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पड़ोसी देशों में घटते हिन्दू, बढ़ता दर्द

by
Mar 23, 2013, 12:00 am IST
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दिंनाक: 23 Mar 2013 12:55:19

 

गत 15, 16 एवं 17 मार्च को जयपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक आयोजित हुई। इसका समाचार गतांक में प्रकाशित हो चुका है। प्रतिनिधि सभा में पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं की स्थिति पर केन्द्रित एक प्रस्ताव पारित हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन दोनों देशों में हिन्दुओं की स्थिति पर खासा चिन्तित है। इसलिए प्रतिनिधि सभा में पाकिस्तानी एवं बंगलादेशी हिन्दुओं की स्थिति पर गहन विचार–मंथन हुआ और उनके प्रति भारत सरकार और हिन्दू समाज का ध्यान आकृष्ट करने के लिए प्रस्ताव पारित किया गया। उसी प्रस्ताव के मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं।

l अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा इस बात पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करती है कि पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अन्तहीन अत्याचारों के परिणामस्वरूप वे लगातार बड़ी संख्या में शरणार्थी बनकर भारत आ रहे हैं। यह बहुत ही लज्जा एवं दु:ख का विषय है कि इन असहाय हिन्दुओं को अपने-अपने मूल स्थान और भारत दोनों में ही अत्यंत दयनीय जीवन बिताने को विवश होना पड़ रहा है।

l अ. भा. प्र. सभा बंगलादेश के बौद्धों सहित समस्त हिन्दुओं एवं उनके पूजास्थलों पर वहां की हिन्दू विरोधी तथा भारत विरोधी कुख्यात जमाते इस्लामी सहित विभिन्न कट्टरवादी संगठनों द्वारा हाल ही में किये गए हमलों की तीव्र निंदा करती है। असहाय होकर हजारों लोग अपनी जान और इज्जत बचाने के लिए पलायन कर भारत आने के लिए बाध्य हो रहे हैं। प. बंगाल और असम में ऐसे हजारों बंगलादेशी हिन्दू तथा चकमा कई दशकों से शरणार्थी बनकर रह रहे हैं और जब भी बंगलादेश में हिंसाचार होता है तो इनमें और नए लोग आकर जुड़ते रहे हैं।

l अ. भा. प्र. सभा पाकिस्तान के हिन्दुओं की दुर्दशा पर भी राष्ट्र का ध्यान आकर्षित करना चाहती है। पाकिस्तान के हिन्दू सुरक्षा, सम्मान और मानवाधिकारों से वंचित निम्न स्तर का जीवन बिता रहे हैं। सिखों सहित समस्त हिन्दुओं पर नित्य हमले एक आम बात है। बलपूर्वक मतान्तरण, अपहरण, बलात्कार, जबरन विवाह, हत्या और धर्मस्थलों को विनष्ट करना वहां के हिन्दुओं के प्रतिदिन के उत्पीड़ित जीवन का भाग हो गये हैं। पाकिस्तान की कोई भी संवैधानिक संस्था उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आती है। परिणामस्वरूप पाकिस्तान के हिन्दू भी पलायन कर भारत में शरण मांगने को विवश हो रहे हैं।

l अ. भा. प्र. सभा भारत के राजनीतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक नेतृत्व तथा केन्द्रीय सरकार को यह स्मरण दिलाना चाहती है कि ये असहाय हिन्दू अपने स्वयं के किसी कृत्य के कारण इस इस्लामी उत्पीड़न का शिकार नहीं हुए हैं। 1947 में हुए मातृभूमि के दु:खद और विवेकहीन विभाजन के परिणामस्वरूप ही वे इस स्थिति में आये हैं।

l अ. भा. प्र. सभा भारत सरकार को आवाहन करती है कि पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दुओं की स्थिति और वहां से आये हुए शरणार्थियों के पूरे विषय पर पुनर्विचार करे। सरकार यह कह कर बच नहीं सकती कि यह उन देशों का आन्तरिक विषय है। 1950 के नेहरू-लियाकत समझौते में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दोनों देशों में अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा और नागरिकता के अधिकार प्रदान किये जायेंगे। भारत में हर संवैधानिक प्रावधान का उपयोग तथाकथित अल्पसंख्यकों को न केवल सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया गया अपितु उनको तुष्टीकरण की सीमा तक जाने वाले विशेष प्रावधान भी दिए गए। वे आज भारत में जनसांख्यिकी, आर्थिक, शैक्षिक, और सामाजिक सभी दृष्टि से सुस्थापित हैं।

l इसके विपरीत, पाकिस्तान और बंगलादेश के हिन्दू लगातार उत्पीड़न के परिणामस्वरूप घटती जनसंख्या, असीम गरीबी, मानवाधिकारों के हनन और विस्थापन की समस्याओं से ग्रस्त हैं। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में विभाजन के समय हिन्दुओं की जनसंख्या क्रमश: 28 प्रतिशत और 11 प्रतिशत थी तथा खंडित भारत में 8 प्रतिशत मुस्लिम थे। आज जब भारत की मुस्लिम आबादी 14 प्रतिशत तक बढ़ गयी है, वहीं बंगलादेश में हिन्दू घटकर 10 प्रतिशत से कम रह गए हैं और पाकिस्तान में वे 2 प्रतिशत से भी कम हैं।

l अ. भा. प्र. सभा का यह सुनिश्चित मत है कि नेहरू-लियाकत समझौते के उल्लंघन के लिए पाकिस्तान और बंगलादेश की सरकारों को चुनौती देना भारत सरकार का दायित्व है। लाखों हिन्दुओं के विलुप्त होने को केवल उन देशों की संप्रभुता का विषय मानकर उपेक्षित नहीं किया जा सकता। इन दोनों देशों को, भारत में लगातार आ रहे हिन्दू शरणार्थियों के बारे में कटघरे में खड़ा करना चाहिए। भारत के तथाकथित अल्पसंख्यक समुदाय से एक भी व्यक्ति इन देशों में शरणार्थी बन कर नहीं गया है जबकि लाखों लोग वहां से यहां आए हैं और आ रहे हैं।

l. अ.भा. प्र. सभा भारत सरकार से यह अनुरोध करती है कि इन दोनों देशों में रहने वाले हिन्दुओं के प्रश्न पर नए दृष्टिकोण से देखे, क्योंकि उनकी स्थिति अन्य देशों में रहने वाले हिन्दुओं से पूर्णतया अलग है।

l अ. भा. प्र. सभा भारत सरकार से आग्रह करती है कि बंगलादेश और पाकिस्तान की सरकारों पर वहां के हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दबाव बनाए।

l राष्ट्रीय शरणार्थी एवं पुनर्वास नीति बनाकर इन दोनों देशों से आने वाले हिन्दुओं के सम्मानजनक जीवन-यापन की व्यवस्था भारत में तब तक करे जब तक कि उनकी सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी की स्थिति नहीं बनती।

l बंगलादेश और पाकिस्तान से विस्थापित होने वाले हिन्दुओं के लिए दोनों देशों से उचित क्षतिपूर्ति की मांग करे।

l संयुक्त राष्ट्र संघ के शरणार्थी तथा मानवाधिकार से सम्बंधित संस्थाओं से यह मांग करे कि हिन्दुओं व अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा व सम्मान की रक्षा के लिए वे अपनी भूमिका का निर्वाह करें।  

l अ.भा. प्र. सभा यह कहने को बाध्य है कि हमारी सरकार का इन लोगों के प्रति उदासीन रवैया केवल इसलिए है क्योंकि वे हिन्दू हैं। सभी देशवासियों को सरकार के इस संवेदनहीन और गैरजिम्मेदार व्यवहार के विरुद्ध खुलकर आगे आना चाहिए। पाकिस्तान और बंगलादेश के वहां रहने वाले तथा शरणार्थी बनकर भारत में आए हुए हिन्दुओं की सुरक्षा एवं जीवन-यापन के अधिकार की रक्षा के लिए समूचे देश को उनके साथ खड़े रहने की आवश्यकता है।

एक सच यह भी

भारत

l मुस्लिम बड़े संवैधानिक पदों पर बैठ चुके हैं और अभी भी हैं।

l सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों को आरक्षण दिया जा रहा है।

l मुस्लिम व्यापारियों को 3 प्रतिशत ब्याज पर बैंक ऋण देता है।

l करोड़ों रुपए खर्च करके कब्रगाहों की चारदीवारी।

l सरकारी जमीन पर सरकारी पैसे से मस्जिद का निर्माण।

l हज जाने वाले मुस्लिमों को सरकारी मदद

पाकिस्तान

l किसी हिन्दू नेता को पनपने ही नहीं दिया जाता है।

l किसी हिन्दू को आसानी से चपरासी भी नहीं बनाया जाता।

l हिन्दू व्यापारियों का अपहरण, वसूली और फिर हत्या।

l मृत हिन्दुओं का अन्तिम संस्कार भी ठीक से नहीं हो पाता है।

l अदालती रोक के बावजूद मन्दिर ढहाए जाते हैं।

l हिन्दू तीर्थयात्रियों को भारत आने के लिए वीजा लेने में भी कठिनाई।

बंगलादेश

l कुछ हिन्दू राजनीति में हैं पर उन्हें कोई छोटा-सा पद दिया जाता है।

l सरकारी नौकरियों में गिनने लायक भी हिन्दू नहीं हैं।

l आएदिन हिन्दुओं के व्यापारिक प्रतिष्ठान आग के हवाले।

l श्मशान भूमि पर दबंग किस्म के लोग कब्जा कर रहे हैं।

l छोटी-छोटी बातों पर मन्दिरों पर हमले और उन पर कब्जा।

l धार्मिक आयोजनों के लिए हिन्दुओं को कर चुकाना पड़ता है।

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