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दिल्ली/ महावीर एन्क्लेव
पश्चिमी दिल्ली के महावीर एन्क्लेव में स्व. कपिलदेव किशोर का संयुक्त परिवार रहता है। उनके छह पुत्र अपने बाल-बच्चों के साथ एक ही घर में रहते हैं। ये छह भाई हैं -श्री राजकिशोर,श्री बृजकिशोर,श्री नंदकिशोर,श्री श्याम किशोर,श्री रामकिशोर और श्री संदीप किशोर। इन छह भाइयों का सांझा चूल्हा है, सांझा सुख है,सांझा दु:ख है,सांझा सम्मान है,सांझी बोली है ,साझा मन है और साझा व्यवहार है।
सबसे बड़े भाई श्री राजकिशोर स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करते हैं, और मंझले भाई श्री बृज किशोर दिल्ली नगर निगम में सहायक अभियन्ता हैं। इनकी आयु 50 वर्ष है और यही परिवार के मुखिया हैं। शेष चार भाई निजी कम्पनियों में काम करते हैं। एक भाई का विवाह नहीं हुआ है, शेष सभी बाल-बच्चे वाले हैं।
परिवार के मुखिया बृज किशोर कहते हैं, ह्यपूर्वजों के संस्कार के कारण हम सभी भाई एक साथ रहते हैं,और हम सबकी इच्छा है कि यह साथ तब तक रहे जब तक कि हमारे परिवार में दूसरे घर की आवश्यकता महसूस न हो। कहने का अर्थ है कि जब हमारे परिवार के सदस्यों की संख्या इतनी बढ़ जाए कि सभी एक घर में नहीं रह सकते हैं तब सुविधा के लिए बिना कोई विवाद दूसरे घर में रहने के लिए जाएं। हमारे दादा जी भी चार भाई थे। उनका परिवार भी गांव में साथ ही रहता था। आज से 35 – 40 वर्ष पहले भी गांव क्या उस इलाके में हम लोगों का सबसे बड़ा घर था। जब हम लोग किसी छुट्टी में गांव जाते थे तो अपने दादा जी से पूछते थे कि इतना बड़ा घर हम लोगों का कैसे है तो वे कहते थे कि हम सभी चारों भाई एक साथ रहते हैं। साथ रहने से प्रगति अधिक होती है और समाज में अलग सम्मान भी रहता है। इसके अलावा सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा भी मिलती है। कोई भाई किसी काम से कहीं चला जाता है तो उसे अपने बाल-बच्चे की चिन्ता नहीं रहती है। उसे यह लगता है कि उसके पीछे एक बड़ा परिवार है, जो परिवार के हर सदस्य की चिन्ता करता है। इसके साथ ही किसी भाई को किसी बच्चे की पढ़ाई या विवाह के समय आर्थिक चिन्ता नहीं रहती है। उसे यह लगता है कि भाई मदद कर देंगे। पूर्वजों की यही सीख हम लोगों को अभी भी एक साथ बांधे हुए है।ह्ण
इस परिवार में छोटे-बड़े सब मिलाकर कुल 20 सदस्य हैं। इन भाइयों के पिता श्री कपिलदेव 1965 में बिहार के सिवान जिले के एक छोटे से गांव शेखपुरा से रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आए थे। जब उन्हें यहां काम मिल गया तो अपनी पत्नी और दो बच्चों को भी दिल्ली ले आए। उस समय वे हरी नगर में किराए के मकान में रहते थे। जब परिवार बढ़ा तो महावीर एन्क्लेव में एक भूखण्ड खरीदकर छोटा-सा घर बनाकर रहने लगे। जैसे-जैसे परिवार के सदस्य बढ़ते गए वैसे-वैसे मकान का भी आकार बढ़ता गया। दो मंजिले इस मकान में एक ही रसोई है। दिन में तो सबको अपने-अपने काम के लिए जल्दी-जल्दी भागना होता है इसलिए सबका भोजन एक साथ नहीं होता है। पर रात में सभी लोग एक साथ ही खाना खाते हैं। चूंकि घर में कोई बड़ा ऐसा कमरा नहीं है जहां सब मिल बैठकर खाना खा सकते हैं इसलिए सभी अपने-अपने कमरे में ही खाना खाते हैं। घर की बहुओं में से कुछ खाना बनाती हैं और कुछ परोसती रहती हैं।
बृज किशोर एक बार फिर कहते हैं, ह्यजब तक उनके पिता जी रहे तब तक घर के लिए किसी को कुछ सोचना नहीं पड़ता था। पिता जी ही सब कुछ देखते थे। जब वे कुछ अस्वस्थ हो गए तब उन्होंने मुझे थोड़ा-थोड़ा घरेलू काम देना शुरू किया। जब वे इस दुनिया से गए तब हमारे छोटे भाई पढ़ ही रहे थे। मैंने उन्हें अपने पुत्र की तरह आगे भी पढ़ाई करने को प्रेरित किया। छोटे भाई भी मुझे भाई नहीं, पिता के समान मान देते हैं। यह आपसी प्यार का प्रतिफल है। यही प्यार हम लोगों के बीच भावनात्मक लगाव को बढ़ाता है। यही लगाव पूरे परिवार को एक साथ बांधे हुए है।ह्ण
पूरे परिवार के लिए राशन का प्रबंध बृज किशोर ही करते हैं। कोई भाई गैस सिलेंडर मंगाता है,कोई बिजली का बिल भरता है,कोई साग-सब्जी लाता है। जब कभी घर में कोई बड़ा काम करना होता है तो जिन-जिन भाई के पास पैसा होता है वे आगे आते हैं और काम निपटा लेते हैं। यही इस परिवार की सबसे बड़ी विशेषता है। परिवारों में ऐसी विशेषता कम ही देखने को मिलती है।
ह्यपारिवारिक संस्कार हमें एक रखते हैंह्ण
परिवार के मुखिया बृजकिशोर से हुई बातचीत के मुख्यांश
अपने परिवार को एक रखने में आपके सामने चुनौतियां किस प्रकार की आती हैं?
आस-पड़ोस या किसी रिश्तेदार के यहां कोई कार्यक्रम होता है तो सभी लोग जा नहीं पाते हैं। लगता है कि लोग क्या कहेंगे पूरा ह्यखानदानह्ण उठकर आ गया। कई रिश्तेदार तो पूरे परिवार को बुलाते हैं, पर सबका जाना संभव नहीं हो पाता है। कई सरकारी सेवाओं को भी प्राप्त करने में दिक्कत होती है। महीने में कम से कम दो गैस सिलेण्डर की आवश्यकता रहती है। सिलेण्डर प्राप्त करने में कभी-कभी दिक्कत होती है। इस मुहल्ले में पीने का पानी टैंकर से आता है। परिवार बड़ा रहने की वजह से कई बार अतिरिक्त टैंकर बुलाना पड़ता है। टैंकर आसानी से मिलता भी नहीं है।
ऐसा कभी अवसर आया जब लगा हो कि अब संयुक्त रहना संभव नहीं है।
नहीं, ईश्वर की कृपा से कभी ऐसा क्षण नहीं आया है। हां, जब पिताजी गुजर गए तो मन में जरूर एक बार विचार आया कि अब क्या होगा? हम सभी भाई एक साथ रह पाएंगे या नहीं? परन्तु हम लोगों का ऐसा पारिवारिक संस्कार है कि सभी एक रहे। छोटे भाइयों ने मुझे पिता के बराबर माना। आज भी यही स्थिति है। पारिवारिक एकता के लिए मैं एक कदम उठाता हूं तो वे दो कदम उठाते हैं। फिर परिवार बंटने का कोई मतलब ही नहीं है।
भाइयों में सामंजस्य किस प्रकार रखते हैं?
हमारा सामंजस्य बच्चों पर केन्द्रित है। सभी भाई घर के बच्चों को समान रूप से देखते हैं। यह भावना कभी नहीं आती है कि यह बच्चा उनका है और यह बच्चा हमारा है। बच्चों के लिए जब भी घर में कोई कुछ लाता है तो सभी बच्चों के लाता है। यह भी देखा जाता है कि किस बच्चे के पास कपड़े हैं और किसके पास नहीं। जो इस चीज को देखता है वह लाता भी है।
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