|
एक विधान, एक प्रधान, एक निशानह्ण के नारे के साथ जम्मू-कश्मीर को देश के साथ पूरी तरह आत्मसात कराने का अभियान लेकर श्रीनगर गए डॉ़ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का उद्देश्य ही भारत के इस उत्तुंग प्रदेश को देश से अलग करने के प्रत्येक षड्यंत्र को परास्त करना था। संविधान निर्माता डॉ़ अम्बेडकर ने भी जम्मू-कश्मीर की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए अनुच्छेद 370 को अस्थायी के तौर पर स्वीकारा था। लेकिन अलगाववादी मानसिकता ने इसकी आड़ में न केवल प्रदेश को देश से अलग दिखाने की सोच का साथ दिया बल्कि वहां के पिछड़े वर्गों और महिलाओं को शेष देश में मिल रहे लाभों से भी वंचित करा दिया। शेष भारत के नागरिकों को मिलने वाले मौलिक अधिकारों से आम कश्मीरवासी वंचित कर दिए गए। जम्मू से उठी अनुच्छेद 370 को कसौटी पर कसने की आवाज से एक उम्मीद जगी है, कि जम्मू-कश्मीर जल्दी ही संवैधानिक तौर पर भारत के अन्य राज्यों जैसा एक राज्य बनकर हिमालय से कन्याकुमारी तक एक ही छटा बिखेरेगा। इंतजार है तो बस राज्य पर जकड़े ताले के टूटने का।
टिप्पणियाँ