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बंगाल की खाड़ी, कोको द्वीप, थाईलैण्ड, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमाता जा रहा चीन भारत को रणनीतिक तौर पर फंदे में घेर रहा है। गाहे-बगाहे वह उत्तराखण्ड और लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में छिपपुट घुसपैठ या अराजकता की घटनाएं करता रहा है। अरुणाचल को लेकर चीन के मंसूबे किसी से छिपे नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर में शक्सगाम घाटी और अक्साई चिन के अलावा भारत के इस पूरे प्रांत पर उसकी तिरछी नजरें हैं। हाल ही में जानकारी मिली कि लुम्बिनी में शुरू हुई चीनी परियोजना भारत की जासूसी के लिए कुमुक तैयार करने जा रही है। कुछ दिन पहले ही नेपाल सीमा पर चीनी निगरानी यंत्र लगाए गए हैं। भारत की सुरक्षा को गंभीर चुनौती की इस घड़ी में रक्षा सौदों में घोटाले दर घोटाले भारत की सुरक्षा को खतरे में डाल रहे हैं। महत्वपूर्ण उपकरणों और अस्त्रों की खरीद में अब बाधाएं आ जाना स्वाभाविक है। प्रस्तुत है चीन की तरफ से मिल रही ताजा चुनौतियों और रक्षा सौदों में घोटाले तथा उनसे आई बाधा पर एक विस्तृत रिपोर्ट। -सं. प्रस्तुति : दिल्ली ब्यूरो
ड्रैगन आया पास..
आखिर वही हो रहा है, जिसका शक था। विस्तारवादी चीन के मंसूबे यूं भी कभी छिपे नहीं रहे हैं, तिस पर कयास लगाए जा रहे थे कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन के बाद ड्रैगन की भारत विरोधी गतिविधियों में नई तेजी आएगी। आज पाकिस्तान और नेपाल से सटी भारत की सीमाओं पर जैसी हलचलें हैं उनसे बीजिंग की भारत को फंदे में घेरने की मंशा के नए आयामों का खुलासा होता है। जम्मू-कश्मीर से सटे पाक कब्जे वाले कश्मीर में तकरीबन 11 हजार चीनी सैनिकों की मौजूदगी और पाकिस्तान और बीजिंग की तरफ से इसे बराबर खारिज करने संबंधी जानकारियां हमने पांचजन्य में लगातार प्रकाशित की हैं। लेकिन पीओके के कई इलाकों में जिस तरह से चीनी खुफिया उपकरण, बुनियादी ढांचा खड़ा करने की आड़ में चीनी कंपनियों की बेरोकटोक आवाजाही, स्थानीय लोगों को चीनी भाषा सिखाने की मुहिम, मानवरहित विमानों से टोह लेने की सूचनाएं मिल रही हैं वे भारत की सुरक्षा एजेंसियों को खासा हैरान करने वाली हैं। इसी तरह नेपाल से सटे भारतीय रक्षा केन्द्रों की खुफियागिरी के लिए चीन ने बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई हैं। इनमें जासूसी करके सूचनाएं इकट्ठी करने के अलावा भारतीय समाज में नफरत के बीज बोकर अस्थिरता फैलाने की चाल का भी पता चला है।
पहले बात सीमा से सटे पाकिस्तानी इलाकों में हो रही चीनी हलचल की। ग्वादर बंदरगाह चीन की देखरेख में सौंपा जा ही चुका है। पाकिस्तान के नहीं, अब वहां कामकाज बीजिंग के इशारे पर चलेगा। बंदरगाह से जुड़तीं रेल पटरियों और सड़कों का ताना-बाना बुना जाएगा। इसमें चीन के सैन्य अधिकारियों की सीधी दखल और दिशानिर्देशों से इनकार नहीं किया जा सकता। ग्वादर का मोर्चा कसने के साथ ही बगल में सिंध में चीनी घुसपैठ बढ़ गई है। वहां कोयला, गैस, पेट्रोल जैसे 'प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने' के लिए चीनी कंपनियों को बुलाया जा रहा है। सिंध के कई जिलों, जैसे- हैदराबाद, मीरपुर खास, उमरकोट, थार पारकर, थाटा और बादिन में चीन के जासूसी यंत्रों का पता लगना 'ढांचागत विकास' का कौन सा पहलू जताता है, यह आसानी से समझा जा सकता है। ग्वादर के इलाके में भारत की गुप्तचर एजेंसियों को दूर तक नजर रखने वाले चीनी राडार लगे होने की जानकारी मिली है। सरक्रीक में चीन का जलक्षेत्र को लेकर उठाया गया बेवजह का विवाद हर भारत-चीन बातचीत में जबरन जोड़ा जाता है। भारत से सटे पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर और सिंध में चीन की खुली दखल वहां ऐसे हालात पैदा कर रही है कि जिनसे उस तरफ से भारत विरोधी पाकिस्तानी हरकतों को शह मिल रही है।
चीन ने इन इलाकों में बेतहाशा पैसा झोंका है जिसके चलते उसका पाकिस्तानी सरकार और आईएसआई पर पूरा दबदबा बन चुका है। अभी सूचनाएं 11 हजार चीनी सैनिकों के वहां मौजूद होने की हैं, पर आने वाले समय में इसमें और कितना इजाफा होगा, कोई नहीं बता सकता। भारत की लाचारी है कि इसके पास हवा में जासूसी करते किसी मानवरहित विमान को भांपने लायक यंत्र ही नहीं हैं। हालांकि हल्ला मचने के बाद गृह मंत्रालय ने कहा तो है कि हवाई गुप्तचरी के लिए जरूरी तकनीकी उपकरणों की खरीद में जल्दी की जाएगी। सीमा पर चौकसी करने वाले सीमा सुरक्षा बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सशस्त्र सीमा बल को दूर तक भांपने वाले राडार दिए जाएंगे।
नेपाल में बढ़ रहे चीनी मंसूबों के बारे में बात करें तो, पता चला है कि लुम्बिनी में चीन ने एक 300 करोड़ की परियोजना के बहाने लुम्बिनी विकास परिषद से एक ऐसा करार किया है जिसके तहत पहले पहल वहां 24 चीनी अध्ययन केन्द्र स्थापित किए जाएंगे। ऐसी जानकारी है कि ये केन्द्र बड़ी तादाद में चीनी लड़के-लड़कियों को भारत की जासूसी करने के लिए एक आड़ के तौर पर काम करेंगे। इन जासूसों का काम भारत के रक्षा ठिकानों की खुफिया जानकारियां इकट्ठी करना होगा। नेपाल सीमा से सटे भारतीय जिलों से इस मंसूबे की शुरुआत की जाएगी। यह कितनी खतरनाक योजना है इसका अंदाजा इसी से लग जाता है कि भारत के गुप्तचर ब्यूरो और स्थानीय खुफिया एजेंसियों ने गृह मंत्रालय को इस बाबत सावधान कर दिया है। एक पत्रक भी जारी किया गया है जिसमें भावी खतरे का खाका खींचा गया है। पता चला है कि रॉ को भी इस योजना की जानकारी है। चीन नेपाल और भारत के बीच रहे ऐतिहासिक संबंधों को भी पलीता लगाने के एजेंडे पर काम कर रहा है। नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने के लिए वह समय-समय पर शिगूफे छोड़ता रहा है, जिनसे भारत के कारोबारियों, भारतीय उत्पादों, भारतीय फिल्मों के विरुद्ध माहौल तैयार हो। नेपाल से छपने वाली 'हिमालिनी' पत्रिका की मानें तो, नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के कई जिलों, जैसे- बहराइच, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, महाराजगंज, पीलीभीत, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर में, तो बिहार के सीमावर्ती जिलों, जैसे- कटिहार, पूर्णिया, रक्सौल, जोगबनी, मुजफ्फरपुर में चीनी जासूसों के गुपचुप घुसकर खुफिया जानकारियां इकट्ठी करने की चीनी योजना पर अमल चालू हो चुका है। नेपाल से सटे उत्तराखंड के कई इलाकों में तो चीनी षड्यंत्रों के सबूत खुलेआम दिखाई देते रहे हैं। वहां नेपाली माओवादियों का जबरन घुसकर स्थानीय लोगों से झगड़े मोल लेना, माओवादी झंडे लगा देना, अवैध मस्जिदें/दरगाहें बनवाना आदि कई एक काम हैं जिनसे इलाके की जनता में नफरत के बीज बोए जाते हैं।
भारत को फंदे में घेरने के चीनी मंसूबों से ड्रैगन के पास आते जाने की जानकारी अगर हमारी गुप्तचरी और सैन्य बलों को है तो जाहिर है केन्द्र सरकार भी इनसे अनभिज्ञ नहीं है। लेकिन क्या देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार मंत्रियों, अफसरों की नीम बेहोशी टूटेगी या नेहरुआई अंदाज में हम चीन को अचीन्हते रहेंगे?
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