|
इंडोनेशिया की राजधानी बाली में विश्व व्यापार संगठन के 9वें द्विवार्षिक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में भारत सरकार ने व्यापार सुगमीकरण के मुद्दे पर सहमति व्यक्त करके देश के आर्थिक हितों के विपरीत निर्णय किया है। व्यापार सुगमीकरण पर यह समझौता भारत के लिये आयात सिद्घ है। कर सुगमीकरण व्यापार व भुगतान संकर का कारण बनेगा। भारत प्रारम्भ से ही व्यापार सुगमीकरण के विरुद्घ रहा है। वर्ष 2001 में दोहा में कड़े संघर्ष के बाद तत्कालीन वाणिज्य मंत्री एवं दोहा में भारतीय प्रतिनिधि मुरासोली मारन ने व्यापार सुगमीकरण सहित सभी चारों सिंगापुर मुद्दों को समाप्त करवाने में सफलता अर्जित की थी।
वर्तमान में भी भारतीय वाणिज्य मंत्रालय 3 माह पूर्व तक व्यापार सुगमीकरण का विरोध करता रहा है। लेकिन खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर यूरो अमरीकी सहमति प्राप्त करने के बदले में व्यापार सुगमीकरण पर समझौता करते हुये अचानक इस विषय पर भारत सरकार द्वारा आत्मसर्मपण कर देना आत्मघाती सिद्घ होगा। इससे देश में चीनी, अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से आने वाले माल और यूरो अमरीकी देशों से आयातों में भारी बढ़ेात्तरी हो जाएगी। इस कारण विदेश व्यापार घाटा तेजी से बढ़ेगा, बड़ी संख्या में उद्यम बन्दी होगी और बेरोजगारी बढ़ेगी।
खाद्यान्नों के सार्वजनिक भण्डारण के लिये भारत ने यूरो अमरीकी देशों से जो 4 वर्ष के लिये शान्ति प्रावधान अर्जित किया है, वह भी अपर्याप्त है। इस अल्पकालिक शान्ति प्रावधान से खाद्य अनुदानों सम्बन्धी समस्या 4 वर्ष बाद अधिक कष्टदायक सिद्घ होगी। यह अवसर था जबकि भारत को बाह्य सन्दर्भ मूल्य को पुनरक्षित करवाने की मांग पर सुदृढ़ रुख अपनाना चाहिये था। शान्ति का प्रावधान खरीद कर तो भारत ने खाद्य सुरक्षा के मामले पर, अपनी सौदेकारिक क्षमता को ही कमजोर कर लिया है। वर्ष 1986 से 1988 का बाह्य सन्दर्भ मूल्य आज अप्रासंगिक हो गया है। यथा चावल के मामले में भारत का बाह्य सन्दर्भ मूल्य 3 रुपये 52 पैसे सर्वथा अप्रासंगिक है। वर्तमान समर्थन मूल्य 19 रुपये 65 पैसे है। इसलिये इसमें 13 रुपये 13 पैसे को कृषि अनुदान मान लेना सरासर गलत है। अतएव् भारत को शान्ति प्रावधान खरीदने के स्थान पर खाद्य सुरक्षा मुद्दे पर 2 आधारों पर लड़ना था। प्रथम तो बाह्य सन्दर्भ मूल्य को वर्तमान मुद्रास्फीति के समतुल्य लाने के लिये और दूसरा यह कि भारत का खाद्य सुरक्षा अधिनियम खाद्यान्नों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हस्तक्षेप नही करता है। अतएव् यह विवाद में ले जाने योग्य नही है। न्यूनतम आहार, भारतीय संविधान के अनुसार व्यक्ति का मौलिक अधिकार बनता है।
भारत का खाद्य सुरक्षा अधिनियम किसी भी स्थिति में व्यापार रोधी अनुदानों की श्रेणी में नही आता है। इसलिये खाद्य अनुदानों के नाम पर व्यापार सुगमीकरण पर आत्मसमर्पण की आवश्यकता नहीं थी। खाद्य सुरक्षा अधिनियम को अलग रखते हुये बाली में अन्य मुद्दों कोे उठाने की आवश्यकता थी। खाद्य सुरक्षा के सन्दर्भ में भारत को खाद्यान्नों के बाह्य सन्दर्भ मूल्य को मुद्रास्फीति के अनुपात में समायोजित करवाने की अपनी न्यायोचित मांग पर सुदृढ़ रुख अपनाना चाहिये था। इसलिये किसी भी स्थिति में व्यापार सुगमीकरण पर भारत की सहमति को उचित नहीं कहा जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप देश की सीमा शुल्क आधारित रचनाओं को सुधारने में भारी निवेश करना होगा। बन्दरगाहों आदि की आधारित रचनाओं में भारी विस्तार करना होगा। सीमा शुल्क विभाग या अन्य विभाग द्वारा आयात के निपटान में जरूरत से अधिक समय लेने पर सरकार को सम्बन्धित पक्षकारों को बड़ी मात्रा में क्षतिपूर्ति देनी पडे़गी। क्षतिपूर्ति की यह राशि प्र्रतिवर्ष कई हजार करोड़ में हो सकती है। भगवती प्रकाश शर्मा
टिप्पणियाँ