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शपथपत्र तुरन्त वापस ले सरकार
–अशोक सिंहल
संरक्षक, विश्व हिन्दू परिषद्
विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक श्री अशोक सिंहल ने केन्द्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह रामसेतु के सन्दर्भ में 22 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल वह शपथपत्र वापस ले जिसमें उसने डा. आर.के. पचौरी विशेषज्ञ समिति के सुझावों को नकारा है और सेतु समुद्रम परियोजना को चालू रखने की बात कही है। 27 फरवरी को नई दिल्ली में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार भगवान श्रीराम के एकमात्र ऐतिहासिक एवं धार्मिक अवशेष को नष्ट करने पर आमादा है। श्री सिंहल ने कहा कि आर.के. पचौरी समिति ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना न तो आर्थिक दृष्टि से ठीक है और न ही पर्यावरण की दृष्टि से। इसके बावजूद यह सरकार कहती है कि सेतु समुद्रम परियोजना जरूरी है। यह परियोजना हिन्दू समाज को अपमानित करने के लिए दोबारा लाई जा रही है। हम किसी भी हालत में हिन्दू समाज और भगवान राम का अपमान सहन नहीं करेंगे। श्री सिंहल ने कहा कि सरकार दलील दे रही है कि इस परियोजना पर अब तक 829 करोड़ रु. खर्च हो चुके हैं इसलिए इसे रोकना संभव नहीं है। श्री सिंहल ने कहा कि सेतु समुद्रम पर जो पैसा खर्च हुआ है उसकी वसूली सोनिया निर्देशित केन्द्र सरकार और तमिलनाडु की तत्कालीन करुणानिधि सरकार से की जानी चाहिए, क्योंकि इन्हीं दोनों सरकारों ने बगैर सोचे-समझे सेतु समुद्रम परियोजना की शुरुआत की थी। श्री सिंहल ने कहा कि रामसेतु देश के स्वाभिमान के साथ जुड़ा हुआ है। यदि इसके साथ छेड़छाड़ हुई तो पूरे देश में प्रचण्ड आन्दोलन होगा। हम गांव-गांव तक रामसेतु के मुद्दे को ले जाएंगे। हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक कि सरकार अपना शपथपत्र वापस नहीं ले लेती। हमारा स्पष्ट कहना है कि रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए जिससे भविष्य में भी कोई रामसेतु पर कुदृष्टि न डाल सके। प्रतिनिधि
भारत सरकार का कहना है
थ् रामसेतु हिन्दू धर्म का कोई आवश्यक हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना पर काम करने से हिन्दुओं की आस्था आहत नहीं होती है।
थ् सेतु समुद्रम परियोजना के पूर्ण होने से भारत के दक्षिणी हिस्से के इर्द-गिर्द समुद्र में जहाजों की आवाजाही सुगम हो जाएगी।
थ् यह परियोजना पूरी होने से विकास की गति बढ़ेगी इसलिए इसे रोकना देशहित में नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है
थ् रामायण के अनुसार रामसेतु का निर्माण भगवान राम और उनकी सेना ने किया था।
थ् लोक मान्यताओं और पुराविदों के शोध से पता चलता है कि रामसेतु लगभग 17 लाख वर्ष पुराना है।
थ् ब्रिटिश विद्वान सीडी मैकलिन द्वारा 1903 में लिखित एक पुस्तक ʅमैन्युअल आफ द एडमिनिस्ट्रेशन आफ द मद्रास प्रेसीडेंसीʆ (खण्ड 3) के अनुसार 1480 तक रामसेतु से श्रीलंका तक पैदल जाने के प्रमाण मिले हैं।
थ् रामसेतु क्षेत्र का समुद्र प्राकृतिक सम्पदा का अथाह भण्डार होने के कारण लाखों मछुआरों की रोजी और समुद्री जल-जीवों की जैविक विविधता से भी जुड़ा है।
थ् यह क्षेत्र थोरियम के बड़े भण्डार के रूप में भी जाना जाता है। विश्व का 30 प्रतिशत थोरियम भारत में ही मिलता है, जो यूरेनियम बनाने के काम आता है।
थ् इस समुद्री क्षेत्र में मछुआरों की तादाद करीब 6.5 करोड़ है।
थ् यदि रामसेतु को तोड़ा जाता है तो मछुआरे बेरोजगार हो जाएंगे, थोरियम का एक बड़ा भण्डार नष्ट हो जाएगा और सैकड़ों समुद्री जीव-जन्तु खत्म हो जाएंगे।
जीवों की प्रयोगशाला
थ् समुद्र के इस क्षेत्र में लगभग 3700 प्रकार के जीव व वनस्पतियों की जीवंत हलचल है, जिनमें कछुओं की 17 प्रजातियां और मूंगे की 117 किस्में हैं।
थ् इस क्षेत्र में पाया जाने वाला दुर्लभ वृक्ष मैंग्रोव कार्बन डाइआक्साइड का शोषण कर बढ़ते तापमान को कम करता है।
थ् इसकी जैविक और पारिस्थितिकी विलक्षणता के चलते ही इसे 'जैव मण्डल आरक्षित क्षेत्र' संयुक्त राष्ट्र ने घोषित किया हुआ है।
थ् यहां 750 प्रकार की मछलियां पायी जाती हैं।
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