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आजकल कोई अखबार पलट लें या कोई पत्रिका अथवा कोई समाचार चैनल देख लें सब जगह तरुण तेजपाल की कलंक कथा की चर्चा हो रही है। फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो तरुण तेजपाल का बचाव कर रहे हैं। वही तरुण तेजपाल, जो इन दिनों गोवा में पुलिस हिरासत में हैं और उनसे अपनी बेटी की उम्र की और तहलका में उनके सहयोगी रही एक महिला पत्रकार के साथ हुए बलात्कार के संदर्भ में पूछताछ हो रही है। इधर वामपंथी मानसिकता के कुछ लोग तरुण के लिए माफी की वकालत कर रहे हैं, तो कुछ लोग उनके पक्ष में लेख लिख रहे हैं। पृष्ठ 8 और 9 पर तरुण तेजपाल के उन्हीं रहनुमाओं को बेनकाब करने वाले कुछ लेख और व्यंग्य प्रस्तुत हैं।
पिछले एक पक्ष से मीडिया में अजीब सा ऊधम मचा हुआ है। तरुण तेजपाल नाम के स्वनामधन्य ह्यसज्जन ह्ण के कृत्यों पर समाज उद्वेलित है और भर्त्सना की बात है कि साहित्यिक जगत और मीडिया के वामपंथी और राष्ट्र विरोधी लोग इस दुष्कर्म को कम आंकने, कम दिखाने, कम महसूस कराने में लगे हैं। प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लोग निजी बातचीत में यहां तक चर्चा कर रहे हैं कि धुंआ अपने आप नहीं निकलता। वह लड़की भी कुछ न कुछ पैमाने पर दोषी है। इस काम में अंग्रेजी के चैनलों और अखबारों के साथ हिंदी के कुछ महारथी भी शामिल हैं। जिनमें सर्वप्रमुख जनसत्ता का संपादक मंडल और उसके लेखक हैं। यहां विशेष रूप से महात्मा गांधी हिंदी संस्थान की पत्रिका ह्यहिंदी समयह्ण के भूतपूर्व संपादक राजकिशोर अग्रणी हैं। उनके दो लेख इस विषय पर जनसत्ता में पिछले दिनों छपे हैं। पहले लेख में उन्होंने तरुण तेजपाल के 6 माह के संपादन को छोड़ने और क्षमा मांगने को महत्व देते हुए इस विषय को अब शांत कर देने की मार्मिक अपील की और नए लेख में उन्होंने तरुण तेजपाल को कलाकार मानते हुए इन शब्दों में उसका स्वस्ति-गान किया है। पत्रकारिता एक कला है और तरुण तेजपाल हमारे समय के उल्लेखनीय कलाकार हैं। उनके काटे हुए कई लोग आज भी बिलबिला रहे हैं। उनके वाक्य का अंतिम टुकड़ा बता रहा है कि राजकिशोर किसलिए तरुण तेजपाल का अपराध कम करने के लिये कोशिश कर रहे हैं। क्या विशेष विचारधारा (इसे राष्ट्रवाद का विरोध पढ़ा जाए) के लिए काम करना किसी का अपराध कम कर देता है। तरुण स्टिंग अपरेशन के महारथी रहे हैं। उनकी शैली रही है कि पहले वातावरण तैयार करो। शेर के सामने बकरी बांधो, शेर को बकरी खाने के लिये फुसलाओ और फिर हाहाकार मचाओ कि शेर ने बकरी खा ली। बंगारू लक्ष्मण जैसे सरल लोग उनके इन षड्यंत्रों का शिकार हुए हैं।
इस विषय को थोड़ा विस्तार में देखने की जरूरत है। कवि, लेखक, संगीतकार, चित्रकार, मूर्तिकार, राजनीतिज्ञ, मीडिया के लोग यानी समाज में अपनी प्रभावी उपस्थिति दिखा पाने, दर्शा पाने वाले लोग सदा-सर्वदा से इन दुष्कमोंर् में संलिप्त रहे हैं। शेक्सपियर की मृत्यु सिफलिस से हुई थी। आस्कर वाइल्ड के कृत्यों को सारा साहित्यिक जगत जानता है। छायावाद की प्रमुख नेत्री, फिराक गोरखपुरी अपने प्रसंगों के लिए चर्चित रहे हैं। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति कैनेडी के दसियों प्रसंग, जवाहर लाल नेहरू की श्रद्घा माता, लेडी एडविना माउंटबेटन और ढेरों स्त्रियों से प्रगाढ़ता, अय्यूब खान की प्रसिद्घ गायिका नूरजहां से हद दर्जे की आत्मीयता के बारे में दुनिया जानती है। इन लोगों में यश, पद, प्रभाव का प्राचुर्य था और लोग इनकी ओर आकर्षित होते थे। इसका ही परिणाम ये आत्मीय सम्बन्ध और उनके बारे में कानाफूंसियां थं।
मगर यहां एक पेच है और यह पेच बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण है। इन लोगों ने कभी इस हाथ दे और उस हाथ ले जैसा कुछ नहीं किया। ये कभी ह्यआज मेरी गाड़ी में बैठ जाह्ण या ह्यआती क्या खंडाला ह्ण जैसा प्रस्ताव देते धरे नहीं गये। गोवा के 5 सितारा होटल में किया गया काण्ड स्टिंग अपरेशन नहीं था। वहां किसी शेर के सामने बकरी बांध कर उसे फुसला कर बदनाम करने का षड्यंत्र नहीं किया गया था, बल्कि यह एक धूर्त व्यक्ति का अपने पद के दुरुपयोग का उदाहरण है। तरुण का कृत्य अपने पद के दबाव में स्त्री अस्मिता को रौंद देने का है। किसी सामान्य व्यक्ति के द्वारा भी यह काम किया जाता तो निश्चित रूप से प्रताड़नीय और दंडनीय होता ही होता मगर यहां तो मामला एक लड़की को अपने पद के दवाब में कुचल डालने का है। उस पर तुर्रा ये कि तुम्हारे पास अपनी नौकरी बचाने का ये ही एक मात्र रास्ता है। यहां यह बात भी सोचने की है कि तहलका जैसा पत्र जिसकी प्रतियां सामान्यत: बाजारों में नहीं दिखायी देतीं, जिसमें बहुत अधिक विज्ञापन नहीं होते, उसके पास गोवा में सेमीनार करने के संसाधन कहां से आते हैं ? क्या ये यूं ही है कि कपिल सिब्बल तहलका को शुरू करने के लिये धन देते हैं। पत्रकारिता के ऐसे कौन से महत्वपूर्ण कार्य हैं जिनके करने से देखते ही देखते तरुण का साम्राज्य खड़ा हो जाता है? इस समय भी तरुण को बचाने के लिए उसके हिमायतियों की टीमें लगी हुई हैं। क्या तरुण की जगह निर्भया के दुष्कर्मी होते तब भी इसी प्रकार के बयान आते ? क्या शोमा चौधरी तब भी ऐसे ही बयान देतीं? इसी रोशनी में मैं एक प्रश्न इस घटना को कम करके आंकने वाले, कम दिखाने वाले महानुभावों से करना चाहूंगा। अगर इस लड़की की जगह उनकी बेटी या बहन होती तो क्या तब भी वे बलात्कारी को कलाकार मानते और क्षमा करने की बात करते? अगर हां, तो मैं 6 माह बल्कि एक वर्ष के लिये लफ्ज का संपादन छोड़ने और सहर्ष चार-पांच बार क्षमा मांगने के लिये तैयार हूं । बताइए कब और कहां भेंट की जाए । तुफैल चतुर्वेदी
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