आम बजट में आम आदमी कहां?
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डा. अश्विनी महाजन
2012-13 में शून्य रही औद्योगिक विकास दर
महंगाई ने तोड़े सारे रिकार्ड
12 साल में सबसे कम विकास दर
राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6 प्रतिशत
विदेशी भुगतान कोष का घाटा हद से बाहर
बजट 2013-14 संसद में पेश हो चुका है। गौरतलब है कि यह यूपीए की दूसरी पारी का आखिरी बजट है, क्योंकि 2014 में सरकार 'वोट ऑन एकाउण्ट' ही प्रस्तुत कर पायेगी। संयोग से यूपीए की पहली पारी के अंतिम बजट को भी 2008 में वर्तमान वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने ही पेश किया था। पी.चिदंबरम वित्तीय आंकड़ों को लोकलुभावन रूप में प्रस्तुत करने के लिए पहले से ही प्रसिद्ध हैं।
यह बात अलग है कि वित्तमंत्री संसाधनों की दृष्टि से इस बार उतने भाग्यशाली नहीं हैं जितना वे 2008 में थे। वर्ष 2008 में बजट पेश करते हुए वर्ष 2007-08 का राजकोषीय घाटा जीडीपी का मात्र 3.1 प्रतिशत ही था। महंगाई तो थी, लेकिन इतनी कमरतोड़ नहीं थी। तब पी. चिदंबरम ने बजट पेश करते हुए कहा था कि वे राजकोषीय घाटे को 2.5 प्रतिशत तक ले आयेंगे। लेकिन अमरीका और यूरोप में आर्थिक संकटों के चलते भारी बचाव पैकेजों के कारण 2008-09 में राजकोष की स्थिति काफी डगमगा गई। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों और लोकलुभावन किसान ऋण माफी से अर्थव्यवस्था भारी संकट में आ गई है। राजकोषीय घाटा 6.0 प्रतिशत पहुंच गया। उसके बाद आने वाले बजटों में कोई वित्तमंत्री लोकलुभावन नीतियों के रास्ते पर नहीं चल पाया।
कष्टदायक रहा 2012-13
वर्ष 2012-13 में शून्य पर टिकती औद्योगिक विकास दर, कहर ढाती महंगाई, पिछले 12 साल में सबसे कम विकास दर, जीडीपी के 6.0 प्रतिशत तक पहुंचता राजकोषीय घाटा और अब तक सबसे बड़ा चालू विदेशी भुगतान शेष का घाटा, अर्थशास्त्रियों, नीति-निर्माताओं और देशवासियों की रातों की नींद हराम करता रहा है। साल 2012-13 में सरकार ने कुछ अंधाधुंध आर्थिक फैसले लिए। पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी पर कुल्हाड़ी सरीखा आघात करते हुए डीजल की कीमतें बढ़ाई गईं, सब्सिडी युक्त रसोई गैस की उपलब्धता घटाई गई, खुदरा में विदेशी निवेश को अनुमति और बीमा और पेंशन फंडों में विदेशी निवेश के रास्ते चौड़े करने जैसे कुछ महत्वपूर्ण फैसले आर्थिक सुधारों के नाम पर किए गए। बजट में सरकार ने 2012-13 के उन फैसलों को और आगे बढ़ाने और डीजल की कीमतों में वृद्धि करने का आभास दे दिया है।
भुगतान घाटा पाटने की मजबूरी
देश इस समय भुगतान घाटे की भारी समस्या से जुझ रहा है। पिछले वर्ष 2011-12 में भुगतान शेष का घाटा 78 अरब डालर रहा, जो जीडीपी का 4.4 प्रतिशत था। 2012-13 की दूसरी और तीसरी तिमाही में यह घाटा जीडीपी के क्रमश: 5.4 प्रतिशत और 6.0 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। ऐसा लगता है कि भुगतान शेष का घाटा 100 अरब डालर को पार कर जाएगा। गौरतलब है कि 1990-91 में जब भारत की अर्थव्यवस्था एक गंभीर भुगतान संकट से गुजर रही थी, तब भी यह घाटा मात्र 10 अरब डालर से कम का था, जो उस समय की जीडीपी का मात्र 3.2 प्रतिशत ही था। यानी अब समस्या कई गुणा गंभीर है। फर्क केवल इतना है कि उस समय देश के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार नहीं थे, जबकि अब देश के पास 270 अरब डालर के विदेशी मुद्रा भंडार हैं। लेकिन भुगतान की परिस्थिति यदि इसी प्रकार से बनी रही तो विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त होते देर नहीं लगेगी। पिछले कुछ समय से भुगतान संकटों के चलते देश का रुपया लगातार गिर रहा है।
विदेशी निवेश के लिए नया तर्क
विदेशी निवेश के प्रबल समर्थक पी. चिदंबरम अब विदेशी निवेश की अच्छाइयों-बुराइयों के तर्कों से आगे बढ़ गए हैं। अब वे इस बात की चर्चा नहीं करना चाहते कि विदेशी निवेश देश के लिए अच्छा है या बुरा। इस बजट में उन्होंने साफ कर दिया कि विदेशी भुगतान घाटा चिंता का विषय है और हमें तुरंत 75 अरब डालर चाहिए और वह उसके लिए एफ.डी.आई., संस्थागत निवेश और विदेशी बाजार से गुहार लगाएंगे। गौरतलब है कि 2011-12 में देश में मात्र 22 अरब डालर का ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) आया, जबकि ब्याज, रॉयल्टी, डिविडेंट जैसी मदों के नाम पर कुल 26 अरब डालर विदेश चले गए। यानी अब एफ.डी.आई. कोई फायदे का सौदा नहीं रह गया है। भला हो अनिवासी भारतीयों का जिन्होंने इस कालखंड में 65 अरब डालर स्वदेश भेजे और भला हो 'सोफ्टवेयर एक्सपोर्ट' का जिससे 56 अरब डालर इस कालखंड में प्राप्त हुए। इन दोनों बातों पर वित्तमंत्री का कोई वक्तव्य नहीं था। लेकिन घाटे के सौदे एफ.डी.आई. और एफ.आई.आई. को मजबूरी का नाम देकर वित्तमंत्री और यह सरकार अपने मनमुताबिक नीतियां बनाने में जुट गई है।
कोयला, तेल, सोना इत्यादि के आयातों के बढ़ने को भुगतान घाटे का कारण बताया गया है। लेकिन पिछले 2 वर्षों से लगातार बढ़ते भुगतान घाटे की जिम्मेदारी सरकार की है, जिसे वह ओढ़ना नहीं चाहती। बढ़ते राजकोषीय घाटे की चिंता तो वित्तमंत्री जताते हैं लेकिन उसे ठीक करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति का पूर्णतया अभाव इस बजट से दिखता है। नरेगा, आवास योजना इत्यादि पर खर्च में वृद्धि वास्तविक नहीं बल्कि मौद्रिक ही है, क्योंकि इस बीच महंगाई की भी भरपाई नहीं हो पायेगी।
विकास को निराश करता बजट
12वीं पंचवर्षीय योजना में पहले से ही 5 साल में 50 लाख करोड़ रुपये के 'इन्फ्रास्ट्रक्चर' के निवेश की बात कही गई है। वित्तमंत्री ने अपने शब्दों में इसे 55 लाख करोड़ कहकर कोई खास बात नहीं कही। 'इन्फ्रास्ट्रक्चर बांड', भण्डारण के लिए 5 हजार करोड़ और अन्य बातें हर बार जैसी ही हैं। 'इन्फ्रास्ट्रक्चर' में निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी से आम आदमी के कष्ट घटने की बजाय बढ़ ही रहे हैं और उनके समाधान के लिए कुछ नहीं हो रहा।
पिछले कई वर्षों से मांग के अभाव में औद्योगिक विकास दम तोड़ रहा है। ऊंची महंगाई दर के चलते रिजर्व बैंक ब्याज दरें नहीं घटा रहा। रुपये की कमजोरी और बढ़ती लागतों के कारण औद्योगिक लाभ घट रहे हैं और नया निवेश नहीं हो रहा। निवेश बढ़ाने की जरूरत को तो वित्तमंत्री ने रेखांकित किया लेकिन उसके लिए उपायों का कोई खास जिक्र नहीं है। पिछले कुछ समय से सड़क और अन्य 'इंफ्रास्ट्रेक्चर' का विकास थम सा गया है। लूट जैसे उपयोग शुल्कों ने 'एयरपोर्ट इंफ्रास्ट्रेक्चर' में निजी भागीदारी के औचित्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। निवेश का सारा दारोमदार विदेशी निवेश पर छोड़ने की बात हो रही है। अर्थव्यवस्था में घरेलू निवेश बढ़ाने की दरकार है। उसके लिए कोई ठोस कदम दिखाई नहीं देता।
आम आदमी को लगता था कि भारी राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए अब सब्सिडी न घटाकर, अतिरिक्त साधन सम्पन्न अमीरों पर कर लगाए जायेंगे। महंगाई को थामने के लिए सरकार खाद्य पदार्थों की महंगाई को लगाम लगायेगी, औद्योगिक विकास बढ़ाने के लिए 'एक्साईज ड्यूटी' में छूट मिलेगी। लेकिन आम आदमी बजट से निराश ही हुआ है। एक करोड़ की बजाए 50 लाख की आमदनी वालों को 'सुपर' अमीर माना जाता तो जरूर राजकोष की हालत सुधर पाती।
(लेखक पीजीडीएवी कालेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)
सेवा भारती, पूर्वांचल का सेवा संगम
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सेवा भारती, पूर्वांचल के तत्वावधान में गत 23-24 फरवरी को गुवाहाटी में सेवा संगम कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 23 फरवरी को संगम का उद्घाटन करते हुए भारत सेवाश्रम संघ, पूर्वोत्तर के प्रमुख स्वामी साधनानंद महाराज ने कहा कि सबको साथ मिलकर सेवा में तत्पर रहना चाहिए। सेवा ही जीवन का ध्येय होनी चाहिए। इस अवसर पर एक प्रदर्शनी का आयोजन हुआ, जिसमें विभिन्न सेवा प्रकल्पों की जानकारी दी गयी। विभिन्न सत्रों में सम्पन्न इस दो दिवसीय संगम में असम क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्री उल्हास कुलकर्णी, उत्तर असम प्रांत संघचालक डा. उमेश चक्रवर्ती सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित रहे। प्रतिनिधि
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