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प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भाजपा पर इतिहास भूगोल बिगाड़ने का आरोप लगाया। उनका इशारा नरेन्द्र मोदी की तरफ था। नरेन्द्र मोदी ने तथ्यों सहित कांग्रेस पर पलटवार किया और इतिहास भूगोल बिगाड़ने के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। इतिहास बीते समय का सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दर्पण है। देश का भूगोल भूखण्ड विशेष के प्रति हमारी प्रीति है। भूगोल का भी इतिहास होता है। हरेक देश के इतिहास का भी भूगोल होता है। हमारे पूर्वजों ने पृथ्वी को मां माना था। इस अनुभूति का एक इतिहास है। इतिहास के विशेष कालखण्ड में घटित इस अनुभूति का भूगोल समूची पृथ्वी है। भारत की नदियां, पर्वत, वन, उपवन भूगोल का भाग हैं। पूर्वजों ने नदियों, पर्वतों, वनों उपवनों को भी अपनी गहन प्रीति में संजोया था और काव्य, कथा रचकर इन्हें भी श्रुति, स्मृति और इतिहास का भाग बनाया है। भारतीय इतिहास प्रेरक है।
इतिहास अमर तथ्य है। मनुष्य लड़ते हैं, सत्ता संघर्ष होते हैं। प्रकृति नित्य नए रूप धारण करती है। लेकिन इतिहास वर्षा, बसंत या हेमंत के झांसे में नहीं आता वह विजित और विजेता में भेद नहीं करता। वह अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक में फर्क नहीं करता। वह तटस्थ रहता है। वह काल गति का अभिलेख बनाता है, निष्पक्ष द्रष्टा की तरह है। भारतीय इतिहास परम्परा ऐसी ही है। महात्मा गांधी ने ह्यहिन्द स्वराजह्ण में यूरोपीय इतिहास को कोलाहल कहा है। प्राचीन भारतीय इतिहास बोध की अपनी विशेषता है। अलबेरूनी को यह शैली कम जंची। उसके अनुसार हिन्दू इतिहस तथ्यों के संचलन में कमजोर रहे हैं। दरअसल भारत में अपने ढंग का विशेष राष्ट्रजीवन था, तर्क प्रतितर्क थे। वाद विवाद संवाद थे ही। शास्त्रार्थ गोष्ठियां थीं। इतिहास संजोने का भी अपना अलग अंदाज था। भारत ने अतीत के तथ्यों को काव्य बनाया, श्रुति और स्मृति में ढाला। इतिहास के उपासकों ने अनुकरणीय को स्मरणीय बनाया। यूरोपीय इतिहास क्रमबद्घ कहा जाता है। उसे विद्वान ही याद कर सकते हैं लेकिन प्राचीन भारतीय इतिहास के नायक भारत के गांव-गांव से परिचित हैं। राम, कृष्ण काव्य में हैं, वे इतिहास भी हैं। राजा हरिश्चन्द्र गांव-गांव गाए जाते हैं और दयानंद, विवेकानंद, गांधी, पटेल भी। इतिहास संजोने के इस निराले अंदाज में भूगोल का स्मरण भी कम नहीं। रामेश्वरम् दक्षिण में, कोलकाता की काली प. बंगाल में लेकिन उत्तर भारत के गांव रामेश्वर प्रसाद और काली प्रसाद हैं। गंगा, यमुना, सरस्वती भी भुलाए नहीं भूलती – गंगा प्रसाद, गंगा विष्णु, यमुना प्रसाद या सरस्वती चन्द्र जैसे नाम भी गांव-गांव हैं।
भारत प्राचीन राष्ट्र है। कुछेक विद्वान राष्ट्र निर्माण का श्रेय अंग्रेजी राज को देते हैं तो कांग्रेसजन राष्ट्र निर्माण का श्रेय स्वयं लेते हैं। इतिहास भूगोल के प्रति गहन अनुराग से ही राष्ट्र बनते हैं। ह्यवंदेमातरम्ह्ण में भूगोल के प्रति मां जैसी श्रद्घा है। भारतीय संस्कृति इतिहास का ही अनुकरणीय प्रवाह है। अपनी-अपनी इतिहास दृष्टि है और भूगोल जानने जांचने के अपने आग्रह। ऋग्वेद में प्राचीन इतिहास का रोमांचक वर्णन है। बताते हैं देवों के भी बहुत पहले असत् (अप्रकट) से सत् (व्यक्त) का उद्भव हुआ। (ऋ. 10़.72.़2) यूरोपीय विद्वान राजसत्ता के क्रम में इतिहस बताते हैं, वामपंथी मित्र उत्पादन के साधनों के विवरण में इतिहास जांचते हैं। वैदिक दृष्टि साहसी है। वह देवतंत्र के जन्म और विकास के भी पहले के इतिहास का विवरण देती है। यास्क ने वेद समझने के लिए ह्यनिरुक्तह्ण लिखा। सचेत किया है कि वेदों का सही अर्थ समझने के लिए इतिहास बोध जरूरी है। छान्दोग्य उपनिषद् में इतिहास को पांचवां वेद कहा गया है। वैदिक ऋषियों में गजब का इतिहास बोध था। ऋग्वेद में पूर्वजों के कृत्यों की प्रशंसा व नमस्कार के मंत्र हैं। अथर्ववेद (15वां अध्याय) में ह्यव्रात्यह्ण का उल्लेख है कि व्रात्य ने तमाम उन्नति की तो इतिहास और पुराण उसके साथ चले।
ऋग्वेद में ह्यपांच जनह्ण का उल्लेख अनेक बार हुआ है। इनके अलावा भी गण और जन हैं। इस समाज की एक आनंदमगन जीवनशैली है। इनका एक सुनिश्चित इतिहास है और एक सुनिश्चित भूगोल भी। सरस्वती ऋग्वेद के ऋषियों की प्रियतम नदी है। ऋषि उसे नदीतमा कहते हैं। यहां सिंधु नदी के गीत भी हैं। डा. सत्यकेतु विद्यालंकार ने ह्यप्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युगह्ण (पृष्ठ 137) में लिखा है ऋग्वेद में नदियों, पर्वतों, जनों (कबीलों) और राज्यांे के जो नाम आए हैं, उन्हें दृष्टि में रखकर यह सुगमता से निर्धारित किया जा सकता है कि इस अत्यन्त प्राचीन काल में भारत में आयोंर् का प्रसार किन प्रदेशों में हुआ था। अलिन, पक्थ, भलानस और विषाणी जनों का निवास अफगानिस्तान और पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी प्रान्त में था, जहां उनके वंशज पक्थून लोग अब भी निवास करते हैं। गन्धारी जन सिन्ध नदी के पश्चिम में बसा हुआ था, और शिव या शिवि जन सिन्ध के पूर्व में। यदु, अनु, तुर्वश और दु्रह्यु जन शुतुद्रि (सतलुज) के पश्चिम में पंजाब के प्रदेश में बसे हुए थे, और सरस्वती तथा उसकी सहायक दृषद्वती, अपाया आदि नदियों के क्षेत्र में पुरुष, भरत, त्रित्सु और संृजय जनों का निवास था।
भारतीय राष्ट्र राज्य के भूगोल का चेहरा अब वैसा नहीं है। पर इतिहास क्यों बिगाड़ा जाए? मार्क्सवादी चिन्तक डा. रामविलास शर्मा का इतिहासबोध अनूठा है। उन्होंने भारत को प्राचीन काल से सबसे बड़ा राष्ट्र बताया है। उन्होंने ह्यभारतीय नवजागरण और यूरोपह्ण (पृष्ठ 87-88) में लिखा है ह्यजिस देश में ऋग्वेद की सात नदियां बहती हैं, वह लगभग वही देश है जिस में जल-प्रलय के बाद, भरत जन के विस्थापित होने के बाद, हड़प्पा सभ्यता का विकास हुआ। यह देश प्राचीन काल का, ऋग्वेद और हड़प्पा के पश्चात काल का भी, बहुत दिनों तक संसार का सबसे बड़ा राष्ट्र था। सरस्वती इसके जनपदों के पारस्परिक संपर्क का बहुत बड़ा साधन थी। हड़प्पा नगरों की राष्ट्रीय एकता उनकी सामान्य वास्तुकला, मुद्राओं आदि की समानता से जानी जाती है। इस राष्ट्रीय एकता की नींव ऋग्वेद के कवियों ने डाली थी। इन कवियों के लिए राष्ट्र केवल भूमि नहीं है, उस पर बसने वाले जन राष्ट्र हैं।ह्ण डा. शर्मा ने मैक्डनल और कीथ को भी उद्धृत किया है। यहां एक सुनिश्चित भू-खण्ड है और एक इतिहास व संस्कृति। हम लोग राष्ट्ररूप में ऋग्वेद में भी हैं। ऋग्वेद में विश्वासमित्र के सूत्रों को भरतजनों का संरक्षक बताया गया है। इतिहास और भूगोल के प्रति श्रद्घा से ही राष्ट्रभाव खिलते हैं। यही ह्यभू-सांस्कृतिकह्ण प्रीति है।
कुछेक विद्वान भारत नाम की इस भौगोलिक सांस्कृतिक इकाई को एक जीवमान सत्ता नहीं देखते। वे इस व्यापक भूगोल के भीतर अनेक इकाइयां देखते हैं। वे उनका अलग इतिहास भी पेश करते हैं। वे भारत के भीतर अनेक राष्ट्र भी देखते हैं। इतिहास की सबालर्टन धारा उपसमूहों का इतिहास देखती है। जनतंत्र में सभी दृष्टियों का आदर होना चाहिए। लेकिन मूलभूत प्रश्न है कि तब ऋग्वेद से लेकर आधुनिक काल तक विस्तृत भारत नाम के राष्ट्र का क्या होगा? संविधान की उद्देशिका में हम भारत के लोगो ने इसी राष्ट्र-राज्य के बहुआयामी संवर्द्घन के प्रति स्वयं को आत्मार्पित किया है। इस आत्मार्पण का क्या होगा? प्रधानमंत्री जी मनमोहन हैं। वे विद्वान अर्थशास्त्री हैं। उन्होंने इतिहास का पुनर्पाठ किया, भूगोल की ओर भी उनकी निष्काम दृष्टि गयी। कम से कम भारत के पूर्वज आयोंर् को विदेशी बताने वाले आत्म अपमानकारी गलत तथ्य वाले इतिहास के हिस्से ही हटवा देते।
भारत का इतिहास गौरवशाली है। यह विन्सेन्ट स्मिथ के तथ्यों के आलोक में नहीं जाना जा सकता और न ही डा. पट्टाभिरम्मैया लिखित कांग्रेस के इतिहास से। भारत के इतिहास भूगोल का वास्तविक स्मरण रोमांचकारी है। हम संस्कृति प्रेमी हरेक मंगलमुहूर्त में जम्बू द्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्ते गाकर भूगोल का और मन्वतर युग, संवत्सर गोत्र पूर्वज गाकर उसी का पुण्याहवाचन करते हैं।
आप कहोगे कि यह साम्प्रदायिकता है इतिहास भूगोल नहीं। तो कहा करो। फर्क क्या पड़ता है? हृदयनारायण दीक्षित
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