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775 रुपए का मीटर 1457 रुपए में खरीदा।

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Nov 30, 2013, 12:00 am IST
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दिल्ली जल बोर्ड में करोड़ों रुपए का घोटाला

दिंनाक: 30 Nov 2013 14:33:15

 

चुनाव से ठीक पहले दिल्ली जल बोर्ड में मीटर घोटाला सामने आया है। इस घोटाले की जांच सीबीआई ने शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और कांग्रेस पार्टी की सांसें फूलने लगी हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि यदि जांच हो जाए तो दिल्ली जल बोर्ड में अनेक घोटाले उजागर होंगे। एक घोटाला टैंकर घोटाले के रूप में सामने आ सकता है। मालूम हो कि दिल्ली में बहुत ऐसी कालोनियां हैं जहां टैंकर से पीने का पानी उपलब्ध कराया जाता है।

पहले ये मीटर जांच में खरे नहीं उतरे। इसके बाद जांच करने वाले संस्थान को दिल्ली जल बोर्ड ने पत्र लिखकर कहा कि जांच में थोड़ी ढिलाई करें। फिर दोबारा इनकी जांच हुई और फिर खरीदी आदेश दिया गया।

इन मीटरों के संचालन के लिए एक सॉफ्टवेयर भी खरीदा गया। इसके लिए एक कम्पनी ने 1 करोड़ रुपए की मांग की और दूसरी ने 16 लाख, 80 हजार, 510 रुपए की । किन्तु दोनों को मांगी गई राशि दे दी गई। यह नहीं देखा गया कि इनकी मांगों में कितना अन्तर है।

काफी दिनों से कुछ गैर-सरकारी संगठन और लोग यह बात कह रहे हैं कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली में बिजली के निजीकरण और पानी के वितरण और प्रबंधन को सुधारने की आड़ में करोड़ों रुपए का घोटाला किया है। यह बात कहने वाले संगठनों में से एक है सिटिजन्स फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्रेसी(सीएफडब्ल्यूडी)। इसी के प्रयास से दिल्ली जल बोर्ड में हुए घोटाले लोगों के सामने आने लगे हैं। पहला मामला जुड़ा है पानी के मीटरों से। सीएफडब्ल्यूडी के संयोजक एस ए नकवी के अनुसार यह घोटाला 150 करोड़ रुपए का है। सीएफडब्ल्यूडी की शिकायत पर ही इस मामले की प्रारंभिक जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) ने शुरू कर दी है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली जल बोर्ड की अध्यक्ष मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हैं। यदि जांच की प्रक्रिया जल्दी पूरी हो गई तो शीला दीक्षित की परेशानियां बढ़ सकती हैं।

सीएफडब्ल्यूडी के अनुसार 30 दिसम्बर,2011 को दिल्ली जल बोर्ड ने 3 लाख आटोमेटिक मीटर रीडिंग (एएमआर) और 1 लाख नन-एएमआर मीटर के लिए टेंडर जारी किया। (कहा गया कि इन मीटरों से पानी का वितरण और प्रबंधन ठीक हो जाएगा।) तय तिथि 25 अप्रैल, 2012 तक तीन कम्पनियों ने टेंडर भरा। जांच के बाद दो कम्पनियों का चयन किया गया। ये कम्पनियां थीं-मेसर्स लार्सन एंड टूब्रो लि और मेसर्स एसपीएमएल। इन कम्पनियों ने अपने-अपने मीटर जल बोर्ड को दिए। इसके बाद वे मीटर जांच के लिए फ्लूइड कंट्रोल रिसर्च इंस्टिट्यूट (एफसीआरआई), पालघाट,केरल भेजे गए। एफसीआरआई ने इन मीटरों की जांच आईएसओ मानक पर की,किन्तु जांच में ये मीटर खरे नहीं उतरे। एफसीआरआई ने अपनी जांच रपट 9 जुलाई,2012 को दिल्ली जल बोर्ड को सौप दी। किन्तु पता नहीं किसके इशारे पर दिल्ली जल बोर्ड ने 3 सितम्बर,2012 को एफसीआईआर को एक पत्र लिखा,जिसमें एफसीआईआर से निवेदन किया गया कि वह फिर से एक बार इन मीटरों की जांच करे। निविदा की शतोंर् को तोड़ते हुए यह भी लिखा गया कि इस बार आईएसओ के मानक पर नहीं,आईएस 779 के मानक पर यह जांच हो। बोर्ड ने यह भी लिखा कि जांच के समय इन कम्पनियों के प्रतिनिधियों को भी मौजूद रहने की छूट दी जाए। ऐसा ही किया गया। कम्पनियों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में मीटरों की जांच की गई और उन्हें ठीक बताया गया। एफसीआरआई ने 14 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली जल बोर्ड को जांच प्रमाणपत्र भी भेज दिया। यहां एस ए नकवी कई सवाल उठाते हैं। पहला सवाल है कि दिल्ली जल बोर्ड ने कम्पनियों के पक्ष में एफसीआरआई को पत्र क्यों लिखा? दूसरा सवाल है कम्पनियों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में यह जांच क्यों हुई,जबकि ऐसी जांच तो गोपनीय होती है? यानि दाल में जरूर कुछ काला है।

इसके बावजूद इन दोनों कम्पनियों को मीटर आपूर्ति का ठेका दिया गया। मेसर्स एसपीएमएल को 1 लाख 80 हजार एएमआर और 60 हजार नन-एएमआर मीटरों के लिए 152 करोड़ रु और मेसर्स लार्सन एंड टूब्रो लि को 1 लाख 20 हजार एएमआर और 60 हजार नन-एएमआर मीटरों के लिए 101 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। यानि इन दोनों कम्पनियों ने कुल मिलाकर 3 लाख मीटरों की आपूर्ति की, जिनमें 2 लाख मीटर एएमआर मीटर और 1 लाख नन-एएमआर मीटर थे। इन मीटरों को लगाने और सात साल तक इनकी देखरेख का जिम्मा भी इन्हीं कम्पनियों के पास है।

दिल्ली जल बोर्ड ने एक नन-एएमआर मीटर के लिए एक कम्पनी को 1457 रु और दूसरी कम्पनी को 1300 रुपए का भुगतान किया है। एक ही मीटर के लिए दो दरें क्यों? जबकि यही मीटर नकवी ने खुदरा बाजार में 1050 रु खरीदा है,जबकि थोक में इस मीटर की कीमत 775 रु बताया जा रहा है। दिल्ली जल बोर्ड के बिल में इन मीटरों के लिए अधिकतम मूल्य 1300 रु लिखा है। नकवी सवाल खड़े करते हैं कि जब अधिकतम मूल्य 1300 रु है तो फिर किस आधार पर दूसरी कम्पनी को 1457 रु. भुगतान किया गया? सीएफडब्ल्यूडी के अनुसार मीटरों की खरीद में जमकर धांधली की गई है।

मालवीय नगर में एएमआर मीटर लगाने वाली एक कम्पनी को प्रति मीटर 3277 रु, दूसरी कम्पनी को 5070 रु और तीसरी को प्रति मीटर 6600 रु का भुगतान किया गया है।

मजेदार बात तो यह है कि मेसर्स एसपीएमएल ने मीटर लगाने के लिए प्रति मीटर 225 रु मांगा था,किन्तु जल बोर्ड ने उसे प्रति मीटर 800 रु का भुगतान किया है। वहीं इसी काम के लिए मेसर्स लार्सन एंड टूब्रो को प्रति मीटर 1905 रु का भुगतान किया गया है।

इन मीटरों के संचालन के लिए एक सॉफ्टवेयर भी खरीदा गया। इस सॉफ्टवेयर के लिए एक कम्पनी ने 1 करोड़ रुपए की मांग की और दूसरे ने 16 लाख,80 हजार,510 रु की। इन दोनों कम्पनियों की मांगों में भारी अंतर था फिर भी जिसने जो मांगा उसको दे दिया गया। आंकड़े साफ बता रहे हैं कि दिल्ली जल बोर्ड में मीटरों की खरीद में धांधली हुई है। असलियत क्या है यह सीबीआई की जांच से सामने आ जाएगी। जल बोर्ड के सूत्रों का ही कहना है कि यदि ठीक से जांच हो तो दिल्ली जल बोर्ड में कई घोटालों की जानकारी मिलेगी। इनमें से एक टैंकर घोटाला है। मालूम हो कि दिल्ली की कई कालोनियों में टैंकर से पीने के पानी की आपूर्ति होती है। इसमें जमकर लोग पैसा बना रहे हैं। अरुण कुमार सिंह

 

ह्यफ्रांसीसी कम्पनी पिला रही है पानीह्ण

दिल्ली में पानी की गुणवत्ता और वितरण को दुरूस्त करने के बहाने जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है। पहले तो पानी के मीटरों पर घपला हुआ। उसके बाद निजी कम्पनियों ने पानी की गुणवत्ता खत्म कर दी है। मालूम हो कि दिल्ली में 40-45 प्रतिशत पानी निजी कम्पनियों के हाथों में दिया गया है। पानी को निजी कम्पनियों के हाथों में देने का एक बड़ा मकसद था पैसा कमाना। दिल्ली के तीन जल संयंत्रों (सोनिया विहार,नांगलोई और भागीरथी) को फ्रांस की एक कम्पनी को सौपा गया है। यही कम्पनी जल के उत्पादन से लेकर वितरण का काम कर रही है। कहा गया था कि पानी को निजी हाथों में देने से पानी की गुणवत्ता में तो सुधार होगा ही,इसके साथ ही पानी का वितरण भी ठीक हो जाएगा। पर असलियत तो यह है कि पानी की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है। आप सबको पता होगा कि एनसीईआरटी कालोनी में कुछ दिन पहले दूषित पानी पीने से 50 से अधिक लोग बीमार हो गए थे। उस इलाके में पानी वितरण का काम फ्रांसीसी कम्पनी के पास है।

दिल्ली में मीटरों की कहानी

पुराने मीटर की जगह नया मीटर लगवाने के नाम पर ऑटो वालों को परेशान किया जा रहा है।

जिन लोगों ने नया मीटर लगाया है वह बहुत जल्दी खराब हो रहा है।

इस वजह से ऑटो वालों और सवारियों की बीच तू-तू-मैं-मैं होती रहती है।

पानी के उपभोक्ताओं को एक साल में 2-3 मीटर लगवाने की जरूरत पड़ रही है।

ये मीटर इतने तेज भाग रहे हैं कि लोग बिल दे-देकर परेशान हैं।

ज्यादातर मीटर बिना आईएसआई मार्क के होते हैं। यह भी एक अपराध है।

लोग शिकायत कर-कर थक गए लेकिन बिजली के मीटरों की गति नही हुई कम।

पहले 2 माह में जो बिल आता था, अब उतना ही बिल 1 माह में आता है।

निजीकरण की वजह से दिल्ली के उपभोक्ता ज्यादा बिल भरने को मजबूर हैं।

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