी विवेकानन्द के विचार

स्वामी विवेकानन्द सार्द्ध शती के अवसर पर पाञ्चजन्य में बहुत अच्छे लेख प्रकाशित हो रहे हैं। पिछले दिनों प्रकाशित विशेषांक में तो स्वामी जी का हर पहलू सामने आया है। सार्द्ध शती के निमित्त आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को और प्रमुखता मिलनी चाहिए। स्वामी विवेकानन्द के विचारों को आज की पीढ़ी तक पहुंचाना जरूरी है।

–गोकुल चन्द गोयल

85, इन्द्रा नगर

सवाई माधोपुर (राज.)

 

कांग्रेसी दीमक

दीमक जैसे खा रही, कांग्रेस यह देश

पूरे भारतवर्ष में, फैला दो संदेश।

फैला दो संदेश, नहीं यह चलने वाला

घोर कमीशन खाकर, पीट दिया दीवाला।

कह 'प्रशांत' मोदी की सुन करके हुंकारें

हैं उत्साहित युवा देश के फिर से सारे।।

–प्रशांत

धर्मरक्षक महापुरुष, सबके स्मरणीय

पुरस्कृत पत्र

पिछले दिनों सन्त रविदास की जयन्ती थी। हालांकि सन्त की कोई जाति नहीं होती है। पर उनकी जयन्ती पर उन्हीं की जाति के लोगों ने कुछ कार्यक्रम आयोजित किए। इसी प्रकार वाल्मीकि जयन्ती, डा. अम्बेडकर जयन्ती, गुरु तेग बहादुर का बलिदान दिवस, गुरु पर्व आदि कुछ ऐसे भी कार्यक्रम हैं, जो प्राय: उन्हीं महापुरुषों को मानने वाले, जाति-समुदाय के लोगों द्वारा ही मनाए जाते हैं। आम हिन्दू समाज की भागीदारी इनमें कम दिखायी देती है। यह समस्त हिन्दू समाज की समरसता में एक बाधक तत्व है। महर्षि वाल्मीकि, सन्त शिरोमणि रविदास, डा. अम्बेडकर, गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविन्द सिंह आदि महापुरुष किसी एक जाति-समुदाय, मत-पंथ के लिए सीमित नहीं रहे। इन महापुरुषों ने समस्त हिन्दू समाज की भलाई के लिए पूरे जीवन भर कार्य किया।

रविदास जी को सिकन्दर लोधी ने लोभ, लालच और भय से इस्लाम स्वीकार कराने का प्रयास किया, परन्तु उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया। यही मार्ग उनके अनुयायियों ने भी अपनाया। इसी प्रकार महर्षि वाल्मिकी ने भी पुरुषोत्तम राम की शिक्षा, दीक्षा, जीवन व परिवार रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा रामायण की रचना करके भगवान राम को अमर कर दिया। डा. भीमराव अम्बेडकर ने स्वतंत्र भारत का संविधान ही नहीं लिखा, बल्कि हिन्दू समाज को बांटने के एक बड़े षड्यंत्र को असफल करके समाज को भी बचाया। जाति-पांति की विद्रूपताओं से आहत होकर उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम समय में अपना पंथ बदलने का प्रयास किया। तो उनके करोड़ों अनुयायियों की संख्या को देखते हुए ईसाई और मुसलमान नेताओं ने उनको अनेक लोभ-लालच देकर अपने-अपने मजहब में लाने का प्रयास किया। परन्तु डा. अम्बेडकर जानते थे कि इन विदेशी मजहबों में जाने का अर्थ राष्ट्रद्रोह है। अत: उन्होंने इन मजहबों को अस्वीकार कर दिया तथा 14 अक्तूबर 1956 को नागपुर में बौद्ध मत स्वीकार किया। यह उनका भारत और समस्त हिन्दू समाज पर बहुत बड़ा उपकार साबित हुआ। यदि डा. अम्बेडकर मुसलमान या ईसाई बन जाते, तो आज हमारे देश में हिन्दू समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा उनका अनुसरण कर हिन्दू विरोधी व राष्ट्रविरोधी बन जाता।

इसी प्रकार मध्यकाल में मुगल शासन के अत्याचारों को सहते हुए बलिदान और त्याग करने वाले सिख गुरुओं के कारण ही आज हिन्दू समाज वर्तमान स्वरूप में बचा हुआ है। एक तरफ मूर्तिपूजक हिन्दुओं पर मुगलकाल में हो रहे अच्याचारों से उन्हें बचाने के लिए उन्होंने निर्गुण, निराकार ईश्वर की अराधना का रास्ता दिखाया, वहीं दूसरी ओर गुरु तेगबहादुर व गुरु गोविन्द सिंह ने समस्त हिन्दू समाज की रक्षा के लिए अपने आप सहित अपने समस्त परिवार को बलिदान कर दिया। परन्तु आज इन सिख गुरुओं की जयन्ती व बलिदान केवल गुरुद्वारों व सिख संस्थाओं में ही क्यों मनाए जाते हैं? आम हिन्दू समाज इनसे अन्जान व उदासीन क्यों है?

उपरोक्त सभी महापुरुषों का स्मरण करना सभी हिन्दुओं का समान रूप से कर्तव्य है। जब हम सब हिन्दू होली, दीवाली, दशहरा आदि हजारों वर्ष पुराने त्योहार मिलकर मनाते हैं, तो हम अपने धर्मरक्षक महापुरुषों की जयन्तियां या उनका बलिदान दिवस एक साथ क्यों नहीं मनाते हैं?

–डा. सुशील गुप्ता

शालीमार गार्डन कालोनी

बेहट बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उ.प्र.)

फाल्गुन शुक्ल   6      रवि   17 मार्च, 2013

”     ”       7       सोम  18      ”   “

”     ”       7       मंगल  19    ”   “

(तिथि वृद्धि)

”     ”       8       बुध  20       ”   “

”     ”       9       गुरु  21       ”   “

”     ”       10      शुक्र  22       ”   ” 

”     ”       11      शनि 23       ”   “

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