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अरबी भाषा मंे ईद शब्द का अर्थ होता है प्रसन्नता अथवा खुशी। मानव समाज में धार्मिक,सामाजिक और राष्ट्रीय आधार पर ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब उनके अनुयाई खुशियां मनाते हैंं। सामान्य भाषा में इसे त्योहार की संज्ञा दी जाती है। विशेष अवसर होने पर समाज का कोई विशेष वर्ग अथवा तो सम्पूर्ण राष्ट्र उसे त्योहार के रूप में मनाता है। भारत की बात करंे तो दीपावली, होली, दशहरा, और राखी के त्योहार धूम-धाम से मनाए जाते हैंं। मुस्लिम बंधु ईद और ईसाई समाज क्रिसमस के अवसर पर अपना आनंद व्यक्त करते हैं। हम भारतवासी तो15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हं। धार्मिक त्योहार किसी विशेष घटना और अवसर के साथ जुड़े होते हैं। उक्त अवसर खुशी के साथ दुख: का भी हो सकता है। मोहर्रम मुस्लिम बन्धुओं के लिये इसी प्रकार का शोकाकुल त्योहार है। इमाम हुसैन की शहादत के रूप में दशमी मोहर्रम को सम्पूर्ण मुस्लिम जगत शोक में डूब जाता है। इस्लाम के अंतर्गत मनाए जाने वाले त्योहार को ईद की संज्ञा दी जाती है। जिसका का अर्थ सामान्य भाषा में होता है खुशी । उदाहरण के लिये रमजान की समाप्ति पर जो ईद मनाई जाती है उसे ईदुल फितर कहते हैं। रोजे के साथ दान-दक्षिणा का भी महत्व है इसलिए फितरे के रूप में ईद की नमाज के पूर्व असहाय वर्ग को जो सहायता की जाती है उसे फितरा कहा जाता है। पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिवस को ईदे मीलादुन्नबी की संज्ञा दी गई है। इसी प्रकार हज यात्रा सम्पन्न होने पर इस्लामी जगत जो त्योहार मनाता है उसे ईदुल अजहा कहा जाता है। इस्लाम में 5 अनिवार्य तत्व हैं। इन में नमाज, रोजा (रमजान के उपवास)जकात (दान दक्षिणा)हज एव जिहाद (मजहबी युद्ध) । एक सच्चा और अच्छा मुस्लिम जीवन भर इन आदर्शों का पालन करने का भरपूर प्रयास करता है। हज यात्रा चंूकि सऊदी अरब के नगर मक्का में आयोजित की जाती है इसलिए दुनिया के कोने-कोन से वहां मुस्लिम पहंुचते हैं और अपना यह मजहबी दायित्व पूर्ण करते हैंं। हज यात्रा पूर्ण कर लेने के पश्चात शरीयत में जिन पशुओं की कुरबानी देने का आदेश है उसे पूर्ण किया जाता है। इन में सामान्यत: बकरे और भेड़ का उपयोग किया जाता है। गाय,बैल और ऊंट भी कुरबानी के लिये काम में लाए जाते हैं। ऊंट अरबस्तान का उपयोगी पशु है। इस के साथ ही उसका आकार भी बड़ा होता है इसलिए कुरबानी के स्थल तक उसे पहुंचाना कठिन होता है। इसके लिए कुरबानी की जाने वाले पशुओं में उस की संख्या अत्यंत कम होती है। जहां तक गाय और बैल का सवाल है वे केवल कृषि प्रधान देश में ही उपलब्ध होते हंै। इसलिएं अन्य स्थानों पर उसकी संख्या नहीं ंके बराबर होती है।
दुनिया के हर देश में हज यात्रा से जुड़ी इस ईद को ईदुल अजहा ही कहा जाता है। लेकिन भारत में इसे बकरी ईद कहते हैें। मुस्लिम संस्थाएं और उनके प्रकाशन विभाग इस ईद का जहां भी विवरण देते हैं उसे ईदुल अजहा ही कहा जाता है। लेकिन हमारे अंग्रेजी कैलेण्डरों में इसे बकरी ईद लिखा जाता है। अंग्रेजी का यह प्रभाव अन्य भारतीय भाषाओं पर दिखाई पड़ता है। इस का परिणाम यह हुआ कि हज से सम्बंधित ईद बकरी अथवा बकरा ईद बन गई। भारतीयों की इस सहजता और सरलता का लाभ कट्टरवादियों ने पूरा उठाया। बकरे और बकरी की आड़ में गाय को प्रचलित कर दिया गया, क्योंकि अरबी में गाय को बकर कहा जाता है। इस प्रकार बड़ी सरलता से अरबी शब्द बकर का उपयोग धड़ल्ले से प्रारम्भ हो गया। अरबी के मौलानाओं एवं मजहबी नेताआंे ने इस बात का कभी खंडन नहीं किया कि वे गाय को बकरा समझ कर उसका उपयोग न करें। आगे चल कर तो यह शब्द गाय काटने के लिए लाइसंेस बन गया। यद्यपि अनेक समझदार मौलाना इस के गलत अर्थ पर अपने विचार भी व्यक्त करते रहे। यही कारण था कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को इस सम्बंध में अपना आदेश प्रसारित करना पड़ा कि वे गाय की कुरबानी ईद के अवसर पर कदापि न करें। गाय का भारतीय संस्कृति में एक विशेष महत्व है। उसे माता मान कर पूजा जाता है। यही नहीं गाय और बैल कृषि के क्षेत्र में उपयोगी होने के कारण उन का स्थान अत्यंत महत्व का है साथ ही वह धार्मिक रूप से पवित्र भी है। इसलिए गाय का काटा जाना राष्ट्रीय एकता के लिए बड़ा खतरा है। इस बार 16 अक्तूबर को मनाई गई इस ईद के निमित्त जमीअतुल ओलेमा के नेता मदनी ने मुसलमानों से अपने फतवे के द्वारा विशेष रूप से आग्रह किया कि ईदुल अजहा के अवसर पर गाय, बैल ,बछडे़ की कुरबानी न करें। उपयोग करने से पहले इस बात पर विचार कर लें कि कुरान में उल्लेख किए गए शब्द के उपयोग अनुसार तो वे गाय को काटने का निर्णय तो नहीं ले रहे हैं। गाय (बकर) को भारतीय भाषा का बकरा मान कर तो कहीं अपना मजहबी दायित्व निभाने के लिए नहीं जा रहे हैं ?
अरबी भाषा की गाय भारतीय बकरा अथवा तो बकरी नहीं है इसलिए बकरी ईद शब्द का उपयोग करना एक बहुत बड़े भ्रम को पालना है। गो हत्या की बंदी के लिए इन अलग-अलग भाषाओं में बकर शब्द का अर्थ जान लेना आवश्यक है। बकर शब्द का अर्थ गाय है इसलिएं बकरा अथवा बकरी ईद न लिख कर ईदुल अजहा शब्द लिखा जाना अनिवार्य कर दिया जाए। बकर का अर्थ गाय है इसलिए जाने अनजाने में गो की हत्या न हो जाए, यह सुनिश्चित करना अत्यंत अनिवार्य है। भारत सरकार को चाहिए कि बकर शब्द को प्रतिबंधित कर के उस के स्थान पर ईदुल अजहा लिखा जाना चाहिए। भारत में मुस्लिमों की बहुत बड़ी संख्या ईदुल फितर को मीठी ईद कहती है। क्योंकि उस दिन मीठी सिवैया बनाई जाती हैंं। उस के बावजूद हमारे कैलेण्डरों में और रमजान की समाप्ति पर आने वाली ईद को ईदुल फितर ही कहा जाता है। भ्रम पैदा न हो इस के लिए ईदुल अजहा शब्द का उपयोग करेंगे तो हजारों गो माता को बचाया जा सकेगा । जो संस्थाएं भारत में फतवा जारी करती हंै अेोेर जिन मदरसों में अरबी पढ़ाई जाती है उन्हें सामान्य जनता को यह बताना चाहिए यह ईदुल अजहा है। हत्या तो किसी भी पशु की नहीं होनी चाहिए लेकिनउस बकर की तो बिलकुल भी नहीं जिस का अर्थ बकरे बकरी से नहीं है, बल्कि पवित्र गाय से लगा दिया गया है। कुरबानी में गाय वध का सबसे अधिक रिवाज भारतीय उपखंड में ही है। हज यात्रा सहित अन्य देश जहां मुस्लिम बड़ी संख्या में रहते हैं वहां गाय का वध नहीं किया जाता है। इसलिए भारत में भी सूफी सन्तों ने इस के वध का विरोध किया है। कुरबानी करने वाले भले ही यह कहें कि वे तो बैल अथवा बछड़े का उपयोग करते हैं लेकिन यह भी कृषि प्रधान देश के लिए एक बड़ी विडम्बना है। धार्मिक,आर्थिक,सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से इसे कभी भी उचित नहीं कहा गया है। यदि कोई कुरबानी करना ही चाहता है तो कुरबानी के योग्य बताए गए अन्य पशुओं का विकल्प खुला है जिसके द्वारा वह अपनी मन की मुराद पूरी कर सकता है। भारत मेंे सूफी सन्त तो शाकाहार के पक्ष में रहे हैं। बिना किसी रोक टोक के उन्होंने मुस्लिम होने के उपरांत भी इसका कड़ा विरोध किया है। -मुजफ्फर हुसैन
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