नए अनुभव की कविताएं.
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कविता, दरअसल कवि-विशेष की तमाम स्मृतियों, जीवन के अनुभवों, सम्वेदनाओं, अनुभूतियों, विचारों, कल्पनाओं, सपनों और विरोधाभासों के विस्तार से प्रवाहित होती हुई पाठक के चेतन और अवचेतन तक की यात्रा करती है…. और फिर रफ्ता-रफ्ता वह पाठक उस कवि विशेष की कविता में व्यक्त तमाम उम्मीदों, बेचैनियों और विश्वासों के साथ खुद को खड़े पाता है। इस प्रकार कविता और पाठक में एक तरह का तारतम्य स्थापित होता है, जो एक विशिष्ट प्रकार के आनन्द की उत्पत्ति का कारण बनता है; काव्यात्मक साहित्य की यही सबसे बड़ी सफलता और सार्थकता है।
भारत भूषण ह्यआर्यह्ण एक दोहाकार के रूप में, एक गजलकार के रूप में, एक गीतकार के रूप में… पहले से ही हमारे सामने अपने प्रकाशित काव्य-संग्रहों के माध्यम से आ चुके हैं। हिन्दी साहित्य जगत में वे एक चर्चित नाम हैं। चर्चित इस मायने में भी कि वे तमाम फैशनपरस्ती और शोबाजी से बचते हुए, सधे हुए कदमों से कविता के रास्ते पर अपनी ही अलमस्ती में आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा रुतबा और ऐसा सुख विरले कवियों को ही प्राप्त है।…. ऐसे में ह्यशेष हैह्ण नाम से उनका छंद-मुक्त कविताओं का संग्रह सामने आया है। ह्यजो छन्द बद्धता में माहिर हो, उसे ही छंद कोतोड़ने का अधिकार हैह्ण… इस उक्ति के आलोक में देखा जाए तो भारत भूषण ह्यआर्यह्ण का ऐसा संग्रह आना ही चाहिए था। छंद-बंधन को तोड़ने वाले पूर्वज कवियों की साहसिकता को उनका यह संग्रह और अधिक विस्तार देगा।
भारत भूषण आर्य की कविता की संशलिष्टता देखते ही बनती है। यह कविता का एक ऐसा गुण है, जिसे अपनी कविता में पैदा करना कवि के लिए एक चुनौतिपूर्ण काम है। इसके लिए अलग से कवि में ऐसा हुनर होना चाहिए कि परत-दर-परत वह अपनी बातों को एक कैपसूल की शक्ल में रखने का कौशल दिखा सके ताकि जब वे बातें एक-एक कर सामने आएं तो अपने विस्तार, विराट और व्यापक-फलक से पाठक को हैरान-परेशान कर सकें। भारत भूषण क्योंकि एक दोहाकार भी हैं; इसलिए उनमें यह गुण शिद्दत के साथ मौजूद है। ह्यचीख दर चीखह्ण कविता में ह्यचीखह्ण शब्द की पर्तदारी और अर्थवक्ता अद्भुत है-
ह्यचारों तरफ/ इतनी चीखें/ पता ही नहीं लगता/ कि चीख कब जन्मी/और चीखों में दबकर/ कब मर गई? इसी तरह ह्यकौन सो रहा हैह्ण कविता में ह्यसोने वालोंह्ण की फेहरिस्त कितनी लम्बी हो सकती है, इसका अंदाजा लगाएं-
ह्यमैं जाग रहा हूं/ तू जाग रहा है/ यह जाग रहा है/ वह जाग रहा है/ सारी दुनिया जाग रही है/ तो फिर सो कौन रहा है? कविता में ह्यप्रश्न उठानाह्ण अपने आप में एक अलग प्रकार का गुण है। कबीर ने प्रश्न उठा-उठाकर पाठकों को हैरान-परेशान किया और इसी कारण वे एक अनूठे और निराले कवि हुए। उपर्युक्त दोनों कविताओं में उठे प्रश्न पाठक को झकझोरने और सोचने पर विवश करते हैं।
ह्यरोष हैह्ण कविता-संग्रह में अधिकांशत: छोटी-छोटी कविताएं हैं। इस कारण भारत भूषण ह्यआर्यह्ण को हम ह्यभाषा का अल्प-व्ययी कविह्ण भी कह सकते है। कम से कम शब्दों में आप अगर अपनी पूरी बात कहने का सामर्थ्य रखते हैं तो आप जैसा प्रभावी और श्रेष्ठ वक्ता कौन हो सकता है? कविता में तो इस गुण को ह्यसर्वोत्तम-गुणह्ण की श्रेणी में रखा जाता है। छोटी कविताओं की ह्यमारक-शक्तिह्णभी अद्भुत होती है। अब भारत की ह्य वुजूदह्ण कविता कोह्ण ही देखिए और इसके ह्यडंकह्ण को महसूस कीजिए-
ह्यवुजूद गरीब का/रोशनाई से/
लिखे हर्फ पर/ पानी का बिखरना…/ह्ण
ह्यशेष हैह्ण की कविताएं स्तरीय हैं। कुछ ऐसी हैं, जो अधिक ध्यान खींचती हैं। इनमें कौन सो रहा है, बची रहेगी दुनिया, तरीका, चीख दर चीख दर्द की चांदनी में, वुजूद, रंग, कभी माफ मत करना, बस, ये कमबख्त दिल, अर्थ, इंतिजार करते शब्द आदि को लिया जा सकता है। कुल मिलाकर भारत भूषण ह्यआर्यह्ण एक सरल, सजग और नेकदिल कवि हैं, जिसके कारण उनकी कविता में ईमानदारी, मौलिकता और असाधारणता के रह-रह कर दर्शन होते हैं। वे अलग से पहचाने जाने वाले कवि हैं। समकालीन-कविता की बात में उनका उल्लेख न होगा, ऐसा कदाचित लगता नहीं।
नरेश शांडिल्य
पुस्तक का नाम – शेष है
कवि – भारत भूषण ह्यआर्यह्ण
मूल्य – 120 रु., पृष्ठ – 250
प्रकाशक – साहित्य सहकार प्रकाशन
29/62, गली नं. 11,
विश्वास नगर, दिल्ली-110032
केनवास पर शब्द सुप्रतिष्ठित चित्रकार संदीप राशिनकर की काव्य अभिव्यक्ति का यह संकलन सामान्य संकलनों से अलग है। इस में 25 कविताएं और 39 गजलें संकलित हैं और हर रचना में संदीप के बनाए रेखांकन भी लगे हैं। इस तरह से कला की तीन विधाएं संकलित हैं। एक कविता, दूसरा गजल और तीसरा रेखांकन इन तीनों को ध्यान में रखते हुए तीन विशेषज्ञों ने आमुख लिखा है। कविता के लिए सरोज कुमार, गजल के लिए अजीज अंसारी और चित्रों के लिए अनीस नियाजी। सरोज कुमार कविताओं के बारे में लिखते हैं कि – ह्यउनकी कच्ची-पक्की कविताओं में पर्याप्त आधुनिकबोध एवं समकालीन परिदृश्य के अनुरूप शिल्प उपस्थित है। उनके संवेदनशील मन की गुनगुनाहट और कसमसाहट इन कविताओं में व्याप्त है। इन पंक्तियों की छांव में संग्रह को पढ़ना ज्यादा सार्थक है। छोटी-छोटी कविताओं के माध्यम से संदीप ने अपने मन की आवाज को शब्दरूप में अंकित किया है। एक छोटी कविता किन्तु इस बार की पंक्तियों को देखें –
इन्सान बनने/सभ्य होने/ की प्रक्रिया में/ लगता है/ यकायक लौटकर हम हो गए बंदर/ किन्तु इस बार उस्तरा नहीं/ हाथ में/आण्विक हथियार लेकर।ह्ण
यहां कवि को उस्तरे की जगह जो आण्विक हथियार दिखाई दे रहा है, वह इस तकनीकी युग पर कटाक्ष की तरह से है। विलग को रेखांकित करते हुए कवि अपनी कविता ह्यविलगावह्ण में लिखता है – मैं बनता रहा समुद्र/और तुम/ कोई हिल स्टेशन/ इसी तरह से कवि एक कविता ह्यप्रयत्नह्ण में लिखता है –
ह्यइतने प्रयत्नशील/ प्रगतिशील हो गए कि/आदमी जंगली और/ शहर जंगल हो गए।ह्ण इस संग्रह का कवि यथास्थिति को स्वीकार नहीं करता है, उसे ढिबरी की लौ का आह्वान सुनाई देता है। अंधेरे संघर्ष के लिए, तो वह संवाद की अहमियत को रेखांकित करता है-ह्यइस टूटन को / मौन रह कर सहा है/ मौन ने / ताकि ग्रहण संवाद हीनता का / ग्रस न लेह्ण। (मौन कुछ कविताएं) और कवि का खण्डित मन लगातार टकाराने में सक्षम है। संकलित कविताओं में से बहुत सारी पंक्तियों को निकाल कर पढ़ा जा सकता है, जो पाठक को जीवन विवेक देने में सक्षम है। आधार विहीन, धरती और बादल, कैसे मान लूं, देर रात तक, आज की विडम्बना तथा मां इस संग्रह की उल्लेखनीय कविताएं हैं।
संदीप जिंदगी बड़ी शिद्दत के साथ पकड़ते हैं और लिखते हैं – मेरी बेबसी पर दो आंसू बहाकर/मेरे साथ राहें अब चलने लगीं हैं/ ये दीवारें अब पहले जैसी नहीं हैं/ कि बहरी थीं अब बातें सुनने लगीं हैं/ पड़ा अब जो सूखा तो मैं ना डरूंगा / कि आंखों से अब नदियां बहने लगी है।ह्ण
आगे चलकर जीवन के बनावटीपन को रेखांकित करते है –
अंदर है अश्को के झरने
झूठी हंसी से शहर पटा है।ह्ण
इन गजलों में कथ्य है और एक ईमानदार आदमी की संवेदना का संसार। जहां मानवीय मूल्यों को ठिया मिलता है तो अस्तीत्व बोध जैसे बरगद की छांव। शिल्प, भाषा और मात्राओं के आधार पर कहीं कमजोरी दिख सकती है, कुछ जगहों पर दुहराव भी है, लेकिन इन सबके ऊपर कवि की साफगोई और सुन्दर जीवन की आकांक्षा भारी पड़ती है।
इस संग्रह का सबसे मजबूत पक्ष इसमें कविताओं के साथ संकलित रेखाचित्र। इन चित्रों ने कविता के अंतर्मन को और ज्यादा सम्प्रेषणीय बनाया है। रेखाओं में अनन्त चित्र छुपे होते हैं। वे जब किसी कलात्मक शैली में कविता से संलग्न होते है, तो कविता की आवाज बन जाती है। इसका श्रेष्ठ उदाहरण इस संग्रह के रेखा चित्रों में देखा जा सकता है। अनीस नियाजी ने ठीक ही लिखा है –
ह्यइन रेखाओं में मानव मन की उजास है तो दारुण दु:ख और पीड़ा के स्वर रूप भी हमें दिखाते हैं। ये सभी काली स्याही से सफेद सतह पर रचे रेखांकन मनुष्य के उस निर्मल एकांत को छूते हैं, जहां कोलम मानवीय भावनाए होती हैं।ह्ण
कुल मिलाकर यह संग्रह पठनीय एवं संग्रहणीय है। इसकी कविताएं जहां जीवन की गांठे खोलती हैं, वहीं गजलें त्रासद जीवन के लिए मरहम की तरह हैं और रेखांकन अनन्त उड़ान के लिए आकाश देता है। कवि बधाई के पात्र हैं। प्रदीप मिश्र
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