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हिन्दी की चर्चित ब्लॉगर आकांक्षा यादव ने हाल ही में लिखा, कभी प्याज काटने पर आंखों में आंसू आ जाते थे, पर अब प्याज की महंगाई लोगों की आंखों में आंसू ला रही है। कभी गरीब आदमी तेल-प्याज-नमक के साथ रोटी खाकर अपनी भूख मिटा लिया करता था, पर अब तो लगता है प्याज ह्यस्टेटससिम्बलह्ण बन गया है। ये पंक्तियां और विचार अपने आप में बहुत कुछ कहते हैं। दरअसल महंगाई की मार सारा देश झेल रहा है। लम्बे समय से महंगाई डायन आम इंसान को नोंच-नोंच कर खा रही है। पर अब महंगाई की मार सिर के ऊपर से गुजरने लगी है। जीना हराम हो रहा है।
पहले महंगाई की मार गरीब-गुरबा ही झेलता था पर अब इसके शिकंजे में अब अमीर भी है। उनका भी जीना दुश्वार हो रहा है।
उद्योग संगठन ह्णपीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीह्ण ने एक रपट में कहा है कि हालिया त्योहारी सीजन में महंगाई की मार आम लोगों की बजाय धनी लोगों पर अधिक देखने को मिली,क्योंकि उनके इस्तेमाल वाले उत्पादों के दाम अधिक बढ़े हैं। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के कार्यकारी निदेशक सौरभ सान्याल ने कहा, थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर कीमतों में वृद्घि का असर धनी वर्ग पर अधिक लगभग 9़3 प्रतिशत आंका गया, जबकि गरीब वर्ग के लिए यह लगभग 8़4 प्रतिशत रहा। बहुत साफ है कि महंगाई से आम-खास दोनो बेहाल हैं।
अगर रोज नहीं, तो आपको हर दूसरे दिन पेट्रोल,डीजल,सीएनजी से लेकर सब्जियों-दालों आदि के दामों में इजाफा की खबरें अखबारों में पढ़ने को मिलती हैं। जिस दिन दाम में बढ़ोत्तरी संबंधी खबर नहीं होती,उस दिन कोई न कोई बैंक अपने आटो-होम लोन को महंगा करने का एलान करता है। यानी महंगाई के कारण सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। दिल्ली स्कूल ऑफ इक्नोमिक्स में पढ़ा रहे प्रो़ राम सिंह कहते हैं कि अब सरकार को महंगाई पर काबू पाने के लिए रणनीति बनानी ही होगी। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से बात नहीं बनेगी। अन्यथा उसे विपक्षी दलों और जनता के गुस्से को झेलना होगा। उस पर वार होते रहेंगे,अगर वह इस मोर्चे पर नाकामयाब रहती है।
बेशक, महंगाई के चलते स्थिति विकट होती जा रही है। ये बात समझ से परे है कि आखिर सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए कौन से उपाय कर रही है। जाहिर तौर पर अगर कोई उपाय करती तो उसका असर दिखता। अफसोस है कि हमें ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है।
इस बीच,किरीट पारेख समिति ने अपनी सिफारिशें सरकार को भेज दी है। इसमें एक सुझाव यह भी है कि डीजल के दाम में 5 रुपये प्रति लीटर की तत्काल बढ़ोतरी होनी चाहिए। समिति का मानना है कि छूट बाले रसोई गैस सिलेंडरों के कोटे को मौजूदा 9 से घटाकर 6 सिलेंडर प्रति परिवार किया जाए। हालांकि पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव हो रहे हैं, इसलिए पारेख समिति की रपट की सिफारिशों को लागू होने में कुछ वक्त लग सकता है। पर, माना जा रहा है कि 8 दिसंबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद तो उपर्युक्त सिफारिशों को लागू कर ही दिया जाएगा। मतलब कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी। जरा सोचिए कि किरीट पारेख समित की सिफारिशों के लागू होने के बाद हालात कितने बदत्तर हो जाएंगे ?
अब बात खाद्य मुद्रास्फीति की। ये भी सरकार और उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द साबित हो रही है। इससे पार पाना भी बड़ी चुनौती हो गयी है। के्रडिट रेटिंग एजेंसी ह्यमूडीजह्ण ने अपनी एक हालिया रपट में कहा कि भारत में खाद्य पदाथोंर् के दाम बाकी देशों की तुलना में ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने भविष्यवाणी की थी कि महाराष्ट्र में सूखे के चलते दालों और सब्जियों का उत्पादन घटेगा। उत्पादन घटेगा, मांग बढ़ेगी तो महंगाई तो बढ़ेगी ही। खेती की बढ़ती लागत और आपूर्ति के मोर्चे पर आने वाली चुनौतियों के चलते खाद्य मुद्रास्फीति से जनता त्रस्त ही रहेगी। प्याज की महाराष्ट्र से कम आवक से पूरा देश प्याज के आसमान छूते दामों के कारण त्राहि-त्राहि कर रहा है। इसमें यह बताना प्रासंगिक होगा कि पिछले साल सरकार ने महाराष्ट्र में प्याज के दामों में अप्रत्याशित इजाफे के चलते जांच के आदेश दिए थे। विगत मार्च में प्याज की कीमतें 95 फीसद बढ़ीं। ये अन्य किसी भी खाद्य पदार्थों की कीमतों से अधिक हैं।
केंद्र सरकार ने माना है कि जमाखोरों की वजह से प्याज के दाम बढ़ रहे हैं। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि देश में प्याज का काफी भंडार है। जमाखोरी के कारण प्याज की कृत्रिम रूप से कमी हो गई है। राज्य सरकारें ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। बस,उन्होंने बयान देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। क्या देश वाणिज्य मंत्री से यही उम्मीद करे ?
आनंद शर्मा ने कहा कि जरुरत पड़ी, तो हम प्याज का आयात करेंगे। वहीं, केंद्रीय खाद्य मंत्री के़वी थामस ने कहा कि मिस्र, चीन और पाकिस्तान से प्याज के आयात पर विचार हो रहा है। कृषि मंत्री शरद पवार ने नेफेड को संभावनाएं तलाशने को कहा है। कुल मिलाकर तीन मंत्रियों ने अलग-अलग तरह के बयान दे डाले। पर प्याज के दाम घटे नहीं।
अब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की भी सुन लीजिए। उन्होंने कहा कि प्याज की स्थिति पर उनकी अधिकारियों से बात हुईं है। जैसे ही राजस्थान से प्याज आना शुरू होगा तो इसके दाम नियंत्रण में आ जाएंगे। बेमौसम बरसात ने भी आपूर्ति को रोक रखा है। उन्होंने कहा कि प्याज के दाम जमाखोरी के कारण भी बढ़े हैं। हम जमाखोरों से अपील करते हैं कि वे ऐसा नहीं करें। अब आप खुद ही अंदाजा लगा लें कि मुख्यमंत्री किस तरह से जमाखोरों के आगे गिड़गिड़ा रही हंै।
बहरहाल, अब प्याज के बाद महंगा होने की बारी आलू की है। आलू का भंडार तो पिछले साल की तुलना में ज्यादा है लेकिन नई फसल की आवक में देरी और बाहर आलू भेजने पर पश्चिम बंगाल की पाबंदी से दाम बेकाबू हो गए हैं। बंगाल आलू पैदा करने वाला सबसे बड़ा राज्य है। खुदरा बाजार में आलू 30 से 40 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रहा है, जबकि पिछले साल का करीब 10 से 12 फीसदी आलू अभी भी कोल्डस्टोरेज से नहीं निकला है। इस साल बारिश के चलते खरीफ की बुवाई में देरी हुई, जिससे पंजाब से नई फसल का आलू मंडियों में देर से पहुंच रहा है। प़ बंगाल सरकार ने कीमतें बढ़ने की आशंका में राज्य से आलू बाहर भेजने पर पाबंदी लगा दी है। इससे कर्नाटक, ओडिशा, असम समेत यूपी और दिल्ली में आलू की मांग बढ़ने से भाव बढ़ गए हैं।
एक बार फिर से पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की रपट के निष्कर्ष पर बात करेंगे। रपट के अनुसार, धनी परिवारों द्वारा खपत किए जाने वाले सामान की औसत मुद्रास्फीति 9़3 प्रतिशत रही है। इन वस्तुओं में फल, दाल, काजू, सिगरेट, मोटरवाहन, परफ्यूम तथा एलपीजी शामिल हैं।
वहीं आम लोगों के काम आने वाले प्रमुख उत्पादों – चावल, आलू, चारा, बीड़ी, साइकिल, केरोसीन आदि की मुद्रास्फीति 8़4 प्रतिशत रही। एक बात बहुत साफ है कि अब सरकार को महंगाई को कम करना होगा। आपूर्ति संबंधी बाधाओं को हटाकर ही देश में मुद्रास्फीति यानी महंगाई पर काबू पाया जा सकता है। सरकार से देश उम्मीद कर रहा है कि वह इस लिहाज से और विलंब नहीं करेगी। पाञ्चजन्य ब्यूरो
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