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आवरण कथा में श्री हरिमंगल की रपट और पं. विद्यानिवास मिश्र के आलेख से कुंभ की महत्ता से परिचित हुआ। कुंभ एक ऐसा पर्व है, जिसमें करोड़ों लोग बिना बुलाए अनेक कष्ट उठाकर आते हैं। पड़ोसी नेपाल और अन्य देशों से भी श्रद्धालु कुंभ पहुंचते हैं। उनकी इच्छा रहती है एक अदद डुबकी लगाने की। किन्तु हमारी पवित्र नदियों की जो स्थिति होती जा रही है वह चिन्ता की बात है।
–विशाल कुमार
शिवाजी नगर, वडा, जिला–थाणे (महाराष्ट्र)
0 कुंभ महापर्व पूरे भारत में समरसता पैदा करता है। कुंभ में हर वर्ग, हर जाति, हर प्रान्त के लोग आते हैं। उनमें कोई भेदभाव नहीं होता है। सभी एक ही घाट पर स्नान करते हैं, एक-दूसरे के सुख-दु:ख में सहयोगी बनते हैं, एक पंगत में बैठकर भोजन करते हैं। ऐसी समरसता और कहां दिखेगी?
–रामावतार
कालकाजी, नई दिल्ली
0 कुंभ में एक ऐसे भारत का दर्शन होता है, जो पूरी तरह धार्मिकता से ओत-प्रोत, राग-द्वेष से दूर और निश्छल है। भारत की इसी धार्मिकता और निश्छलता से प्रभावित होकर कुंभ में बड़ी संख्या में विदेशी भी सनातन-धर्म को अपनाते हैं। कुंभ हमें यह भी अहसास कराता है कि भारत को धर्म की डोरी से बांधे रखने और एक-दूसरे को जानने-समझने के लिए हमारे पूर्वजों ने धार्मिक मेलों का आयोजन प्रारंभ किया था।
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
0 इस अंक से कुंभ महापर्व के बारे में दिव्य जानकारी मिली। यह बहुत ही अच्छा अंक बन पड़ा है। कुंभ क्यों लगता है, कुंभ क्या है, समाज में कुंभ का क्या महत्व है, उसके प्रति लोगों में इतनी श्रद्धा क्यों है? इन सबका ज्ञान इस अंक से प्राप्त होता है।
–दयाशंकर मिश्र
लोनी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
सांस्कृतिक प्रदूषण से बचाओ
चर्चा सत्र में श्री बल्देव भाई शर्मा ने अपने लेख 'दर्द का तूफान-सा क्यों है?' में कई बिन्दुओं को उठाया है। बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं में वृद्धि होने की वजह से ही पूरे देश में एक तूफान-सा है। हर कोई इन घटनाओं से चिन्तित है। इसलिए जहां भी उसे अपनी व्यथा व्यक्त करने का मौका मिलता है वह वहीं पहुंच जाता है।
–ब्रजेश कुमार
आर्य समाज रोड, मोतीहारी (बिहार)
0 दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के बाद जनमानस उद्वेलित, आक्रोशित और आन्दोलित है। हमारी आदर्श संस्कृति का व्यापक स्तर पर क्षरण होता जा रहा है। नैतिकता, धार्मिकता को ताक पर रख दिया गया है। न घर, न स्कूल कहीं भी अच्छी बातों को सीखने का माहौल नहीं है। समाज को सांस्कृतिक प्रदूषण से बचाना होगा। ऐसा न होने के कारण ही आज बच्चे 12 साल में ही अपराधी बन रहे हैं।
–क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया कोडरमा-825409 (झारखण्ड)
0 बलात्कार की घटनाओं पर नियंत्रण पाने के लिए कठोर कानून के साथ-साथ समाज को संस्कारों की भी जरूरत है। समाज में मर्यादा और व्यवस्था की भी अनिवार्यता है। परन्तु जब भी संस्कार और मर्यादा की बात की जाती है तो कुछ कथित प्रगतिशील संगठन इनका विरोध करने लगते हैं। संस्कार-हीन और स्वच्छंद समाज से आप यह अपेक्षा नहीं रख सकते हैं कि वह अपराध न करे। हम प्रगतिशीलता का विरोध नहीं करते हैं, पर यह हमारी संस्कृति के अनुकूल और सकारात्मक हो।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)
0 चाहे दुष्कर्म हो या भ्रष्टाचार इनके पीछे का मूल कारण है नैतिक मूल्यों का हृास। पश्चिमी सभ्यता का आंख मूंदकर अनुकरण हमारे संस्कारों की जड़ों को हिला रहा है। पश्चिम से हमें क्या अपनाना है और क्या नहीं, इसका विवेक हमारी युवा पीढ़ी को रखना है। पश्चिमी देश भारत के अध्यात्म की ओर आकृष्ट हो रहे हैं, जबकि हम उनके भौतिकवाद की ओर भागे जा रहे हैं।
–पुनीत मेहता
98, सुभाष मार्ग, खाचरौद, जिला–उज्जैन (म.प्र.)
0 बलात्कारियों की सजा कम करने से ऐसे तत्वों के हौसले बढ़ते हैं। परन्तु पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने कई बलात्कारियों की सजा कम कर दी। रीवा की एक लड़की नवीना सिंह की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी। इसके दोनों दोषियों मोलई कोल और सन्तोष यादव को फांसी की सजा हुई थी। श्रीमती पाटिल ने इनकी सजा कम कर दी है। आम आदमी क्या करे?
–उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप, सीधी
जिला–सीधी-486661 (म.प्र.)
0 केवल अपराध के लिए नहीं अन्य समस्याओं के लिए भी पूरे देश में आक्रोश है। दु:ख तो तब होता है जब किसी मामले के आरोपी को वर्षों बाद सजा सुनाई जाती है और फिर वह दया याचिका देता है। न्यायालय जिसको सजा दे दे उस पर तुरन्त अमल होना चाहिए। किसी सजायाफ्ता को वर्षों तक सजा न देना पीड़ितों के घाव पर नमक छिड़कने के बराबर है।
–देशबन्धु
आर जेड-127, सन्तोष पार्क, उत्तम नगर, दिल्ली
0 बाजारवाद तथा भूमण्डलीकरण के नाम पर आजकल धारावाहिकों, फिल्मों और विज्ञापनों में नारी देह की नग्नता, अश्लीलता का भौंडा प्रदर्शन किया जा रहा है जो हमारे आचार-विचार, संस्कृति का सर्वनाश करने पर तुला हुआ है। अश्लीलता परोसने वाले धारावाहिकों, विज्ञापनों और फिल्मों पर प्रतिबंध लगे। इनके कारण समाज में दूषित वातावरण पैदा हो रहा है।
–महेश चन्द्र शर्मा
ई-81, दयानन्द कालोनी, किशनगंज, दिल्ली-7
रक्षक ही भक्षक
शशि सिंह की रपट 'खाकी एवं खादी से ही सुरक्षित नहीं नारी' में वर्तमान परिवेश का यथार्थ चित्रण हुआ है। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर यह प्रश्नचिह्न है। उ.प्र. में 9 माह में 10 वर्ष से कम की 45 बच्चियों की दुराचार के बाद हत्या कर दी गई। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो रक्षा की उम्मीद बेमानी हो जाती है। लचर कानून-व्यवस्था के कारण ही मंत्री एवं विधायक आरोपित होने के बाद भी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाते। इस कारण पीड़िता को वर्षों तक न्याय के लिए भटकना पड़ता है।
–रमेश कुमार मिश्र
ग्राम–कान्दीपुर, पो.- कटघरमूसा
जिला–अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)
वे नाबालिग नहीं रहे
बड़ी संख्या में नाबालिग अपराध कर रहे हैं। आतंकवादी गतिविधियों से लेकर डकैती, बलात्कार, चोरी सबमें नाबालिग बच्चे शामिल पाए जा रहे हैं। सिनेमा और धरावाहिकों से बच्चे सब कुछ सीख रहे हैं। कई बाल अपराधियों ने स्वीकारा है कि उन्हें कानून का भय इसलिए नहीं होता कि उम्र कम होने पर उन पर कोई कड़ा कानून लागू नहीं होगा। क्या ऐसे बच्चों को नाबालिग कहेंगे? मेरे विचार से इन पर भी वही कानून लागू होना चाहिए जो बड़ों पर लागू होता है।
–शान्ति स्वरूप सूरी
362/1, नेहरू मार्ग, झांसी-284001 (उ.प्र.)
तुलसी और गीता
दृष्टिपात स्तंभ में 'तुलसी तुम धन्य हो' शीर्षक से जो समाचार प्रकाशित हुआ है वह समस्त भारतीयों के लिए प्रेरक है। अमरीका की पहली हिन्दू सांसद तुलसी गब्बार्ड ने सांसद पद की शपथ गीता को हाथ में रख कर ली है। तुलसी पर हम भारतीयों को गर्व है। भारतीय संस्कृति, भारतीय परम्परा, भारतीय धर्म को विश्व स्तर पर पहुंचाने के लिए तुलसी का अभिनन्दन होना चाहिए।
–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)
विघटन की राजनीति
वर्तमान समय में भारत एक विशेष परिस्थिति से गुजर रहा है। अलगाववाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, जातिवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, स्तरहीन राजनीति के कारण भारत कमजोर हो रहा है। यहां ऐसी विघटन की राजनीति हो रही है, जिससे समाज टूट रहा है, कट्टरवाद पनप रहा है और भारत-विरोधी तत्व मजबूत हो रहे हैं। इन समस्याओं को खत्म करने का एक ही मार्ग है प्रखर हिन्दुत्व। हिन्दुत्व के जागरण से ये सारी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।
–नारायण दत्त भट्ट
हल्दीघाटी, राजसमन्द (राजस्थान)
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