|
आखिरकार इटली ने माना कि वह गलत था, जो उसने वोट डालने के बहाने रोम बुलाए अपने उन दो नाविकों को भारत को लौटाने से इनकार कर दिया था जिन पर भारतीय जलसीमा के भीतर केरल के दो मछुआरों की जान लेने का आरोप है। भारतीय तटरक्षकों ने साफ तौर पर बताया था कि यह घटना भारतीय जलसीमा के 200 नाटिकल मील के अंदर हुई थी। जबकि इटली इस बात पर अड़ा रहा था कि घटना अंतरराष्ट्रीय जलराशि में हुई थी, लिहाजा उन नाविकों पर मुकदमा भारत में नहीं चल सकता। लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कड़े रुख और इस मामले में भारत के मीडिया में लगातार छपी रपटों के चलते इटली को सही राह का भान होता दिखा। उसने 21 मार्च को पहले के रुख से पलटते हुए कहा कि 22 मार्च को वे दोनों दोषी नाविक मैसमिलेनो लात्तोर्रे और साल्वेत्रो गिरोन भारत भेजे जाएंगे। भारत सरकार ने इसे अपनी कूटनीतिक जीत बताया और कहा कि यहां का कानून अपना काम करेगा। हालांकि इटली के विदेश विभाग ने यह कहकर गुत्थी को थोड़ा उलझाने की कोशिश की कि उन्हें सुनिश्चित किया गया है कि दोनों नाविकों को सजाए मौत नहीं दी जाएगी। इटली की मानें तो, इसी के बाद वह उन दोनों को भेजने को राजी हुआ था।
इस पूरे प्रकरण में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का रुख बड़ा साफ और सख्त रहा जिसने इटली के राजदूत डेनिएली मैन्सिनी के भारत छोड़कर जाने पर रोक लगा दी थी। यहां बता दें कि इटली सहित यूरोपीय संघ ने भी डेनिएली को भारत में ही रोकने के आदेश पर कड़ा एतराज जताया था। इटली ने बयान जारी करके कहा था कि भारत की अदालत का राजदूत को रोकने का फैसला विएना कन्वेंशन का स्पष्ट उल्लंघन है। इस पर भारत सरकार ने साफ साफ कह दिया कि अदालत का फैसला विएना कन्वेंशन की शर्तों के खिलाफ नहीं जाता।
टिप्पणियाँ