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कड़े कानून की जरूरत 3 मार्च,2013

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Mar 23, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Mar 2013 13:49:15

आवरण कथा में श्री नागराज राव की रपट 'होते रहे धमाके, शिंदे सोते रहे' महसूस कराती है कि संप्रग सरकार आतंकवाद के प्रति कभी गंभीर नहीं रही। दु:खद तो यह है कि यह सरकार आतंकवाद को भी वोट बैंक के चश्मे से देखती है। यही वजह है कि आतंकवाद पूरे देश में फैलता जा रहा है। अच्छे पढ़े-लिखे युवा भी आतंकवाद की राह क्यों पकड़ रहे हैं, यह जानना बहुत जरूरी है।

–गणेश कुमार

कंकड़बाग, पटना (बिहार)

n ºÉ®úEòÉ®ú के अन्दर आतंकवाद को खत्म करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। इसी सरकार ने पोटा कानून को साम्प्रदायिक बताकर उसे खत्म कर दिया है। आतंकवाद से लड़ने के लिए इस सरकार ने अभी तक एक सख्त कानून की भी आवश्यकता महसूस नहीं की है। बिना सख्त कानून के आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता है।

–राममोहन चंद्रवंशी

अभिलाषा निवास, विट्ठल नगर

टिमरनी, जिला–हरदा (म.प्र.)

n कट्टरवादी पूरे देश में अपनी जड़ें जमा रहे हैं। एक वर्ग विशेष के लोग जहां भी बहुसंख्यक हैं वहां आतंकवादियों को शरण मिलती है। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य इसके उदाहरण हैं। किन्तु वोट बैंक के सौदागरों और कथित सेकुलर नेताओं को आतंकवादियों की करतूतें दिखती ही नहीं हैं। ये लोग कट्टरवादियों को बढ़ावा देते रहे तो एक दिन देश बिखर जाएगा।

–वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28-ए, शिवपुरी विस्तार

कृष्ण नगर, दिल्ली-110051

n हैदराबाद में अब तक कई बम विस्फोट हुए हैं। किन्तु इनमें से एक की भी जांच पूरी नहीं हुई है। या यह भी कह सकते हैं कि जानबूझकर दोषियों को बचाया जा रहा है। आखिर कांग्रेस शासित राज्यों में ही बम विस्फोट ज्यादा क्यों होते हैं? यह भी जांच का विषय है।

–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर

1-10-81, रोड नं. 8 बी. दिलसुखनगर, हैदराबाद-60 (आं.प्र.)

n हैदराबाद में जिस जगह बम विस्फोट हुए थे वह 'बस स्टैण्ड' है। वहां हजारों की भीड़ रहती है। इसलिए वहां सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। पर वे सभी खराब पाए गए हैं। इसका मतलब यह है कि आतंकवादियों ने साजिश के तहत उन कैमरों को खराब कर दिया होगा। यह भी हो सकता है कि वे कैमरे पहले से खराब होंगे। कैमरे लगे हैं तो वे ठीक से काम करें, इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

–वीरेन्द्र सिंह परिहार

अर्जुन नगर, सीधी (म.प्र.)

सेकुलर जुबान बन्द

पश्चिम बंगाल में हिन्दू निशाने पर आ चुके हैं। मजहबी उन्मादी आए दिन हिन्दुओं पर हमले करते हैं, उनके घरों में आग लगा देते हैं। किन्तु वहां की सरकार उन्मादियों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचती है। कोई सेकुलर भी हिन्दुओं के पक्ष में एक शब्द नहीं बोलता है। सेकुलर सरकारें हिन्दुओं के साथ भेदभाव करने लगी हैं।

–विकास कुमार

शिवाजी नगर, वडा

जिला–थाणे (महाराष्ट्र)

n 24 परगना जिले के जामतल्ला में हिन्दुओं के साथ बहुत बुरा हुआ। ऐसी घटना मुस्लिमों के साथ होती तो क्या सेकुलर चुप रहते? बिल्कुल नहीं। वे कोलकाता से दिल्ली तक चिल्लाते और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को दोषी ठहराते। जामतल्ला घटना की जांच के लिए ममता बनर्जी ने एक ऐसे प्रतिनिधिमण्डल को भेजा, जिसमें सारे सदस्य मुस्लिम थे। यह हिन्दुओं के साथ भद्दा मजाक ही तो है।

–मनोहर  'मंजुल'

पिपल्या–बुजुर्ग

प. निमाड़-451225(म.प्र.)

n अब वक्त आ गया है कि हिन्दू समाज जातिगत भावना से ऊपर उठकर संगठित हो तथा जो भी अत्याचार करे उसे मुंहतोड़ जवाब दे। सरकारों के भरोसे रहना अब ठीक नहीं है। कांग्रेसनीत शासन में हिन्दुओं का जितना दमन हो रहा है शायद इतना तो अंग्रेजी शासन में भी नहीं हुआ। हिन्दू समाज संगठित होगा तो नेताओं को भी सोचना होगा। हिन्दू बिखराव का ही तो फायदा उठाकर राजनीतिक दल मुस्लिमों को रिझाने में लगे हैं।

–दिनेश गुप्ता

कृष्ण गंज, पिलखुवा (उत्तर प्रदेश)

हिन्दू पंथनिरपेक्ष ही होता है

हिन्दू स्वभाव से ही पंथनिरपेक्ष होता है। वह किसी के साथ मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। यदि हिन्दू पंथनिरपेक्ष न होता तो खंडित भारत पंथनिरपेक्ष राज्य घोषित नहीं किया जाता। सेकुलरों को यह जानना चाहिए कि आज भारत यदि पंथनिरपेक्ष है तो उसका केवल और केवल यही एक कारण है कि यहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं। अन्यथा भारत का ही हिस्सा रहे आज के पाकिस्तान और बंगलादेश सेकुलर क्यों नहीं रहे? क्योंकि वहां अभागे हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए। भारत के जिन-जिन भागों में हिन्दू अल्पसंख्यक हुए वहां भारत-विरोधी गतिविधियां बढ़ी हैं। कश्मीर एवं पूर्वोत्तर राज्यों की समस्याएं इसके उदाहरण हैं। पर दुर्भाग्य से आज हिन्दुओं को ही साम्प्रदायिक कहा जा रहा है।

–शिवम कुमार

दरभंगा (बिहार)

मनमोहन सिंह जवाब दें

भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्यों के मंत्रालय ने 'पोषण' नामक एक पुस्तक छपवाई और बांटी है, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को यह सलाह दी गई है कि गोमांस खाइए, इससे आक्सीजन और खून बढ़ेगा। यह लोहे का अच्छा स्रोत है और इससे कुपोषण की समस्या का हल होगा। भारत सरकार ने बड़ी निर्लज्ज्ता से हिन्दू भावनाओं और हिन्दुस्थान की आत्मा का अपमान किया है। अब यह कहा जा रहा है कि पुस्तक वापस ले ली गई, पर प्रश्न यह है कि जो पुस्तकें बांट दी गईं, लोग घरों में ले गए उन सबको कैसे वापस लिया जाएगा। मनमोहन सिंह बताएं कि जिन अधिकारियों और नेताओं ने यह बुरा कार्य किया उसके लिए उन्हें क्या दंड दिया जाएगा?

–लक्ष्मीकान्ता चावला

अमृतसर (पंजाब)

n ऐसा लगता है कि भारत में एक 'इस्लामी सरकार' है। कई राज्यों में गोवध पर प्रतिबंध है। इसके बावजूद भारत सरकार एक वर्ग विशेष के लोगों को गोमांस खाने के लिए प्रेरित कर रही है। ऐसा तो कोई इस्लामी सरकार ही कर सकती है। क्या इस सरकार को यह पता नहीं है कि देश में 150 से अधिक गोशालाएं मुस्लिमों द्वारा चलाई जा रही हैं?

–सूर्यप्रताप सिंह 'सोनगरा'

कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)

'गुम होते बच्चे और उनींदी सरकार'

लापता हो रहे बच्चों के संबंध में सरकार एवं नौकरशाही की संवेदनहीनता और लापरवाही को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने कठोर टिप्पणी की है कि सरकार को गुमशुदा बच्चों की चिन्ता नहीं है। जनवरी 2008 से जनवरी 2010 के बीच लापता 1.17 लाख बच्चों में से एक तिहाई अभी भी गायब हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि नौकरशाही को नींद से जगाने के लिए शीर्ष अदालत को कहना पड़ा है कि हम गैरजमानती वारण्ट जारी कर सकते हैं। क्या यह हमारे तंत्र की असंवेदनशीलता की हद नहीं है?

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में हर आठ मिनट में एक बच्चा गायब हो रहा है। सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2011 में 60,000 बच्चे लापता हुए जिनमें से 22 हजार बच्चों का अभी भी कोई पता नहीं है। कई संगठनों की पहल पर कराये गए सर्वेक्षणें से पता चलता है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं। इन बच्चों को बड़े पैमाने पर संगठित गिरोह द्वारा वेश्यावृत्ति, भीख मंगवाने और बाल मजदूरी के लिए मजबूर किया जाता है। बच्चों के लापता होने में महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर आता है। द्वितीय स्थान पर पश्चिम बंगाल और तीसरा स्थान दिल्ली का है। पिछले दिनों केन्द्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है। इसमें बच्चों की तस्करी के विरुद्ध कड़े कानूनी प्रावधान किए गए हैं। आमतौर पर देखा गया है कि गरीबी से जूझ रहे मां-बाप को लालच देकर बच्चों को खरीद लिया जाता है। पुलिस उसे न तस्करी मानती थी और न खरीदा हुआ। नया अध्यादेश पुलिस और श्रम विभाग को चेतावनी देने वाला है। अध्यादेश में जोड़ी धारा 370 में कहा गया है कि तस्करी के मामले में बच्चे के अभिभावकों की सहमति का कानूनी तौर पर कोई अर्थ नहीं है। तस्करी किए बच्चों को काम पर लगाने से 5 से 7 वर्ष की सजा हो सकती है। श्रम कानून के इतर भारतीय दंड संहिता की धारा 370 ए में एफआईआर दर्ज होगी। बच्चे की आयु 18 वर्ष तय की गई है। अध्यादेश में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 में भी कुछ नए पहलू जोड़े गए हैं। बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों के लिए 3 से 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है। पुलिस और अदालतों को स्पष्ट कहा गया है कि बच्चे का बयान उसके घर या उसके द्वारा तय की गई जगह पर और पुलिस वर्दी में नहीं, बल्कि सादे कपड़ों में लिया जाए। बच्चों को किसी भी स्थिति में पुलिस स्टेशन में नहीं रखा जायेगा। अध्यादेश की धारा 376 (2) में कहा गया है कि नियंत्रण रखने जैसी जगहों पर बच्चों से यौन अपराध की सजा कम से कम 10 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारागार हो सकती है। यदि बच्चे की मौत हो जाती है तो कम से कम 20 वर्ष और अधिकतम उम्र कैद की सजा होगी। दरअसल, बाल अधिकारों की लड़ाई के लिए एक कठोर कानून हाथ आया है।

–राजी सिंह

बी-152, सेक्टर-44

नोएडा-201301 (उ.प्र.)

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