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महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों से निबटने के लिए गठित वर्मा समिति ने अपनी रपट में कानून को कठोर बनाने का सुझाव दिया था। सरकार ने उसका आधे-अधूरे मन से क्रियान्वयन किया है। वर्मा समिति की रपट कई मायने में दूसरी समितियों से हटकर थी । इसने देशभर के आम और खास लोगों के 80000 सुझावों की पड़ताल की। देश के बुद्धिजीवियों, न्यायविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श किया और इतने बड़े काम को मात्र 29 दिनों में अंजाम तक पहुंचा कर सरकार को अपनी रपट दे दी। जिसके आधार पर एक अध्यादेश लाया गया है।
नए कानून के माध्यम से मौजूदा कानूनों में संशोधन किये गये हैं। कुछ नए अपराध जोड़े गए हैं तथा साथ ही अधिनियम में संशोधन करके महिलाओं के खिलाफ अपराधों को साबित करने की प्रक्रिया को आसान बनाया गया है । तेजाब फेंकने की घटनाओं से निपटने के लिए भारतीय दण्ड संहिता में धारा 326 क तथा 326 ख जोड़ा गया है। इस धारा में किसी व्यक्ति पर तेजाब फेंक कर क्षति पहुंचाने पर दस वर्ष से आजीवन करावास तक की सजा और दस लाख तक के जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है। तेजाब फेंकने के प्रयास के मामलों में दण्ड को कम रखा गया है तथा उसमें अपराधी को 5 से 7 वर्ष तक का कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है । इसी तरह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 क में एक नया अपराध सृजित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी महिला के खिलाफ अश्लील टिप्पणी करता है या उसे जबर्दस्ती अश्लील साहित्य दिखाता है या जानबूझ कर स्पर्श करता है या अन्य किसी भी प्रकार से आपत्तिजनक व्यवहार करता है तो उसे लैंगिक प्रताड़ना के अपराध का दोषी माना जाएगा जिसके लिए पांच वर्ष तक का कठोर करावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
घटनाओं में वृद्धि
बीते वर्षों में महिलाओं को बेइज्जत करने के लिए उसे सार्वजनिक तौर पर निर्वस्त्र करने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे निबटने के लिए भारतीय दण्ड संहिता में धारा 354 ख जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति आपराधिक बल के प्रयोग से महिला को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र करता है या निर्वस्त्र होने को मजबूर करता है या करने का प्रयास करता है तो वह व्यक्ति इस धारा के अन्तर्गत दोषी माना जाएगा और उसे तीन से सात वर्षों तक का कारावास तथा जुर्माने से दण्डित किया जा सकेगा। नए अध्यादेश में महिलाओं की गोपनीयता की रक्षा के उद्देश्य से एक नए अपराध को शामिल किया गया है। इसके लिए भारतीय दण्ड संहिता में धारा 354 ग जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति किसी महिला की निजी गतिविधियों को देखता है या उसकी तस्वीर खींचता है या ऐसा करने का प्रयास करता है तो वह इस अपराध का दोषी है । इस अपराध को पहली बार करने वाले व्यक्ति को एक साल से तीन साल तक का कारावास तथा अर्थदण्ड और इस अपराध को पुन: करने वाले व्यक्ति को कम से कम तीन साल तक के कारावास की सजा जो सात वर्ष तक की हो सकती है, के लिए दण्डित किया जा सकेगा। इसके अलावा उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।
महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शुरुआत आमतौर पर उनके पीछा करने से होती है। इस अध्यादेश में जानबूझकर किसी का पीछा करने या उसे परेशान करने वालों को दण्डित करने के लिए भारतीय दण्ड संहिता में धारा 354 घ जोड़ी गयी है। वह पुरूषों के मामलों में भी लागू हो सकता है। इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति की अनिच्छा के बावजूद उससे लगातार संपर्क करने की कोशिश करता है या उसका पीछा करता है या इलेक्ट्रानिक संदेशों की निगरानी करता है तथा उसके इन तरीकों से किसी व्यक्ति के मन में भय पैदा होता है तो वह इस अपराध का दोषी है । इसके लिए दोषी व्यक्ति को एक से तीन साल तक के कारावास तथा अर्थदण्ड से दण्डित किया जा सकता है।
अपराध की परिभाषा
भारतीय दण्ड संहिता में नए अपराधों को जोड़ने के अलावा कुछ मौजूदा अपराधों की परिभाषा में बदलाव किया गया है । धारा 370 तथा 370 क में मानव दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अपराध की परिभाषा में संशोधन किया गया है । इसमें कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति धमकी, बल प्रयोग, अपहरण या छल के माध्यम से किसी को वेश्यावृत्ति, मजदूरी, जबरिया अंगदान या अन्य किसी तरह के शोषण के लिए भर्ती करता है, रखता है या भेजता है तो वह नए अपराधों का दोषी माना जाएगा जिसके लिए उसे कम से कम 7 वर्षों के लिए तथा अधिकतम आजीवन कारावास का दण्ड दिया जा सकता है।
इसके अलावा वर्मा समिति को इस तरह के कई सुझाव मिले थे जिनमें बलात्कार की परिभाषा में परिवर्तन का सुझाव दिया गया था। उन सुझावों को मानते हुए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 375 में कई परिवर्तन किए गए हैं। अब बलात्कार की जगह लैंगिक हमला शब्द का प्रयोग किया गया है तथा उसे व्यापक बना दिया गया है। इसके अलावा एक नई धारा 376 क जोड़ी गयी है। इसमें कहा गया है कि यदि लैंगिक हमले के कारण ऐसी चोट पहुंचती है जिससे मृत्यु हो या पीड़ित व्यक्ति का शरीर पूर्णत: निष्क्रिय हो जाय तो उसे कम से कम 20 साल का कठोर कारावास तथा अधिकतम जीवन भर के कैद की सजा दी जा सकती है। इन संशोधनों के अलावा साक्ष्य विधि में संशोधन करके बलात्कार की पीड़िता की गवाही की बाधाओं को हटाने का प्रयास किया गया है। इसमें कहा गया है कि पीड़िता के बयान पर गौर करते समय उसके पिछले चाल चलन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा और अदालत में उसके शील के सम्बन्ध में उसे परेशान करने वाले प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे।
कुछ संगठनों द्वारा इन संशोधनों को नाकाफी बताने के बावजूद नया अध्यादेश कानून की कई कमियों को दूर करने का एक आधा अधूरा प्रयास ही है। कानून की भी अपनी सीमा होती है। उसे लागू करने की जिम्मेदारी सरकारी मशीनरी की होती है। सरकार उसे मार्गदर्शन देती है। वर्मा समिति ने भी अपनी रपट में इस तथ्य की ओर इशारा किया है। न्यायमूर्ति वर्मा ने अपनी रपट में कहा था कि 16 दिसम्बर, 2012 की घटना के लिए कानूनी ढांचे में कमी जिम्मेदार नहीं थी, बल्कि समय से पुलिस द्वारा कार्रवाई का न होना, तथा कानून का पालन करने वाली संस्थाओं की लापरवाही उत्तरदायी थी। यदि इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकनी है तो सरकारी व्यवस्था को दुरूस्त करने की जरूरत है।
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