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सत्ता के दुरुपयोग में 2जी घोटाले को अमरीका की प्रतिष्ठित पत्रिका ह्यटाइमह्ण ने दूसरे स्थान पर रखा है। पहला स्थान मिला अमरीका में हुए वाटरगेट घोटाले को। वाटरगेट घोटाले के चलते अमरीका में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को अपना पद छोड़ना पड़ा था। पर हम तो बात भारत की करेंगे। यहां पर बड़े से बड़े घोटाले के बाद भी सत्ता पर काबिज शक्तिशाली लोगों का कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता। अब 2 जी घोटाले को ही ले लें। इस पर पर्दा डालने या कहें कि शक्तिशाली लोगों को बचाने का सिलसिला जारी है। इसके बावजूद संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से कहीं न कहीं उम्मीद थी कि जिस घोटाले के कारण देश को 1़ 76 लाख करोड़ रु. का घाटा हुआ उसका पर्दाफाश हो जाएगा। पर,जेपीसी ने इस बार भी सत्तासीन दल के लिए घोटाले को दफन करने के औजार का काम किया। यानी जो बोफर्स घोटाले (1987) और हर्षद मेहता शेयर बाजार घोटाले(1992) में हुआ वही 2जी घोटाले में भी हो रहा है। यानी पर्दा डालो घोटाले पर, दूसरे घोटाले के लिए तैयार हो जाओ।
जेपीसी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी़ चिदंबरम को 2जी मुद्दे पर क्लीन चिट दे दी, जबकि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए़ राजा को आरोपी ठहराया। ए. राजा पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को गुमराह किया।
कहने को 2जी घोटाला मामले की जांच करने वाली जेपीसी ने बहुमत से अपनी रिपोर्ट को मंजूरी दी। इसने भारत के तत्कालीन नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) विनोद राय के आकलन का भी खंडन किया गया है कि लाइसेंस देने की प्रक्रिया में सरकारी खजाने को 1़ 76 लाख करोड़ रुपये का चूना लगा। सरकार 2 जी घोटाले पर बनी संयुक्त संसदीय समिति में अपनी बात मनवा ले गयी।
पर,जेपीसी में विपक्ष की लाख चाहत और मांग के बाद भी जेपीसी ने प्रधानमंत्री को जेपीसी की बैठक में नहीं बुलाया ताकि उनसे घोटाले के संबंध में पूछताछ हो पाती। ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसे संसदीय समिति तलब नहीं कर सकती है। अगर अमरीका में बिल क्लिंटन को संसदीय समिति तलब कर सकती है और यदि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पैनल के समक्ष उपस्थित हो सकते हैं तो हमारे देश में सरकार की अगुआई करने वाले को अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए संसदीय समिति द्वारा आमंत्रित करने में क्या गलत है? अगर 2जी मसले पर मनमोहन सिंह जेपीसी के समक्ष उपस्थित होते तो उनका कद छोटा नहीं हो जाता। पर,अफसोस कि वे देशहित में भी जेपीसी का सामना करने के लिए तैयार नहीं हुए। जेपीसी में विपक्षी सदस्य चाहते थे कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को जेपीसी के समक्ष बुलाया जाना चाहिए, लेकिन जेपीसी अध्यक्ष इसके लिए तैयार नहीं हुए। खुद ए़ राजा ने जेपीसी में आने की पेशकश की लेकिन उन्हें भी नहीं बुलाया गया।
भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा,ह्यआपकी ही कैबिनेट के पूर्व सदस्य (राजा) ने आपके रुख को पूरी तरह खारिज कर दिया है। श्रीमान प्रधानमंत्री जी, क्या समय नहीं आ गया है कि आप जेपीसी के समक्ष पेश होकर इन मुद्दों पर अपनी बात रखें? आपकी खामोशी भारत की जनता की इस सबसे बुरी आशंका की पुष्टि कर देगी कि आप 2जी घोटाले में पूरी तरह शामिल थे और अगर राजा दोषी हैं तो आप भी दोषी हैं।ह्ण सिन्हा ने जेपीसी अध्यक्ष पी.सी.चाको को लिखे पत्र में पैरा दर पैरा दावा किया है कि 2जी आवंटन को लेकर वह जो कुछ भी कर रहे थे उसके बारे में प्रधानमंत्री को जुबानी या लिखित रूप से सूचित करते रहे थे। उन्होंने कहा कि राजा ने जेपीसी की मसौदा रिपोर्ट के इस सिद्घांत को भी खारिज कर दिया है कि उन्होंने (राजा) आपको गुमराह किया। पत्र में सिन्हा ने प्रधानमंत्री के उस बयान को उद्घृत किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। इस पर उन्होंने कहा कि अगर वह जेपीसी के समक्ष पेश होने से झिझकते हैं तो इसका अर्थ यही निकाला जाएगा कि वह कुछ छिपा रहे हैं।
खुद राजा ने भी जेपीसी से आग्रह किया था कि उन्हें गवाही के लिए बुलाया जाए। लेकिन कांग्रेस सदस्य इसके पक्ष में नहीं थे। वे जानते थे कि अगर राजा जेपीसी में जाते तो प्रधानमंत्री फंसते। प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री तथा उसके बाद ए़ राजा की गवाही पर समिति के अंदर काफी तीखी नोंंकझोंक होती रही। कई बार विपक्षी सदस्य उठकर चले गए। राजा को न बुलाए जाने के बाद उन्होंने अपना पक्ष जेपीसी को डाक से भेजा और फिर उसे सार्वजनिक कर दिया। इसमें प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम तथा तत्कालीन विदेश मंत्री और मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी लपेटे में लिया। संभवत: कांग्रेसी सदस्यों की सोच थी कि अगर राजा का बयान संसदीय समिति की रिपोर्ट का हिस्सा बन जाएगा तो प्रधानमंत्री को पाक-साफ घोषित करना मुश्किल होगा। राजा के बयान में तिथियों और दस्तावेजों के साथ यह स्थापित करने की मजबूत कोशिश की गई कि सरकार के प्रमुख लोगों को 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन के सभी फैसलों की पूरी जानकारी थी। जबकि सरकार न्यायालय में शपथ पत्र देकर यह कह चुकी है कि प्रधानमंत्री को कुछ भी पता नहीं था। अपने बयान में राजा ने बताया कि कब-कब और किस-किस मौके पर उन्होंने प्रधानमंत्री को अपने फैसलों की जानकारी दी और मंजूरी ली।
जेपीसी द्वारा राजा को न बुलाए जाने का कोई आधार स्वीकार्य नहीं हो सकता है। यह वाकई आश्चर्य में डालने वाली बात है कि जेपीसी ने पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्घार्थ बेहुरा से तो पूछताछ की, जिन्होंने टू जी लाइसेंस जारी करने का सारा दोष राजा के सिर मढ़ दिया, लेकिन राजा से पूछताछ की जरूरत नहीं समझी गई।
2जी घोटाले से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी नुकसान पहुंचा है। जिस समिति की मांग को लेकर संसद के लगभग तीन सत्र बरबाद हुए, उसकी रिपोर्ट इतनी कमजोर आएगी, यह नहीं सोचा था। रिपोर्ट को भाजपा द्वारा झूठ का पुलिंदा बताते हुए खारिज करने तथा माकपा, भाकपा, द्रमुक, अन्नाद्रमुक और बीजद के द्वारा असहमति का नोट सौंपने के बाद इसके स्वीकार होने की कोई संभावना नहीं बची है। और जब रिपोर्ट स्वीकार ही नहीं होगी तो फिर कार्रवाई कहां से होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो जिसे देश का पहला सबसे बड़ा घोटाला कहा गया, उसकी ईमानदारी से छानबीन, दोषियों को कठोरता से चिह्नित करने और कार्रवाई करने में देश विफल हुआ है।
एक लिहाज से कहा जा सकता है कि सरकार अपने मंसूबों में सफल रही। वह तो जेपीसी के गठन के लिए तैयार नहीं थी। उसका तर्क था कि जब सर्वोच्च न्य्यालय की देखरेख में सीबीआई इसकी जांच कर रही है तो फिर जेपीसी की जरूरत क्या है? लेकिन जब विपक्ष ने संसद के तीन संसद सत्र नहीं चलने दिए तो हारकर सरकार ने इसके गठन का ऐलान किया। जाहिर है, बेमन से किए गए गठन के बाद प्रमुख सत्ताधारी दल की कभी ऐसी नीयत नहीं रही कि जेपीसी 2 जी घोटाले की सच्चाई सामने लाए। बोफर्स के बाद यह दूसरी जेपीसी है, जिसका मजाक बनाया गया है। सरकार ने खोटी नीयत से यह रिपोर्ट बनाई है और इसमें जेपीसी सचिवालय की कम और पीएमओ, वित्त और संचार मंत्रालयों की भूमिका ज्यादा है। यही वजह है कि भाषा की मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखा गया। कायदे से कांग्रेस के शहजादे राहुल गांधी को अगर कुछ फाड़कर फेंकना ही है तो वे इस रिपोर्ट को फाड़कर फेंकते।
बहरहाल, 2जी घोटाले की जांच के लिए बनी जेपीसी की रिपोर्ट एक धोखा ही साबित हुई। इसे विरोधाभासी और तथ्यों से परे माना जा सकता है। परंतु इस लीपापोती से राजनीतिक प्रतिष्ठान ने अपनी गिरती साख को और धक्का दिया है। संदेश यही निकल रहा है कि नेता, नौकरशाह और थैलीशाह पहले भ्रष्टाचार करते हैं और फिर अपनी शक्ति से उसकी ईमानदार जांच भी नहीं होने देते। बेशक, संसदीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के बारे में ऐसी धारणा बनना खतरनाक है।
क्या है 2 जी घोटाला?
2जी घोटाला साल 2010 में प्रकाश में आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए। 2 जी घोटाला स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला है। सीएजीके मुताबिक, यह घोटाला 1़ 76 लाख करोड़ रुपये का है। इस घोटाले में विपक्ष के भारी विवाद के बाद संचार मंत्री ए राजा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर संचार मंत्री की नियुक्ति के लिए हुई लॉबिंग के संबंध में नीरा राडिया, पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों की बातचीत के बाद सरकार कठघरे में है।
2जी घोटाले में कंपनियों को नीलामी की बजाए ह्यपहले आओ और पहले पाओह्ण की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे, जिसमें, भारत के सीएजी के अनुसार, सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ था। आरोप था कि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर बेचे गए होते तो खजाने को कम से कम एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए और प्राप्त हो सकते थे।
आरोप
देश के घोटालों के लंबे इतिहास में सबसे बड़ा बताए जाने वाले इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय और तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस मामले में ए राजा के अलावा मुख्य जांच एजेंसी सी.बी.आई. ने सीधे-सीधे कई बड़ी हस्तियों और कंपनियों पर मुख्य आरोप लगाए हैं। पूर्व दूरसंचार मंत्री पर आरोप था कि उन्होंने साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया जिसमें उनकी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह दी गई। करीब 15 महीनों तक जेल में रहने के बाद ए राजा को हाल ही में जमानत दी गई। तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की बेटी कनिमोझी को भी इस मामले में जेल की सजा काटनी पड़ी थी और उन्हें बाद में जमानत मिली थी।
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