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पिछले दिनों महाराष्ट्र के उत्तरी क्षेत्र में बसे धुलिया जिले में साम्प्रदायिक दंगे में 6 लोगों की जान गई, 200 नागरिक तथा 100 से भी अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। दंगे की शुरुआत धुलिया के मच्छी बाजार इलाके में दो गुटों के बीच आपसी झगड़े से हुई, जिसने देखते ही देखते शहर के 50 घरों को आग की चपेट में ले लिया। पहले ही चरण में 50 लोग घायल हो गए। शहर में कर्फ्यू लगाने के बावजूद गैस सिलेंडर से विस्फोट की वारदातें होती रहीं जिसमें लोगों, विशेषकर व्यापारिक क्षेत्र का ज्यादा नुकसान हुआ।
दंगे में बदली एक सामान्य घटना की शुरुआत तब हुई जब होटल का बिल देने के मामले को लेकर कुछ युवकों ने होटल मालिक पर धावा बोल दिया। देखते ही देखते होटल के आसपास वाले क्षेत्र में लूटपाट शुरू हो गई। शुरुआती दौर में स्थानीय पुलिस स्थिति पर नियंत्रण पाने में पूरी तरह असफल रही। पुलिस की यह हालत देखते हुए दंगाइयों का हौसला बढ़ गया तथा उन्होंने लूटपाट करने के अलावा घरों तथा दुकानों को आग लगानी शुरू कर दी। तब अतिरिक्त पुलिस बल के आने और स्थिति पर काबू पाने के लिए पहले आंसू गैस का प्रयोग किया गया, उसका कोई असर न होने पर गोली चलानी पड़ी, जिसमें 4 दंगाई घटनास्थल पर ही मारे गए तथा अन्य 4 को गंभीर अवस्था में इलाज के लिए मुम्बई भेजना पड़ा। इनमें से दो ने इलाज के दौरान मुम्बई में दम तोड़ दिया।
इस दंगे में घायलों की संख्या सभी को अचंभित कर गयी। 200 नागरिकों के अलावा 100 से भी अधिक पुलिसकर्मियों के घायल होने के कारण स्थानीय प्रशासन भी हतप्रभ है। दूसरी बात यह भी ही है कि दंगे का विस्तार पूरे शहर में हो गया और दंगे की आग कर्फ्यू लगाने के दो दिन बाद तक जलती रही। प्रशासन द्वारा कर्फ्यू के बावजूद भी तीन दिन तक जारी वारदातों के संबंध में 8000 दंगाइयों के खिलाफ रपट दाखिल करने की कार्रवाई ने भी अपने आपमें एक कीर्तिमान स्थापित किया है। पुलिस द्वारा चलाई गई गोली से मारे गए 6 में से 5 के अल्पसंख्यक होने के मामले को भी खूब उछाला गया। दंगे की न्यायिक जांच की मांग करते समय पुलिस तथा प्रशासन पर दबाव के लिए इन 5 लागों को दफन न करने की धमकी देने के अलावा शव को लेकर धरना तक दिया गया। प्रशासन को आखिर राज्य के पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) जावेद अहमद को विशेष तौर पर धुलिया भेजकर धरना देने वालों को मृतकों के दफन करवाने हेतु मनवाया गया। इसके विपरीत राज्य के एक जिला मुख्यालय के दंगे की चपेट में आने और 6 लोगों के मारे जाने पर राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण तथा गृहमंत्री आर.आर.पाटिल को वहां जाने की फुर्सत तक नहीं मिली। राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (भाजपा) एकनाथ खडसे एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिन्होंने धुलिया जाकर दोनों समुदायों से बातचीत कर स्थिति नियंत्रण में लाने के प्रयास किए। वैसे धुलिया के दंगों को वहां के स्थानीय नगर निगम के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। जानकार बताते हैं कि 2008 में नगर निगम के चुनावों के 6 महीने पहले धुलिया में दंगे हुए थे और अबकी बार निगम चुनाव को अभी 8 महीने बाकी है। वैसे धुले के अलावा नासिक, जलगांव तथा नंदुरवार को मिलाकर महाराष्ट्र के इस संभाग में साम्प्रदायिक दंगों का एक इतिहास रहा है। जलगांव जिले के यावल तथा रावेर, नासिक जिले के मालेगांव तथा नंदुरवार जिले के सिंदखेड़ा आदि स्थानों पर त्योहारों के दौरान साम्प्रदायिक दंगे होना कोई नई बात नहीं है।
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