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गत एक दिसम्बर को वाराणसी में नेपाली संस्कृति परिषद के तत्वावधान में दो दिवसीय केन्द्रीय अधिवेशन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन समारोह मैदागिन स्थित पराड़कर स्मृति भवन में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्द्रेश कुमार ने भारतीय संस्कृति और नेपाली संस्कृति की एकरूपता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत और नेपाल की संस्कृतियों के बीच कोई भी भिन्नता नहीं है। भारतीय एवं नेपाली संस्कृति के संवर्धन, संरक्षण हेतु हम सभी को प्रयास करना होगा तभी हमारी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता जीवित रह सकेंगी। श्री इन्द्रेश कुमार ने भारत -नेपाल की संस्कृति और संरक्षण से जुड़े कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी रखे। उनमें मुख्यत: विदेशी षड्यंत्रों द्वारा नेपाली संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के विनाश के लिए प्रयत्न किया जा रहा है, जिस पर सरकार द्वारा रोक लगाना,गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना जैसे कई प्रस्ताव रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. ़हरि प्रसाद अधिकारी ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। हम सभी को ज्यादा नहीं पर कुछ वेद एवं धर्मशास्त्रों का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है साथ ही संस्कृत के ज्ञान के बिना संस्कृति का ज्ञान कभी हो ही नहीं सकता। अत: प्रत्येक भारतीय एवं नेपाली समाज को अपनी संस्कृति समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन आवश्यक है। भारत की प्रतिष्ठा ही संस्कृत एवं पुण्य संस्कृति में है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान के कारण ही भारत विश्वगुरु कहलाता है। यह अत्यन्त सौभाग्य की बात है कि संस्कृति सम्मेलन का आयोजन भारतीय सांस्कृतिक राजधानी काशी में किया गया, इससे भारत-नेपाल, भूटान ही नहीं पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति को एक नया सन्देश जायेगा। कार्यक्रम में नेपाल के ब्रह्माण्डीय सनातन धर्म महासभा के अध्यक्ष भरत राज पैडेल, दधिराम शर्मा, दीपक थापा, मध्यप्रदेश से आए सुधीर गुप्ता, सिक्किम से आए कमल शर्मा, वीरेन्द्र शर्मा आदि विशिष्ट जन उपस्थित थे। । समापन समारोह में अतिथियों का स्वागत परिषद के संयोजक अशोक चौरसिया एवं समिति के महामंत्री अर्जुन सिंह घते ने धन्यवाद ज्ञापन किया। वि़ सं. के., वाराणसी।
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